The Vedic literatures give us a detailed list of all the great spiritual masters of the past. Some of the more notable ones are Narada Muni, Parashara, his son Vyasadeva, Bharadvaja, Agastya, Vishvamitra, Vashishta, and Valmiki. Narada Muni is very famous and is known as the triloka sanchari since he trots the three worlds. Cursed by his father, Narada is not allowed to have permanent residence anywhere. Taking advantage of this curse, Narada travels throughout this universe and others to teach Krishna’s message. The two most important authors of Vedic literatures are Vyasadeva and Valmiki. Narada Muni was the spiritual master of both of them so that alone gives a glimpse into his greatness.
In modern times, there are four primary sampradayas, or disciplic successions, teaching the principles of Vaishnavism, or devotion to Lord Vishnu. Krishna, Vishnu, and Narayana are all interchangeable names for God. Krishna Himself personally took birth as a spiritual master known as Lord Chaitanya. Founder of the Madhva-Gaudiya-sampradaya, Lord Chaitanya played the role of an ideal sannyasi, preaching the glories of the Lord from door to door across India. His teachings spawned a great line of future gurus, of which include Shrila Bhaktisiddhanta Saraswati and A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada. The modern day Hare Krishna movement was inaugurated by Lord Chaitanya Himself in India some five hundred years ago.
i am owner of this blog. with this blog i am trying to give information, knowlage and give support to whom who want to learn the mass communication . i know that this is not a big step but i am just thinking that if 10 persons take steps on it on my motivation my work ill gone up 10 time faster. so this is my thinking good or bad you batter know. a hatke thinking
Wednesday, April 28, 2010
narad
The Vedic literatures give us a detailed list of all the great spiritual masters of the past. Some of the more notable ones are Narada Muni, Parashara, his son Vyasadeva, Bharadvaja, Agastya, Vishvamitra, Vashishta, and Valmiki. Narada Muni is very famous and is known as the triloka sanchari since he trots the three worlds. Cursed by his father, Narada is not allowed to have permanent residence anywhere. Taking advantage of this curse, Narada travels throughout this universe and others to teach Krishna’s message. The two most important authors of Vedic literatures are Vyasadeva and Valmiki. Narada Muni was the spiritual master of both of them so that alone gives a glimpse into his greatness.
In modern times, there are four primary sampradayas, or disciplic successions, teaching the principles of Vaishnavism, or devotion to Lord Vishnu. Krishna, Vishnu, and Narayana are all interchangeable names for God. Krishna Himself personally took birth as a spiritual master known as Lord Chaitanya. Founder of the Madhva-Gaudiya-sampradaya, Lord Chaitanya played the role of an ideal sannyasi, preaching the glories of the Lord from door to door across India. His teachings spawned a great line of future gurus, of which include Shrila Bhaktisiddhanta Saraswati and A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada. The modern day Hare Krishna movement was inaugurated by Lord Chaitanya Himself in India some five hundred years ago.
In modern times, there are four primary sampradayas, or disciplic successions, teaching the principles of Vaishnavism, or devotion to Lord Vishnu. Krishna, Vishnu, and Narayana are all interchangeable names for God. Krishna Himself personally took birth as a spiritual master known as Lord Chaitanya. Founder of the Madhva-Gaudiya-sampradaya, Lord Chaitanya played the role of an ideal sannyasi, preaching the glories of the Lord from door to door across India. His teachings spawned a great line of future gurus, of which include Shrila Bhaktisiddhanta Saraswati and A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada. The modern day Hare Krishna movement was inaugurated by Lord Chaitanya Himself in India some five hundred years ago.
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वैदिक साहित्य हमारे अतीत के सभी महान आध्यात्मिक स्वामी की एक विस्तृत सूची दे. और अधिक उल्लेखनीय लोगों में से कुछ नारद मुनि, Parashara रहे हैं, उनके बेटे Vyasadeva, भार m ाज, अगस्त्य, विश्वामित्र, वशिष्ठ, और वाल्मीकि. नारद मुनि बहुत प्रसिद्ध है और triloka sanchari के रूप में जाना के बाद से वह तीन संसार trots. उनके पिता द्वारा शापित नारद के लिए स्थायी निवास कहीं भी अनुमति नहीं है. इस अभिशाप का लाभ उठाते हुए, Narada इस ब्रह्मांड भर में यात्रा और दूसरों कृष्ण के संदेश को पढ़ाने के लिए. वैदिक साहित्य के दो सबसे महत्वपूर्ण लेखकों Vyasadeva और वाल्मीकि हैं. नारद मुनि उन दोनों के आध्यात्मिक गुरु था, इसलिए कि अकेले उनकी महानता में एक झलक देता है.आधुनिक समय में, वहाँ चार प्राथमिक sampradayas, या disciplic successions, वैष्णव, या भगवान विष्णु के प्रति समर्पण के सिद्धांतों को सिखा रहे हैं. कृष्ण, विष्णु, और नारायण भगवान के लिए सभी परस्पर विनिमय नाम हैं. व्यक्तिगत रूप से खुद को कृष्ण एक आध्यात्मिक चैतन्य प्रभु के रूप में जाना गुरु के रूप में जन्म लिया. Madhva-Gaudiya-सम्प्रदाय के संस्थापक, भगवान चैतन्य sannyasi एक आदर्श की भूमिका निभाई है, दरवाजे से यहोवा की glories भारत भर में दरवाजे के लिए उपदेश. उनकी शिक्षाओं भविष्य गुरुओं के एक महान लाइन, जिनमें से Shrila Bhaktisiddhanta सरस्वती और एसी Bhaktivedanta स्वामी प्रभुपाद शामिल spawned. आधुनिक दिन हरे कृष्ण आंदोलन स्वयं प्रभु चैतन्य द्वारा भारत में कुछ पाँच सौ साल पहले का उद्घाटन किया.
Tuesday, April 27, 2010
Wednesday, April 21, 2010
सर्च
खोज संयंत्र
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इस लेख में विकिपीडिया के उच्च स्तर को बरकरार रखने के लिये संपादन एवं वर्तनी सुधार इत्यादि की जरूरत है। इस लेख का संपादन करने के लिये संबंधित पन्ने देखें। आप चाहें तो इसे सुधार कर विकिपीडिया की मदद कर सकते हैं।
वेब खोज इंजन एक ऐसा खोज इंजन (search engine) है जिसे विश्वव्यापी वेब पर सुचना की खोज के लिए बनाया गया है. सूचना में वेब पेज, छवियाँ और अन्य प्रकार की संचिकाएँ हो सकती हैं.कुछ खोज इंजन मेरे पास उपलब्ध डाटा जैसे न्यूज़बुक्स,डेटाबेस, या खुली निर्देशिका (open directories) में हो सकतें हैं. वेब निर्देशिका (Web directories) जिसे मनुष्य संपादक के द्वारा बनाये रखा गया है इसके विपरीत खोज इंजन अल्गोरिथम या अल्गोरिथम का मिश्रण और मानव आगत का परिचालन करती है.
अनुक्रम[छुपाएँ]
प्रक्षेपण
खोज इंजन से पहले वेब सर्वर्स की पुरी सूची थी. टीम बेर्नेर्स ली द्वारा इन सूचियों का संपादन हुआ और सीइआरएन वेबसर्वर पर होस्ट किया गया . १९९२ से एक ऐतिहासिक आशुचित्र बनी हुई है[१]. जिस प्रकार अधिक से अधिक वेब्सेर्वेर्स ऑनलाइन हो जाने के कारण केन्द्रिये सूचि नही रख सकतें. एनसीएसऐ साईट पर नए सर्वर्स की घोषणा "नया क्या है" शीर्षक से किया गया है ,लेकिन कोई भी पूर्ण सूचि अब मौजूद नही है[२]
आर्ची (Archie).[३] उपकरण का इन्टरनेट (पूर्व वेब) पर खोज के लिए सबसे पहले इस्तेमाल किया गया थाबिना "वि" के "अर्चिव" का नाम बना है यह अलन एम्टेज (Alan Emtage) के द्वारा १९९० में बनाया गया, जो मांट्रियाल के मेकगिल विश्वविद्यालय (McGill University) का एक छात्र था. इस प्रोग्राम में निर्देशिका जिसमें सभी संचिकाओं की सूची सार्वजनिक अनामक ऍफ़ टी पी साईट में स्थित है, डाउनलोड है (संचिका स्थानान्तरण नवाचार खोजी डाटाबेस संचिकाओं के नाम बनाता है लेकिन आर्ची इन साइटों की विषय वस्तु की सूची नही बनाता है
गोफेर (Gopher) का उदय ( १९९१ में मार्क मेककाहिल (Mark McCahill) के द्वारा मेंनेसोता विश्वविद्यालय (University of Minnesota) में बनाया गया) दो नए खोज प्रोग्राम, वेरोनिका (Veronica) और जगहेड (Jughead) का नेतृत्व करने के लिए हुआ. आर्ची की तरह वे संचिका का नाम और शीर्षक का खोज करते हैं जो गोफेर सूचकांक सारणी/सिस्टम में संगृहीत होता है. विरोनिका( बहुत आसान गिलहरी की तरह व्यापक नेट Iकंप्यूटरीकृत सूचकांक संग्रह) पुरे गोफर सूची के लगभग गोफर मेनू/सूची शीर्षक में मूल शब्द खोज प्रदान करता है . जग हेड ( जोंजिस सार्वलौकिक गोफर अनुक्रम एक्स्कवेसन और प्रदर्शन) विशेष गोफर सर्वर से मेनू/सूची से सुचना प्राप्त करने का उपकरण था हालाँकि "आर्ची (Archie)" नाम का खोज इंजन आर्ची हास्य पुस्तक (Archie comic book) श्रृंखला का उल्लेख नही करती, "वेरोनिका (Veronica)" और "जगहेड (Jughead)" इस श्रृंखला के प्रतिक हैं इस प्रकार वे अपने पुर्वधिकारी को संदर्भित करती हैं.
पहला वेब खोज इंजन वान्देक्स था, एक निष्क्रिये/मृत सूचकांक जो विश्वव्यापी वेब घुम्मकड़ (World Wide Web Wanderer) के द्वारा समाहरित किया गया था, इस वेब क्रॉलर (web crawler) का विकास मैथ्यू ग्रे के द्वारा एम्आईटी में १९९३ में हुआ था. एक अन्य शीघ्र खोज इंजन अलिवेब (Aliweb) भी १९९३ में दिखाई दिया.जम्पस्टेशन (JumpStation) ने (१९९४ के शुरुआत में जारी) खोज के लिए वेब पन्नों को ढूढ़ने के लिए क्रेव्लर का इस्तेमाल किया था, परन्तु वेब पन्नों के शीर्षक तक ही खोज सीमित था सबसे पहले "पुरा पाठ" क्रॉलर पर आधारित खोज इंजन वेब क्रॉलर (WebCrawler) था जो की १९९४ में आया.अपने पूर्वग की तरह, यह अपने उपयोगकर्ता को किसी भी शब्द को वेब पेज पर खोजने में मदद करता है, जो सभी वेब सर्च इंजन के लिए एक मानदंड बन गया है .यह भी एक पहला था जो जनता के द्वारा व्यापक रूप से जाता है.१९९४ में भी लाइकोस (Lycos) (जिसकी शुरुआत कार्नेगी मेलोन विश्वविद्यालय (Carnegie Mellon University) में हुई थी) का आरम्भ हुई थी और वह प्रमुख वाणिज्यिक प्रयास बन गई.
इसके तुंरत बाद, कई खोज इंजन दिखाई देने लगे और लोकप्रियता की और अग्रसर हुए.इसमें मैगलन (Magellan), एक्साईट (Excite), इन्फोसीक (Infoseek), इन्क्तोमी (Inktomi), उत्तरी लाइट (Northern Light) और अल्ताविस्ता (AltaVista) शामिल हैं.लोगों के लिए Yahoo! रुचिपूर्ण वेब पन्नों को ढूढने का सबसे अधिक लोकप्रिय रास्ता था लेकिन इसका खोज कार्य के लिए वेब के पुरा पाठ की अपेक्षा वेब निर्देशिका (web directory) का ही संचालन करती थी सूचना चाहने वाले खोज शब्द पर आधारित खोज के बजाय खोज के लिए निर्देशिका का भी संचालन कर सकतें हैं
१९९६ में, नेट्स्केप (Netscape) को एक विशेष समझौते के लिए अपने चुनिन्दा खोज मशीन के लिए एक विशेष खोज मशीन की तलाश थी. अत्यधिक रूचि के बजाये पॉँच प्रमुख मशीनों के द्वारा नेट्स्केप के साथ वह समझौता रूक गई , जहाँ ५० लाख प्रति वर्ष नेट्स्केप के खोज इंजन पन्नो पर एक खोज इंजन के रोटेशन के लिए होता.ये पॉँच इंजन थे: Yahoo!, मैगलन (Magellan), लाइकोस (Lycos), इन्फोसीक (Infoseek) और एक्साईट (Excite).
इन्टरनेट निवेश के कुछ चमकते सितारों में भी खोज इंजन को जाना जाता है, जो १९९० के अंत में आया था.[४]अनेक कम्पनियाँ ने बाज़ार में प्रवेश किया और प्रारंभिक सार्वजानिक प्रस्ताव (initial public offering) के दौरान उन्हें अत्यधिक लाभ प्राप्त हुआ.कुछ ने अपने सार्वजनिक खोज मशीन वापस ले लिया और विपणन उद्योग के एकमात्र संस्करण को भी, जैसे उत्तरी लाइट कई खोज इंजन कम्पनियाँ dot-com बुलबुला (dot-com bubble) के तहत आ गई थी, एक व्यावसायिक बाज़ार जो १९९९ में उछाल पर थी और २००१ में समाप्त हुई
लगभग २००० में गूगल खोज इंजन (Google search engine) ने प्रमुखता पाई.अनेक खोजों तथा पृष्ठ श्रेणी (PageRank) जैसे नवीन प्रयास के आह्वान से कंपनी ने बेहतर परिणाम पाया. पुनरावृतिये एल्गोरिथम वेब पन्नों का श्रेणी अन्य वेब साइट्स के संख्या और पृष्ठ श्रेणी तथा जोड़ने वाले पन्नों पर इस तथ्य पर आधारित है की अच्छा या वाँछित पन्ने दूसरों से अधिक वेब साइटों से जुड़े हों.खोज इंजन के लिए गूगल ने भी अल्पतम अन्तरफलक को बनाये रखा इसके विपरीत इसके कई प्रतियोगियों ने वेब पोर्टल (web portal) में खोज इंजन सन्निहित किया
२००० तक याहू ने इन्क्तोमी (Inktomi) खोज इंजन पर आधारित खोज सेवाओं को प्रदान करने लगा था. याहू! ने २००० में इन्क्तोमी (Inktomi) को प्राप्त किया और (जिसने ओलदवेब (AlltheWeb) और अल्ताविस्ता (AltaVista) को ख़रीदा) २००३ में प्रस्तावित (Overture) किया.२००४ तक Yahoo! गूगल खोज इंजन के साथ रहा, जब तक उसने सयुंक्त तकनीक पर आधारित अपना ख़ुद का खोज इंजन लॉन्च नही किया था.
१९९८ द्वारा व्यवहृत इन्क्तोमी (Inktomi) का खोज परिणामों के पतन के बाद माइक्रोसॉफ्ट ने सबसे पहले एम्एसएन खोज आरम्भ किया( जब तक कोई दुसरे प्रकार का जीवित खोज (Live Search) न आए) १९९९ में साईट ने लूक्स्मार्ट (Looksmart) और इन्क्तोमी (Inktomi) के परिणामों के साथ सूचीबद्ध शेयर को प्रर्दशित करने लगा था, इसके अलावा १९९९ में कुछ समय के लिए इनके बजाये अल्ताविस्ता (AltaVista) के परिणामों का प्रयोग हुआ था. २००४ में, माइक्रोसॉफ्ट ने अपने ख़ुद के खोज तकनीक में अपने ख़ुद के वेब क्रोलर (web crawler) के आधार पर परिवर्तन करना आरम्भ किया.( एम्एसएनबोट (msnbot) कहलाता है)
२००७ के अंत तक, गूगल सभी लोकप्रिय वेब खोज इंजनों से काफी आगे निकल गया था.[५] [६]देश के कई विशिष्ट खोज इंजन कंपनी प्रमुख बन गए उदहारण के तौर पर जनवादी गणराज्य चीन में सबसे लोकप्रिय खोज इंजन बैदु (Baidu), और भारत[७] में guruji.com (guruji.com)
एक खोज इंजन, निम्नलिखित आदेश से संचालित होता है
वेब crawling (Web crawling)
अनुक्रमण (Indexing)
खोज रहा है (Searching)
वेब खोज इंजन कई वेब पन्नों में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर कार्य करतें हैं जो अपने डब्लू डब्लू डब्लू से पुनः प्राप्त करतें हैं.ये पन्नें वेब क्रोलर (Web crawler) और के द्वारा प्राप्त हैं (कभी कभी मकड़ी के नाम से जाना जाता है) ; एक स्वचालित वेब ब्राउज़र जो हर कड़ी को देखता है.robots.txt (robots.txt) के प्रयोग से निवारण किया जा सकता है प्रत्येक पन्नों के सामग्री का विश्लेषण से निर्धारित किया जा सकता है कैसे इसे अनुक्रमित (indexed) किया जाए (उदहारणस्वरुप, शीर्षकों, विषयवाचक, या विशेष क्षेत्र जिसे मेटा टैग (meta tags) कहते हैं, से शब्द जुडा होता है)बाद के पूछ ताछ के लिए वेब पन्नों के बारें में आधार सामग्री आंकडासंचय सूचकांक में संगृहीत है कुछ खोज मशीने जैसे गूगल स्रोत पन्नों के कुछ अंश या पुरा भाग ( केच (cache) के रूप में) और साथ ही साथ वेब पन्नों के बारे में जानकारी स्टोर कर लेता है जबकि अन्य जैसे अल्ताविस्ता (AltaVista) प्रत्येक पन्नों के प्रत्येक शब्द जो भी पातें हैं उसे संगृहीत कर लेते हैं.यह संचित पन्ना वास्तविक खोज पाठ को हमेशा पकड़े हुए है जबसे इसको वास्तविक रूप में सूचीबद्ध किया गया है इसलिए जब वर्तमान पन्ने का अंतर्वस्तु को अद्यतन करने के बाद और खोज की स्थिति ज्यादा देर तक न होने के बाद यह अत्यन्त उपयोगी हो सकता है लिंक रूट (linkrot) के इस समस्या को हलके रूप में समझना चाहिए और गूगल के संचालन में इसका इस्तमाल (usability) बढ़ा क्योंकि उसने खोज शब्दों को लौटे हुए वेब पृष्ठों के द्वारा उपयोगकर्ताओं के उम्मीदों (user expectations) को पुरा किया यह विस्मय के कम से कम सिधांत (principle of least astonishment) को संतुष्ट करती है आमतौर पर उपयोगकर्ता लौटे हुए पन्नों पर खोज के परिणामों की उम्मीद करता है प्रासंगिक खोज के बढने से संचित पन्ने बहुत उपयोगी हो जाते हैं, यहाँ तक की वें तथ्यों से बाहर के डाटा हो सकते हैं जो कही भी उपलब्ध नहीं है.
जब कोई उपयोगकर्ता खोज इंजन में पूछताछ (query) के लिए प्रवेश करता है ( आमतौर पर मुख्य शब्दों (key word) का प्रयोग करके) खोज मशीन इसके विषय सूचि (index) की परीक्षा करता है और इसके मानदंडों के अनुसार उपयुक्त वेब पन्नों को सूचीबद्ध करता है, सामान्यतः एक छोटी सारांश के साथ जो प्रलेख के शीर्षकों और पाठ के भागों पर आधारित होती है अधिकतर सर्च इंजन बुलियन संचालक (boolean operators) AND, OR and NOT को खोज जिज्ञाशा (search query) शांत करने के लिए समर्थन करतें हैं . कुछ सर्च इंजन उन्नत किस्म के संचालक उपलब्ध कराते हैं जिसे प्रोक्सिमिटी खोज (proximity search) कहा जाता है जो उपभोक्ता को किवर्ड्स कि दूरियां को परिभाषित करने में सहायता करता है .
इस खोज इंजन की उपयोगिता (relevance) उसकी परिणामों की उपयुक्तता पर आधारित है.हालाँकि लाखों वेब पन्नें हैं जिसमें खास शब्द या वाक्यांश हो सकते हैं पर कुछ पन्नें अधिक प्रासंगिक, लोकप्रिय, या अन्य की तुलना में अधिक प्रमाणिक हो सकते हैं. अधिकांश खोज इंजनें ऐसे पद्धितियों (rank) को अपनाते हैं कि उनका परिणाम "सर्ब्श्रेष्ठ" और पहला हो कैसे एक खोज इंजन निर्णय करता है, कौन सा पन्ना सबसे ज्यादा उपयुक्त हो और अनेक व्यापक इंजन से दुसरे इंजनों में से कौन से क्रम में परिणामों को दिखाना चाहिए. समय के साथ पद्धतियों में भी बदलाव हो रहा है जैसे इन्टरनेट का उपयोग बदल रहा है और नई तकनीक का विकास हो रहा है
अधिकांश वेब खोज इंजन व्यावसायिक उद्यमी विज्ञापनों (advertising) की आमदानी से समर्थित होते हैं. जिसके फलस्वरूप कुछ विवादास्पद कार्यप्रणाली, विज्ञापनदाताओं को खोज परिणामों में उंच स्थान/श्रेणी पाने के लिए पैसों के भुगतान के आधार पर अनुमति देती है.वे खोज इंजन जो उनके खोज के परिणामो के लिए धन स्वीकार नही करते वे खोज इंजन परिणामो के साथ चल रहे खोज सम्बन्धी विज्ञापनों द्वारा धन बनातें हैं.कोई भी इनके किसी भी विज्ञापन में क्लिक करता है तो खोज इंजन हर बार धन बनाता है.
अधिकतर खोज मशीनें निजी कंपनियों द्वारा चलाये जाते हैं और वे अल्गोरिथ्म्स और बंद आंकडा संचयों का प्रयोग करते हैं. हालाँकि कुछ (some) सार्वजानिक स्रोत होते हैं.
नवीनतम मेटा खोज इंजन http://77.net अनूठा मेटा खोज प्रणाली का प्रयोग कर रहा है.
वेब खोज पोर्टल्स उद्योग की आमदनी अनुमानित २००८ में १३.४ प्रतिशत बढेगी, तथा ब्रॉडबैंड कनेक्शन के साथ १५.१ प्रतिशत बदने की उम्मीद है.२००८ से २०१२ के बीच उद्दोग आय अनुमानित ५६ प्रतिशत बढ़ा है क्योंकि इन्टरनेट के रूप में अमेरिका के घरों में पूर्ण परिपूर्णता के लिए अभी भी कुछ रास्ता तय करना है इसके आलावा, बढती हुई घरेलु इन्टरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए ब्रॉडबैंड सेवाएँ दी जा रही है, फैबर ऑप्टिक और उच्च गति वाले केबल लाइनों के योग से २०१२ तक ११८.७ मिलियन बढ़ जायेगी.[८]
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वेब खोज इंजन एक ऐसा खोज इंजन (search engine) है जिसे विश्वव्यापी वेब पर सुचना की खोज के लिए बनाया गया है. सूचना में वेब पेज, छवियाँ और अन्य प्रकार की संचिकाएँ हो सकती हैं.कुछ खोज इंजन मेरे पास उपलब्ध डाटा जैसे न्यूज़बुक्स,डेटाबेस, या खुली निर्देशिका (open directories) में हो सकतें हैं. वेब निर्देशिका (Web directories) जिसे मनुष्य संपादक के द्वारा बनाये रखा गया है इसके विपरीत खोज इंजन अल्गोरिथम या अल्गोरिथम का मिश्रण और मानव आगत का परिचालन करती है.
अनुक्रम[छुपाएँ]
प्रक्षेपण
खोज इंजन से पहले वेब सर्वर्स की पुरी सूची थी. टीम बेर्नेर्स ली द्वारा इन सूचियों का संपादन हुआ और सीइआरएन वेबसर्वर पर होस्ट किया गया . १९९२ से एक ऐतिहासिक आशुचित्र बनी हुई है[१]. जिस प्रकार अधिक से अधिक वेब्सेर्वेर्स ऑनलाइन हो जाने के कारण केन्द्रिये सूचि नही रख सकतें. एनसीएसऐ साईट पर नए सर्वर्स की घोषणा "नया क्या है" शीर्षक से किया गया है ,लेकिन कोई भी पूर्ण सूचि अब मौजूद नही है[२]
आर्ची (Archie).[३] उपकरण का इन्टरनेट (पूर्व वेब) पर खोज के लिए सबसे पहले इस्तेमाल किया गया थाबिना "वि" के "अर्चिव" का नाम बना है यह अलन एम्टेज (Alan Emtage) के द्वारा १९९० में बनाया गया, जो मांट्रियाल के मेकगिल विश्वविद्यालय (McGill University) का एक छात्र था. इस प्रोग्राम में निर्देशिका जिसमें सभी संचिकाओं की सूची सार्वजनिक अनामक ऍफ़ टी पी साईट में स्थित है, डाउनलोड है (संचिका स्थानान्तरण नवाचार खोजी डाटाबेस संचिकाओं के नाम बनाता है लेकिन आर्ची इन साइटों की विषय वस्तु की सूची नही बनाता है
गोफेर (Gopher) का उदय ( १९९१ में मार्क मेककाहिल (Mark McCahill) के द्वारा मेंनेसोता विश्वविद्यालय (University of Minnesota) में बनाया गया) दो नए खोज प्रोग्राम, वेरोनिका (Veronica) और जगहेड (Jughead) का नेतृत्व करने के लिए हुआ. आर्ची की तरह वे संचिका का नाम और शीर्षक का खोज करते हैं जो गोफेर सूचकांक सारणी/सिस्टम में संगृहीत होता है. विरोनिका( बहुत आसान गिलहरी की तरह व्यापक नेट Iकंप्यूटरीकृत सूचकांक संग्रह) पुरे गोफर सूची के लगभग गोफर मेनू/सूची शीर्षक में मूल शब्द खोज प्रदान करता है . जग हेड ( जोंजिस सार्वलौकिक गोफर अनुक्रम एक्स्कवेसन और प्रदर्शन) विशेष गोफर सर्वर से मेनू/सूची से सुचना प्राप्त करने का उपकरण था हालाँकि "आर्ची (Archie)" नाम का खोज इंजन आर्ची हास्य पुस्तक (Archie comic book) श्रृंखला का उल्लेख नही करती, "वेरोनिका (Veronica)" और "जगहेड (Jughead)" इस श्रृंखला के प्रतिक हैं इस प्रकार वे अपने पुर्वधिकारी को संदर्भित करती हैं.
पहला वेब खोज इंजन वान्देक्स था, एक निष्क्रिये/मृत सूचकांक जो विश्वव्यापी वेब घुम्मकड़ (World Wide Web Wanderer) के द्वारा समाहरित किया गया था, इस वेब क्रॉलर (web crawler) का विकास मैथ्यू ग्रे के द्वारा एम्आईटी में १९९३ में हुआ था. एक अन्य शीघ्र खोज इंजन अलिवेब (Aliweb) भी १९९३ में दिखाई दिया.जम्पस्टेशन (JumpStation) ने (१९९४ के शुरुआत में जारी) खोज के लिए वेब पन्नों को ढूढ़ने के लिए क्रेव्लर का इस्तेमाल किया था, परन्तु वेब पन्नों के शीर्षक तक ही खोज सीमित था सबसे पहले "पुरा पाठ" क्रॉलर पर आधारित खोज इंजन वेब क्रॉलर (WebCrawler) था जो की १९९४ में आया.अपने पूर्वग की तरह, यह अपने उपयोगकर्ता को किसी भी शब्द को वेब पेज पर खोजने में मदद करता है, जो सभी वेब सर्च इंजन के लिए एक मानदंड बन गया है .यह भी एक पहला था जो जनता के द्वारा व्यापक रूप से जाता है.१९९४ में भी लाइकोस (Lycos) (जिसकी शुरुआत कार्नेगी मेलोन विश्वविद्यालय (Carnegie Mellon University) में हुई थी) का आरम्भ हुई थी और वह प्रमुख वाणिज्यिक प्रयास बन गई.
इसके तुंरत बाद, कई खोज इंजन दिखाई देने लगे और लोकप्रियता की और अग्रसर हुए.इसमें मैगलन (Magellan), एक्साईट (Excite), इन्फोसीक (Infoseek), इन्क्तोमी (Inktomi), उत्तरी लाइट (Northern Light) और अल्ताविस्ता (AltaVista) शामिल हैं.लोगों के लिए Yahoo! रुचिपूर्ण वेब पन्नों को ढूढने का सबसे अधिक लोकप्रिय रास्ता था लेकिन इसका खोज कार्य के लिए वेब के पुरा पाठ की अपेक्षा वेब निर्देशिका (web directory) का ही संचालन करती थी सूचना चाहने वाले खोज शब्द पर आधारित खोज के बजाय खोज के लिए निर्देशिका का भी संचालन कर सकतें हैं
१९९६ में, नेट्स्केप (Netscape) को एक विशेष समझौते के लिए अपने चुनिन्दा खोज मशीन के लिए एक विशेष खोज मशीन की तलाश थी. अत्यधिक रूचि के बजाये पॉँच प्रमुख मशीनों के द्वारा नेट्स्केप के साथ वह समझौता रूक गई , जहाँ ५० लाख प्रति वर्ष नेट्स्केप के खोज इंजन पन्नो पर एक खोज इंजन के रोटेशन के लिए होता.ये पॉँच इंजन थे: Yahoo!, मैगलन (Magellan), लाइकोस (Lycos), इन्फोसीक (Infoseek) और एक्साईट (Excite).
इन्टरनेट निवेश के कुछ चमकते सितारों में भी खोज इंजन को जाना जाता है, जो १९९० के अंत में आया था.[४]अनेक कम्पनियाँ ने बाज़ार में प्रवेश किया और प्रारंभिक सार्वजानिक प्रस्ताव (initial public offering) के दौरान उन्हें अत्यधिक लाभ प्राप्त हुआ.कुछ ने अपने सार्वजनिक खोज मशीन वापस ले लिया और विपणन उद्योग के एकमात्र संस्करण को भी, जैसे उत्तरी लाइट कई खोज इंजन कम्पनियाँ dot-com बुलबुला (dot-com bubble) के तहत आ गई थी, एक व्यावसायिक बाज़ार जो १९९९ में उछाल पर थी और २००१ में समाप्त हुई
लगभग २००० में गूगल खोज इंजन (Google search engine) ने प्रमुखता पाई.अनेक खोजों तथा पृष्ठ श्रेणी (PageRank) जैसे नवीन प्रयास के आह्वान से कंपनी ने बेहतर परिणाम पाया. पुनरावृतिये एल्गोरिथम वेब पन्नों का श्रेणी अन्य वेब साइट्स के संख्या और पृष्ठ श्रेणी तथा जोड़ने वाले पन्नों पर इस तथ्य पर आधारित है की अच्छा या वाँछित पन्ने दूसरों से अधिक वेब साइटों से जुड़े हों.खोज इंजन के लिए गूगल ने भी अल्पतम अन्तरफलक को बनाये रखा इसके विपरीत इसके कई प्रतियोगियों ने वेब पोर्टल (web portal) में खोज इंजन सन्निहित किया
२००० तक याहू ने इन्क्तोमी (Inktomi) खोज इंजन पर आधारित खोज सेवाओं को प्रदान करने लगा था. याहू! ने २००० में इन्क्तोमी (Inktomi) को प्राप्त किया और (जिसने ओलदवेब (AlltheWeb) और अल्ताविस्ता (AltaVista) को ख़रीदा) २००३ में प्रस्तावित (Overture) किया.२००४ तक Yahoo! गूगल खोज इंजन के साथ रहा, जब तक उसने सयुंक्त तकनीक पर आधारित अपना ख़ुद का खोज इंजन लॉन्च नही किया था.
१९९८ द्वारा व्यवहृत इन्क्तोमी (Inktomi) का खोज परिणामों के पतन के बाद माइक्रोसॉफ्ट ने सबसे पहले एम्एसएन खोज आरम्भ किया( जब तक कोई दुसरे प्रकार का जीवित खोज (Live Search) न आए) १९९९ में साईट ने लूक्स्मार्ट (Looksmart) और इन्क्तोमी (Inktomi) के परिणामों के साथ सूचीबद्ध शेयर को प्रर्दशित करने लगा था, इसके अलावा १९९९ में कुछ समय के लिए इनके बजाये अल्ताविस्ता (AltaVista) के परिणामों का प्रयोग हुआ था. २००४ में, माइक्रोसॉफ्ट ने अपने ख़ुद के खोज तकनीक में अपने ख़ुद के वेब क्रोलर (web crawler) के आधार पर परिवर्तन करना आरम्भ किया.( एम्एसएनबोट (msnbot) कहलाता है)
२००७ के अंत तक, गूगल सभी लोकप्रिय वेब खोज इंजनों से काफी आगे निकल गया था.[५] [६]देश के कई विशिष्ट खोज इंजन कंपनी प्रमुख बन गए उदहारण के तौर पर जनवादी गणराज्य चीन में सबसे लोकप्रिय खोज इंजन बैदु (Baidu), और भारत[७] में guruji.com (guruji.com)
एक खोज इंजन, निम्नलिखित आदेश से संचालित होता है
वेब crawling (Web crawling)
अनुक्रमण (Indexing)
खोज रहा है (Searching)
वेब खोज इंजन कई वेब पन्नों में संग्रहित सूचनाओं के आधार पर कार्य करतें हैं जो अपने डब्लू डब्लू डब्लू से पुनः प्राप्त करतें हैं.ये पन्नें वेब क्रोलर (Web crawler) और के द्वारा प्राप्त हैं (कभी कभी मकड़ी के नाम से जाना जाता है) ; एक स्वचालित वेब ब्राउज़र जो हर कड़ी को देखता है.robots.txt (robots.txt) के प्रयोग से निवारण किया जा सकता है प्रत्येक पन्नों के सामग्री का विश्लेषण से निर्धारित किया जा सकता है कैसे इसे अनुक्रमित (indexed) किया जाए (उदहारणस्वरुप, शीर्षकों, विषयवाचक, या विशेष क्षेत्र जिसे मेटा टैग (meta tags) कहते हैं, से शब्द जुडा होता है)बाद के पूछ ताछ के लिए वेब पन्नों के बारें में आधार सामग्री आंकडासंचय सूचकांक में संगृहीत है कुछ खोज मशीने जैसे गूगल स्रोत पन्नों के कुछ अंश या पुरा भाग ( केच (cache) के रूप में) और साथ ही साथ वेब पन्नों के बारे में जानकारी स्टोर कर लेता है जबकि अन्य जैसे अल्ताविस्ता (AltaVista) प्रत्येक पन्नों के प्रत्येक शब्द जो भी पातें हैं उसे संगृहीत कर लेते हैं.यह संचित पन्ना वास्तविक खोज पाठ को हमेशा पकड़े हुए है जबसे इसको वास्तविक रूप में सूचीबद्ध किया गया है इसलिए जब वर्तमान पन्ने का अंतर्वस्तु को अद्यतन करने के बाद और खोज की स्थिति ज्यादा देर तक न होने के बाद यह अत्यन्त उपयोगी हो सकता है लिंक रूट (linkrot) के इस समस्या को हलके रूप में समझना चाहिए और गूगल के संचालन में इसका इस्तमाल (usability) बढ़ा क्योंकि उसने खोज शब्दों को लौटे हुए वेब पृष्ठों के द्वारा उपयोगकर्ताओं के उम्मीदों (user expectations) को पुरा किया यह विस्मय के कम से कम सिधांत (principle of least astonishment) को संतुष्ट करती है आमतौर पर उपयोगकर्ता लौटे हुए पन्नों पर खोज के परिणामों की उम्मीद करता है प्रासंगिक खोज के बढने से संचित पन्ने बहुत उपयोगी हो जाते हैं, यहाँ तक की वें तथ्यों से बाहर के डाटा हो सकते हैं जो कही भी उपलब्ध नहीं है.
जब कोई उपयोगकर्ता खोज इंजन में पूछताछ (query) के लिए प्रवेश करता है ( आमतौर पर मुख्य शब्दों (key word) का प्रयोग करके) खोज मशीन इसके विषय सूचि (index) की परीक्षा करता है और इसके मानदंडों के अनुसार उपयुक्त वेब पन्नों को सूचीबद्ध करता है, सामान्यतः एक छोटी सारांश के साथ जो प्रलेख के शीर्षकों और पाठ के भागों पर आधारित होती है अधिकतर सर्च इंजन बुलियन संचालक (boolean operators) AND, OR and NOT को खोज जिज्ञाशा (search query) शांत करने के लिए समर्थन करतें हैं . कुछ सर्च इंजन उन्नत किस्म के संचालक उपलब्ध कराते हैं जिसे प्रोक्सिमिटी खोज (proximity search) कहा जाता है जो उपभोक्ता को किवर्ड्स कि दूरियां को परिभाषित करने में सहायता करता है .
इस खोज इंजन की उपयोगिता (relevance) उसकी परिणामों की उपयुक्तता पर आधारित है.हालाँकि लाखों वेब पन्नें हैं जिसमें खास शब्द या वाक्यांश हो सकते हैं पर कुछ पन्नें अधिक प्रासंगिक, लोकप्रिय, या अन्य की तुलना में अधिक प्रमाणिक हो सकते हैं. अधिकांश खोज इंजनें ऐसे पद्धितियों (rank) को अपनाते हैं कि उनका परिणाम "सर्ब्श्रेष्ठ" और पहला हो कैसे एक खोज इंजन निर्णय करता है, कौन सा पन्ना सबसे ज्यादा उपयुक्त हो और अनेक व्यापक इंजन से दुसरे इंजनों में से कौन से क्रम में परिणामों को दिखाना चाहिए. समय के साथ पद्धतियों में भी बदलाव हो रहा है जैसे इन्टरनेट का उपयोग बदल रहा है और नई तकनीक का विकास हो रहा है
अधिकांश वेब खोज इंजन व्यावसायिक उद्यमी विज्ञापनों (advertising) की आमदानी से समर्थित होते हैं. जिसके फलस्वरूप कुछ विवादास्पद कार्यप्रणाली, विज्ञापनदाताओं को खोज परिणामों में उंच स्थान/श्रेणी पाने के लिए पैसों के भुगतान के आधार पर अनुमति देती है.वे खोज इंजन जो उनके खोज के परिणामो के लिए धन स्वीकार नही करते वे खोज इंजन परिणामो के साथ चल रहे खोज सम्बन्धी विज्ञापनों द्वारा धन बनातें हैं.कोई भी इनके किसी भी विज्ञापन में क्लिक करता है तो खोज इंजन हर बार धन बनाता है.
अधिकतर खोज मशीनें निजी कंपनियों द्वारा चलाये जाते हैं और वे अल्गोरिथ्म्स और बंद आंकडा संचयों का प्रयोग करते हैं. हालाँकि कुछ (some) सार्वजानिक स्रोत होते हैं.
नवीनतम मेटा खोज इंजन http://77.net अनूठा मेटा खोज प्रणाली का प्रयोग कर रहा है.
वेब खोज पोर्टल्स उद्योग की आमदनी अनुमानित २००८ में १३.४ प्रतिशत बढेगी, तथा ब्रॉडबैंड कनेक्शन के साथ १५.१ प्रतिशत बदने की उम्मीद है.२००८ से २०१२ के बीच उद्दोग आय अनुमानित ५६ प्रतिशत बढ़ा है क्योंकि इन्टरनेट के रूप में अमेरिका के घरों में पूर्ण परिपूर्णता के लिए अभी भी कुछ रास्ता तय करना है इसके आलावा, बढती हुई घरेलु इन्टरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए ब्रॉडबैंड सेवाएँ दी जा रही है, फैबर ऑप्टिक और उच्च गति वाले केबल लाइनों के योग से २०१२ तक ११८.७ मिलियन बढ़ जायेगी.[८]
Monday, April 19, 2010
द्रव क्रिस्टल प्रादर्शी
द्रव क्रिस्टल प्रादर्शी
द्रव क्रिस्टल प्रादर्शी ('लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले, लघुरूप:LCD) एक पतला, सपाट डिस्प्ले (प्रादर्शी) है जो टेक्स्ट, छबि, विडियो आदि को एलेक्ट्रानिक विधि से प्रदर्शित करने के काम आता है। इसी से ही कम्प्यूटर के मॉनिटर, टीवी, उपकरणों के पैनेल, तथा सामान्य जनजीवन में प्रयुक्त उपभोक्ता बस्तुओं (जैसे कैलकुलेटर, कलाई की घड़ियाँ आदि) के डिस्प्ले बनते हैं। हल्का होना, पोर्टेबल होना, कम बिजली से चलना, बड़ी आकृति में भी निर्माण में आसानी आदि इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं।
वस्तुत: यह एक "एलेक्ट्रानिक रीति से परिवर्तनीय प्रकाशीय युक्ति" (electronically-modulated optical device) है जो अनेकानेक पिक्सलों (pixels) से बनी होती है जिनमें द्रव क्रिस्टल से भरे होते हैं।
द्रव क्रिस्टल प्रादर्शी ('लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले, लघुरूप:LCD) एक पतला, सपाट डिस्प्ले (प्रादर्शी) है जो टेक्स्ट, छबि, विडियो आदि को एलेक्ट्रानिक विधि से प्रदर्शित करने के काम आता है। इसी से ही कम्प्यूटर के मॉनिटर, टीवी, उपकरणों के पैनेल, तथा सामान्य जनजीवन में प्रयुक्त उपभोक्ता बस्तुओं (जैसे कैलकुलेटर, कलाई की घड़ियाँ आदि) के डिस्प्ले बनते हैं। हल्का होना, पोर्टेबल होना, कम बिजली से चलना, बड़ी आकृति में भी निर्माण में आसानी आदि इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं।
वस्तुत: यह एक "एलेक्ट्रानिक रीति से परिवर्तनीय प्रकाशीय युक्ति" (electronically-modulated optical device) है जो अनेकानेक पिक्सलों (pixels) से बनी होती है जिनमें द्रव क्रिस्टल से भरे होते हैं।
असामान्य मनोविज्ञान
असामान्य मनोविज्ञान
आसामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्यों के असाधारण व्यवहारों, विचारों, ज्ञान, भावनाओं और क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करती है। असामान्य या असाधारण व्यवहार वह है जो सामान्य या साधारण व्यवहार से भिन्न हो। साधारण व्यवहार वह है जो बहुधा देखा जाता है और जिसको देखकर कोई आश्चर्य नहीं होता और न उसके लिए कोई चिंता ही होती है। वैसे तो सभी मनुष्यों के व्यवहार में कुछ न कुछ विशेषता और भिन्नता होती है जो एक व्यक्ति को दूसरे से भिन्न बतलाती है, फिर भी जबतक वह विशेषता अति अद्भुत न हो, कोई उससे उद्विग्न नहीं होता, उसकी ओर किसी का विशेष ध्यान नहीं जाता। पर जब किसी व्यक्ति का व्यवहार, ज्ञान, भावना, या क्रिया दूसरे व्यक्तियों से विशेष मात्रा और विशेष प्रकार से भिन्न हो और इतना भिन्न होकि दूसरे लोगों को विचित्र जान पड़े तो उस क्रिया या व्यवहार को असामान्य या असाधारण कहते हैं
असामान्य मनोविज्ञान के प्रकार
असामान्य मनोविज्ञान के कई प्रकार होते हैं :
(1) अभावात्मक, जिसमें किसी ऐसे व्यवहार, ज्ञान, भावना और क्रिया में से किसी का अभाव पाया जाए तो साधारण या सामान्य मनुष्यों में पाया जाता हो। जैसे किसी व्यक्ति में किसी प्रकार के इंद्रियज्ञान का अभाव, अथवा कामप्रवृत्ति अथवा क्रियाशक्ति का अभाव।
(2) किसी विशेष शक्ति, ज्ञान, भाव या क्रिया की अधिकता या मात्रा में वृद्धि।
(3) किसी विशेष शक्ति, ज्ञान, भाव या क्रिया की अधिकता या मात्रा में वृद्धि।
(4) असाधारण व्यवहार से इतना भिन्न व्यवहार कि वह अनोखा और आश्चर्यजनक जान पड़े। उदाहरणार्थ कह सकते हैं कि साधारण कामप्रवृत्ति के असामान्य रूप का भाव, कामह्रास, कामाधिक्य और विकृत काम हो सकते हैं।
किसी प्रकार की असामान्यता हो तो केवल उसी व्यक्ति को कष्ट और दु:ख नहीं होता जिसमें वह असामान्यता पाई जाती है, बल्कि समाज के लिए भी वह कष्टप्रद होकर एक समस्या बन जाती है। अतएव समाज के लिए असामान्यता एक बड़ी समस्या है। कहा जाता है कि संयुक्त राज्य, अमरीका में 10 प्रतिशत व्यक्ति असामान्य हैं, इसी कारण वहाँ का समाज समृद्ध और सब प्रकार से संपन्न होता हुआ थी सुखी नहीं कहा जा सकता।
कुछ असामान्यताएँ तो ऐसी होती हैं कि उनके कारण किसी की विशेष हानि नहीं होती, वे केवल आश्चर्य और कौतूहल का विषय होती हैं, किंतु कुछ असामान्यताएँ ऐसी होती हैं जिनके कारण व्यक्ति का अपना जीवन दु:खी, असफल और असमर्थ हो जाता है, पर उनसे दूसरों को विशेष कष्ट और हानि नहीं होती। उनको साधारण मानसिक रोग कहते हैं। जब मानसिक रोग इस प्रकार का हो जाए कि उससे दूसरे व्यक्तियों को भय, दु:ख, कष्ट और हानि होने लगे ते उसे पागलपन कहते हैं। पागलपन की मात्रा जब अधिक हो जाती है तो उस व्यक्ति को पागलखाने में रखा जाता है, ताकि वह स्वतंत्र रहकर दूसरों के लिए कष्टप्रद और हानिकारक न हो जाए।
उस समय और उन देशों में जब और जहाँ मनोविज्ञान का अधिक ज्ञान नहीं था, मनोरोगी और पागलों के संबंध में यह मिथ्या धारणा थी कि उनपर भूत, पिशाच या हैवान का प्रभाव पड़ गया है और वे उनमें से किसी के वश में होकर असामान्य व्यवहार करते हैं। उनको ठीक करने के लिए पूजा पाठ, मंत्र तंत्र और यंत्र आदि का प्रयोग होता था अथवा उनको बहुत मार पीटकर उनके शरीर से भूत पिशाच या शैतान भगाया जाता था।
आधुनिक समय में मनोविज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अब मनोरोग, पागलपन और मनुष्य के असामान्य व्यवहार के कारण, स्वरूप और उपचार को बहुत लोग जान गए हैं
असामान्य और असाधारण व्यवहारों के कारण
उपर्युक्त विषयों का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन करना असामान्य मनोविज्ञान का काम है, इसपर कोई मतभेद नहीं है; पर इस विज्ञान में इस विषय पर बड़ा मतभेद है कि इन असामान्य और असाधारण घटनाओं के कारण क्या हैं। यह तो सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि मनोविकृतियों की उत्पत्ति के कारणों में भूत, पिशाच, शैतान आदि के प्रभाव का मानना अनावश्यक और अवैज्ञानिक है। उनके कारण तो शरीर, मन और सामाजिक परिस्थितियों में ही ढूंढ़ने होंगे। इस संबंध में अनेक मत प्रचलित होते हुए भी तीन मतों को प्रधानता दी जा सकती है और उनमें समन्वय भी किया जा सकता है। वे ये हैं :
(1) शारीरिक तत्वों का रासायनिक ह्रास अथवा अतिवृद्धि। विषैले रासायनिक तत्वों का प्रवेश या अंतरुत्पादन और शारीरिक अंगों तथा अवयवों की, विशेषत: मस्तिष्क और स्नायुओं की, विकृति अथवा विनाश।
(2) सामाजिक परिस्थितियों की अत्यंत प्रतिकूलता और उनसे व्यक्ति के ऊपर अनुपयुक्त दबाव तथा उनके द्वारा व्यक्ति की पराजय। बाहरी आघात और साधनहीनता।
(3) अज्ञात और गुप्त मानसिक वासनाएँ, प्रवृत्तियाँ और भावनाएँ जिनका ज्ञान मन के ऊपर अज्ञात रूप से प्रभाव डालता है। इस दिशामें खोज करने में फ्रायड, एडलर और युंग ने बहुत कार्य किया है और उनकी बहुमूल्य खोजों के आधार पर बहुत से मानसिक रोगों का उपचार भी हो जाता है
मानसिक असामान्यताओं और रोगों का उपचार
मानसिक असामान्यताओं और रोगों का उपचार भी असामान्य मनोविज्ञान के अंतर्गत होता है।
रोगों के कारणों के अध्ययन के आधार पर ही अनेक प्रकार के उपचारों का निर्माण होता है। उनमें प्रधान ये हैं :
(1) रासायनिक कर्मी की पूर्ति।
(2) संमोहन द्वारा निर्देश देकर व्यक्ति की सुप्त शक्तियों का उद्बोधन।
(3) मनोविश्लेषण, जिसके द्वारा अज्ञात मन में निहित कारणों का ज्ञान प्राप्त करके दूर किया जाता है।
(4) मस्तिष्क की शल्यचिकित्सा।
(5) पुन:शिक्षण द्वारा बालकपन में हुए अनुपयुक्त स्वभावों को बदलकर दूसरे स्वभावों और प्रतिक्रियाओं का निर्माण इत्यादि।
अनेक प्रकार की विधियों का प्रयोग मानसिक चिकित्सा में किया जाता है।
आसामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्यों के असाधारण व्यवहारों, विचारों, ज्ञान, भावनाओं और क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करती है। असामान्य या असाधारण व्यवहार वह है जो सामान्य या साधारण व्यवहार से भिन्न हो। साधारण व्यवहार वह है जो बहुधा देखा जाता है और जिसको देखकर कोई आश्चर्य नहीं होता और न उसके लिए कोई चिंता ही होती है। वैसे तो सभी मनुष्यों के व्यवहार में कुछ न कुछ विशेषता और भिन्नता होती है जो एक व्यक्ति को दूसरे से भिन्न बतलाती है, फिर भी जबतक वह विशेषता अति अद्भुत न हो, कोई उससे उद्विग्न नहीं होता, उसकी ओर किसी का विशेष ध्यान नहीं जाता। पर जब किसी व्यक्ति का व्यवहार, ज्ञान, भावना, या क्रिया दूसरे व्यक्तियों से विशेष मात्रा और विशेष प्रकार से भिन्न हो और इतना भिन्न होकि दूसरे लोगों को विचित्र जान पड़े तो उस क्रिया या व्यवहार को असामान्य या असाधारण कहते हैं
असामान्य मनोविज्ञान के प्रकार
असामान्य मनोविज्ञान के कई प्रकार होते हैं :
(1) अभावात्मक, जिसमें किसी ऐसे व्यवहार, ज्ञान, भावना और क्रिया में से किसी का अभाव पाया जाए तो साधारण या सामान्य मनुष्यों में पाया जाता हो। जैसे किसी व्यक्ति में किसी प्रकार के इंद्रियज्ञान का अभाव, अथवा कामप्रवृत्ति अथवा क्रियाशक्ति का अभाव।
(2) किसी विशेष शक्ति, ज्ञान, भाव या क्रिया की अधिकता या मात्रा में वृद्धि।
(3) किसी विशेष शक्ति, ज्ञान, भाव या क्रिया की अधिकता या मात्रा में वृद्धि।
(4) असाधारण व्यवहार से इतना भिन्न व्यवहार कि वह अनोखा और आश्चर्यजनक जान पड़े। उदाहरणार्थ कह सकते हैं कि साधारण कामप्रवृत्ति के असामान्य रूप का भाव, कामह्रास, कामाधिक्य और विकृत काम हो सकते हैं।
किसी प्रकार की असामान्यता हो तो केवल उसी व्यक्ति को कष्ट और दु:ख नहीं होता जिसमें वह असामान्यता पाई जाती है, बल्कि समाज के लिए भी वह कष्टप्रद होकर एक समस्या बन जाती है। अतएव समाज के लिए असामान्यता एक बड़ी समस्या है। कहा जाता है कि संयुक्त राज्य, अमरीका में 10 प्रतिशत व्यक्ति असामान्य हैं, इसी कारण वहाँ का समाज समृद्ध और सब प्रकार से संपन्न होता हुआ थी सुखी नहीं कहा जा सकता।
कुछ असामान्यताएँ तो ऐसी होती हैं कि उनके कारण किसी की विशेष हानि नहीं होती, वे केवल आश्चर्य और कौतूहल का विषय होती हैं, किंतु कुछ असामान्यताएँ ऐसी होती हैं जिनके कारण व्यक्ति का अपना जीवन दु:खी, असफल और असमर्थ हो जाता है, पर उनसे दूसरों को विशेष कष्ट और हानि नहीं होती। उनको साधारण मानसिक रोग कहते हैं। जब मानसिक रोग इस प्रकार का हो जाए कि उससे दूसरे व्यक्तियों को भय, दु:ख, कष्ट और हानि होने लगे ते उसे पागलपन कहते हैं। पागलपन की मात्रा जब अधिक हो जाती है तो उस व्यक्ति को पागलखाने में रखा जाता है, ताकि वह स्वतंत्र रहकर दूसरों के लिए कष्टप्रद और हानिकारक न हो जाए।
उस समय और उन देशों में जब और जहाँ मनोविज्ञान का अधिक ज्ञान नहीं था, मनोरोगी और पागलों के संबंध में यह मिथ्या धारणा थी कि उनपर भूत, पिशाच या हैवान का प्रभाव पड़ गया है और वे उनमें से किसी के वश में होकर असामान्य व्यवहार करते हैं। उनको ठीक करने के लिए पूजा पाठ, मंत्र तंत्र और यंत्र आदि का प्रयोग होता था अथवा उनको बहुत मार पीटकर उनके शरीर से भूत पिशाच या शैतान भगाया जाता था।
आधुनिक समय में मनोविज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अब मनोरोग, पागलपन और मनुष्य के असामान्य व्यवहार के कारण, स्वरूप और उपचार को बहुत लोग जान गए हैं
असामान्य और असाधारण व्यवहारों के कारण
उपर्युक्त विषयों का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन करना असामान्य मनोविज्ञान का काम है, इसपर कोई मतभेद नहीं है; पर इस विज्ञान में इस विषय पर बड़ा मतभेद है कि इन असामान्य और असाधारण घटनाओं के कारण क्या हैं। यह तो सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि मनोविकृतियों की उत्पत्ति के कारणों में भूत, पिशाच, शैतान आदि के प्रभाव का मानना अनावश्यक और अवैज्ञानिक है। उनके कारण तो शरीर, मन और सामाजिक परिस्थितियों में ही ढूंढ़ने होंगे। इस संबंध में अनेक मत प्रचलित होते हुए भी तीन मतों को प्रधानता दी जा सकती है और उनमें समन्वय भी किया जा सकता है। वे ये हैं :
(1) शारीरिक तत्वों का रासायनिक ह्रास अथवा अतिवृद्धि। विषैले रासायनिक तत्वों का प्रवेश या अंतरुत्पादन और शारीरिक अंगों तथा अवयवों की, विशेषत: मस्तिष्क और स्नायुओं की, विकृति अथवा विनाश।
(2) सामाजिक परिस्थितियों की अत्यंत प्रतिकूलता और उनसे व्यक्ति के ऊपर अनुपयुक्त दबाव तथा उनके द्वारा व्यक्ति की पराजय। बाहरी आघात और साधनहीनता।
(3) अज्ञात और गुप्त मानसिक वासनाएँ, प्रवृत्तियाँ और भावनाएँ जिनका ज्ञान मन के ऊपर अज्ञात रूप से प्रभाव डालता है। इस दिशामें खोज करने में फ्रायड, एडलर और युंग ने बहुत कार्य किया है और उनकी बहुमूल्य खोजों के आधार पर बहुत से मानसिक रोगों का उपचार भी हो जाता है
मानसिक असामान्यताओं और रोगों का उपचार
मानसिक असामान्यताओं और रोगों का उपचार भी असामान्य मनोविज्ञान के अंतर्गत होता है।
रोगों के कारणों के अध्ययन के आधार पर ही अनेक प्रकार के उपचारों का निर्माण होता है। उनमें प्रधान ये हैं :
(1) रासायनिक कर्मी की पूर्ति।
(2) संमोहन द्वारा निर्देश देकर व्यक्ति की सुप्त शक्तियों का उद्बोधन।
(3) मनोविश्लेषण, जिसके द्वारा अज्ञात मन में निहित कारणों का ज्ञान प्राप्त करके दूर किया जाता है।
(4) मस्तिष्क की शल्यचिकित्सा।
(5) पुन:शिक्षण द्वारा बालकपन में हुए अनुपयुक्त स्वभावों को बदलकर दूसरे स्वभावों और प्रतिक्रियाओं का निर्माण इत्यादि।
अनेक प्रकार की विधियों का प्रयोग मानसिक चिकित्सा में किया जाता है।
मशीन भाषा
मशीनी भाषा
मशीनी भाषा कंप्यूटर की आधारभुत भाषा है, यह केवल 0 और 1 दो अंको के प्रयोग से निर्मित श्रृंखला से लिखी जाती है। यह एकमात्र कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा है जो कि कंप्यूटर द्वारा सीधे-सीधे समझी जाती है। इसे किसी अनुवादक प्रोग्राम का प्रयोग नही करना होता है। इसे कंप्यूटर का मशीनी संकेत भी कहा जाता है।
कंप्यूटर का परिपथ इस प्रकार तैयार किया जाता है कि यह मशीनी भाषा को तुरन्त पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो मे परिवर्तित कर लेता है। विधुत संकेतो की दो अवस्थाए होती है- हाई और लो अथवा Anticlock wise & clock wise, 1 का अर्थ है Pulse अथवा High तथा 0 का अर्थ है No Pulse या low।
मशीनी भाषा मे प्रत्येक निर्देश के दो भाग होते है- पहला क्रिया संकेत (Operation code अथवा Opcode) और दूसरा स्थिति संकेत (Location code अथवा Operand)। क्रिया संकेत कंप्यूटर को यह बताता जाता है कि क्या करना है और स्थिति संकेत यह बताता है कि आकडे कहां से प्राप्त करना है, कहां संग्रहीत करना है अथवा अन्य कोइ निर्देश जिसका की दक्षता से पालन किया जाना है।
मशीनी भाषा की विशेषताए
मशीनी भाषा मे लिखा गया प्रोग्राम कंप्यूटर द्वारा अत्यंत शीघ्रता से कार्यांवित हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मशीनी भाषा मे दिए गए निर्देश कंप्यूटर सीधे सीधे बिना किसी अनुवादक के समझ लेता है और अनुपालन कर देता है।
मशीनी भाषा की परिसीमाएं
मशीनी भाषा कंप्यूटर के ALU (Arithmatic Logic Unit) एवं Control Unit के डिजाइन अथवा रचना, आकार एवं Memory Unit के word की लम्बाई द्वारा निर्धारित होती है। एक बार किसी ALU के लिये मशीनी भाषा मे तैयार किये गए प्रोग्राम को किसी अन्य ALU पर चलाने के लिये उसे पुन: उस ALU के अनुसार मशीनी भाषा का अध्ययन करने और प्रोग्राम के पुन: लेखन की आवश्यकता होती है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम तैयार करना एक दुरूह कार्य है। इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को मशीनी निर्देशो या तो अनेकों संकेत संख्या के रूप मे याद करना पडता था अथवा एक निर्देशिका के संपर्क मे निरंतर रहना पडता था। साथ ही प्रोग्रामर को कंप्यूटर के Hardware Structure के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिये थी।
विभिन्न निर्देशो हेतु चूंकि मशीनी भाषा मे मात्र दो अंको 0 और 1 की श्रृंखला का प्रयोग होता है। अत: इसमे त्रुटि होने की सम्भावना अत्यधिक है। और प्रोग्राम मे त्रुटि होने पर त्रुटि को तलाश कर पाना तो भुस मे सुइ तलाशने के बराबर है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखना एक कठिन और अत्यधिक समय लगाने वाला कार्य है। इसीलिये वर्तमान समय मे मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखने का कार्य नगण्य है।
उच्च स्तरीय क्रमादेशन भाषा
मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा द्वारा क्रमादेश तैयार करने मे आने वाली कठिनाई को देखते हुए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस शोध मे जुट गए कि अब इस प्रकार की क्रमादेशन भाषा तैयार की जानी चाहिये जो कि कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर न हो। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का यह अगला कदम था। असेम्बलर के स्थान पर कम्पाइलर और इन्टरप्रेटर का विकास किया गया।अब कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये मशीनी भाषा को अंकीय क्रियान्वयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया।कम्प्यूटर मे प्रयोग की जाने वाली वह भाषा जिसमे अंग्रेजी अक्षरो,संख्याओ एवं चिन्हो का प्रयोग करके प्रोग्राम लिखा जाता है, उसे उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है।इस भाषा मे प्रोग्राम लिखना प्रोग्रामर के लिये बहुत ही आसान होता है,क्योंकि इसमे किसी भी निर्देश मशीन कोड मे बदलकर लिखने की आवश्यकता नही होती । जैसे -BASIC, COBOL,FORTRAN,PASCALअब तो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का अत्यन्त विकास हो चुका है। इन प्रोग्रमिंग भाषाओ को कार्यानुसार चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-(१) वैज्ञानिक प्रोग्रामिंग भाषाएं- इनका प्रयोग मुख्यत: वैज्ञानिक कार्यो के लिये प्रोग्राम बनाने मे होता है,परन्तु इनमे से कुछ भाषाएं ऎसी भी होती है जो वैज्ञानिक कार्यो के अलावा अन्य कार्यो को भी उतनी ही दक्षता से करती है।जैसे-ALGOL(Algorithmic language),BASIC,PASCAL,FORTRAN, आदि है।(२) व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषाएं-व्यापारिक कार्यो से सम्बंधित जैसे-बही खाता, रोजानामचा, स्टाक आदि का लेखा जोखा आदि व्यापारिक प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रोग्राम द्वारा अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।जैसे-PL1(Programing language 1),COBOL, DBASE आदि। (३) विशेष उद्देश्य प्रोग्रामिंग भाषाएं-ये भाषाएं विभिन्न कार्यो को विशेष क्षमता के साथ करने के लिये प्रयोग की जाती है।जैसे-(अ)APL360- पेरीफिरल युक्तियां सर्वश्रेष्ठ अनुप्रयोग हेतु प्रयोग की जाती है। यह भाषा 1968 से प्रचलन मे आई।(ब)LOGO- लोगो का विकास मात्र कम्प्यूटर शिक्षा को सरल बनाने हेतु किया गया। इस भाषा मे चित्रण इतना सरल है कि छोटे बच्चे भी चित्रण कर सकते है।लोगो भाषा मे चित्रण के लिये एक विशेष प्रकार की त्रिकोणाकार आकृति होती है जिसे टरटल कहते है। मॉनीटर पर प्रदर्शित रहता है लोगो भाषा के निर्देशो द्वारा यह टरटल, किसी भी तरफ घूम सकता है और आगे-पीछे चल सकता है। जब टरटल चलता है तो पीछे अपने मार्ग पर लकीर बनाता चलता है। इससे अनेक प्रकार के चित्रो को सरलता से बनाया जा सकता है।(४) बहुउद्देशीय भाषाएं- जो भाषाएं समान रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक कार्यो को करने की क्षमता रखती है, उन्हे बहुउद्देशीय भाषाएं कहते है।जैसे- BASIC,PASCAL,PL1
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं
(१) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाए कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर नही करती। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रोग्राम के प्रयोगकर्ता के कम्प्यूटर बदलने पर अर्थात विभिन्न ALU और Control unit मे भी यह प्रोग्राम सूक्ष्मतम सुधार के बाद समान रूप से चलता है।(२)इन भाषाओ मे प्रयोग किये जाने वाले शब्द सामान्य अंग्रेजी भाषा मे होते है।(३)इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे गलतियो की सम्भावना कम होती है तथा गलतियो को जल्द ढूंढकर सुधारा जा सकता है।प्रयोग किया गया अनुवादक कम्पाइलर अथवा इन्टरप्रेटर प्रोग्राम मे किस लाइन और निर्देश मे गलती है यह स्वयं ही सूचित कर देता है।(४) प्रोग्राम लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की परिसीमाएं
(१)इन भाषाओ मे लिखा गया प्रोग्राम चलने मे मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा मे लिखे गये प्रोग्राम की अपेक्षा कम्प्यूटर की मुख्य स्मृति मे अधिक स्थान घेरता है।(२)इन भाषाओ मे लचीलापन नही होता है अनुवादको के स्वयं नियन्त्रित होने के कारण यह प्रोग्रामर के नियन्त्रण मे नही होता है। लचीलेपन से तात्पर्य है कि कुछ विशेष कार्य इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे नही किए जा सकते है अथवा अत्यन्त कठिनाई से साथ किए जा सकते है। फिर भी उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं उसकी परिसीमाओ की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। अत: वर्तमान मे यही भाषाएं प्रयोग की जाती है।
उच्च स्तरीय भाषाओ का परिचय
प्रोग्रामिंग भाषाओ के विकास के इतिहास पर नजर डाली जाए तो डॉ। ग्रेस हापर का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इन्होने ही सन 1952 के आस-पास उच्च स्तरीय भाषाओ का विकास किया था। जिसमे एक कम्पाइलर का प्रयोग किया गया था। डॉ हापर के निर्देशन मे दो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ को विकसित किया गया पहली-FLOWMATIC और MATHEMATICS। FLOWMATIC एक व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषा थी और MATHEMATICS एक अंकगणितीय गणनाओ मे प्रयुक्त की जाने वाली भाषा। तब से लेकर अब तक लगभग 225 उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का विकास हो चुका है। उदाहरण:FORTRAN, COBOL, BASIC, PASCAL।
असेम्बली भाषा
मशीनी भाषा द्वारा प्रोग्राम तैयार करने मे आने वाली कठिनाईयो को दूर करने हेतु कम्प्यूटर वैज्ञानिको ने एक अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम भाषा का निर्माण किया। इस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा को असेम्बली भाषा कहते है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का पहला कदम यह था कि मशीनी भाषा को अंकीय क्रियांवयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया। स्मरणोपकारी का अर्थ यह है कि -एसी युक्ति जो हमारी स्मृति मे वर्ध्दन करें। जैसे घटाने के लिये मशीनी भाषा मे द्विअंकीय प्रणाली मे 1111 और दशमलव प्रणाली मे 15 का प्रयोग किया जाता है, अब यदि इसके लिये मात्र sub का प्रयोग किया जाए तो यह प्रोग्रामर की समय मे सरलता लाएगी।
पारिभाषिक शब्दो मे, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा जिसमे मशीनी भाषा मे प्रयुक्त अंकीय संकेतो के स्थान पर अक्षर अथवा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है, असेम्बली भाषा अथवा symbol language कहलाती है।असेम्बली भाषा मे मशीन कोड के स्थान पर ’नेमोनिक कोड’ का प्रयोग किया गया जिन्हे मानव मस्तिष्क आसानी से पहचान सकता था जैसे-LDA(load),Tran(Translation),JMP(Jump) एवं इसी प्रकार के अन्य नेमोनिक कोड जिन्हे आसानी से पहचाना व याद रखा जा सकता था। इनमे से प्रत्येक के लिये एक मशीन कोड भी निर्धारित किया गया,पर असेम्बली कोड से मशीन कोड मे परिवर्तन का काम, कम्प्यूटर मे ही स्थित एक प्रोग्राम के जरिये किया जाने लगा,इस प्रकार के प्रोग्राम को असेम्बलर नाम दिया गया। यह एक अनुवादक की भांति कार्य करता है।
असेम्बली भाषा की विशेषताएं
(१)नेमोनिक कोड और आकडो हेतु उपयुक्त नाम के प्रयोग के कारण इस प्रोग्रामिंग भाषा को अपेक्षाकृत अधिक सरलता से समझा जा सकता है।(२)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे कम समय लगता है।(३)इसमे गलतियो को सरलता से ढूंढकर दूर किया जा सकता है।(४)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे मशीनी भाषा की अनेक विशेषताओ का समावेश है।
असेम्बली भाषा की परिसीमाए
(१)चूंकि इस प्रोग्रामिंग भाषा मे प्रत्येक निर्देश चिन्हो एवं संकेतो मे दिया जाता है और इसका अनुवाद सीधे मशीनी भाषा मे होता है अत: यह भाषा भी हार्डवेयर पर निर्भर करती है। भिन्न ALU एवं Controling Unit के लिये भिन्न प्रोग्राम लिखना पडता है।(२)प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को हार्डवेयर की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।
मशीनी भाषा कंप्यूटर की आधारभुत भाषा है, यह केवल 0 और 1 दो अंको के प्रयोग से निर्मित श्रृंखला से लिखी जाती है। यह एकमात्र कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा है जो कि कंप्यूटर द्वारा सीधे-सीधे समझी जाती है। इसे किसी अनुवादक प्रोग्राम का प्रयोग नही करना होता है। इसे कंप्यूटर का मशीनी संकेत भी कहा जाता है।
कंप्यूटर का परिपथ इस प्रकार तैयार किया जाता है कि यह मशीनी भाषा को तुरन्त पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो मे परिवर्तित कर लेता है। विधुत संकेतो की दो अवस्थाए होती है- हाई और लो अथवा Anticlock wise & clock wise, 1 का अर्थ है Pulse अथवा High तथा 0 का अर्थ है No Pulse या low।
मशीनी भाषा मे प्रत्येक निर्देश के दो भाग होते है- पहला क्रिया संकेत (Operation code अथवा Opcode) और दूसरा स्थिति संकेत (Location code अथवा Operand)। क्रिया संकेत कंप्यूटर को यह बताता जाता है कि क्या करना है और स्थिति संकेत यह बताता है कि आकडे कहां से प्राप्त करना है, कहां संग्रहीत करना है अथवा अन्य कोइ निर्देश जिसका की दक्षता से पालन किया जाना है।
मशीनी भाषा की विशेषताए
मशीनी भाषा मे लिखा गया प्रोग्राम कंप्यूटर द्वारा अत्यंत शीघ्रता से कार्यांवित हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मशीनी भाषा मे दिए गए निर्देश कंप्यूटर सीधे सीधे बिना किसी अनुवादक के समझ लेता है और अनुपालन कर देता है।
मशीनी भाषा की परिसीमाएं
मशीनी भाषा कंप्यूटर के ALU (Arithmatic Logic Unit) एवं Control Unit के डिजाइन अथवा रचना, आकार एवं Memory Unit के word की लम्बाई द्वारा निर्धारित होती है। एक बार किसी ALU के लिये मशीनी भाषा मे तैयार किये गए प्रोग्राम को किसी अन्य ALU पर चलाने के लिये उसे पुन: उस ALU के अनुसार मशीनी भाषा का अध्ययन करने और प्रोग्राम के पुन: लेखन की आवश्यकता होती है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम तैयार करना एक दुरूह कार्य है। इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को मशीनी निर्देशो या तो अनेकों संकेत संख्या के रूप मे याद करना पडता था अथवा एक निर्देशिका के संपर्क मे निरंतर रहना पडता था। साथ ही प्रोग्रामर को कंप्यूटर के Hardware Structure के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिये थी।
विभिन्न निर्देशो हेतु चूंकि मशीनी भाषा मे मात्र दो अंको 0 और 1 की श्रृंखला का प्रयोग होता है। अत: इसमे त्रुटि होने की सम्भावना अत्यधिक है। और प्रोग्राम मे त्रुटि होने पर त्रुटि को तलाश कर पाना तो भुस मे सुइ तलाशने के बराबर है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखना एक कठिन और अत्यधिक समय लगाने वाला कार्य है। इसीलिये वर्तमान समय मे मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखने का कार्य नगण्य है।
उच्च स्तरीय क्रमादेशन भाषा
मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा द्वारा क्रमादेश तैयार करने मे आने वाली कठिनाई को देखते हुए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस शोध मे जुट गए कि अब इस प्रकार की क्रमादेशन भाषा तैयार की जानी चाहिये जो कि कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर न हो। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का यह अगला कदम था। असेम्बलर के स्थान पर कम्पाइलर और इन्टरप्रेटर का विकास किया गया।अब कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये मशीनी भाषा को अंकीय क्रियान्वयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया।कम्प्यूटर मे प्रयोग की जाने वाली वह भाषा जिसमे अंग्रेजी अक्षरो,संख्याओ एवं चिन्हो का प्रयोग करके प्रोग्राम लिखा जाता है, उसे उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है।इस भाषा मे प्रोग्राम लिखना प्रोग्रामर के लिये बहुत ही आसान होता है,क्योंकि इसमे किसी भी निर्देश मशीन कोड मे बदलकर लिखने की आवश्यकता नही होती । जैसे -BASIC, COBOL,FORTRAN,PASCALअब तो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का अत्यन्त विकास हो चुका है। इन प्रोग्रमिंग भाषाओ को कार्यानुसार चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-(१) वैज्ञानिक प्रोग्रामिंग भाषाएं- इनका प्रयोग मुख्यत: वैज्ञानिक कार्यो के लिये प्रोग्राम बनाने मे होता है,परन्तु इनमे से कुछ भाषाएं ऎसी भी होती है जो वैज्ञानिक कार्यो के अलावा अन्य कार्यो को भी उतनी ही दक्षता से करती है।जैसे-ALGOL(Algorithmic language),BASIC,PASCAL,FORTRAN, आदि है।(२) व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषाएं-व्यापारिक कार्यो से सम्बंधित जैसे-बही खाता, रोजानामचा, स्टाक आदि का लेखा जोखा आदि व्यापारिक प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रोग्राम द्वारा अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।जैसे-PL1(Programing language 1),COBOL, DBASE आदि। (३) विशेष उद्देश्य प्रोग्रामिंग भाषाएं-ये भाषाएं विभिन्न कार्यो को विशेष क्षमता के साथ करने के लिये प्रयोग की जाती है।जैसे-(अ)APL360- पेरीफिरल युक्तियां सर्वश्रेष्ठ अनुप्रयोग हेतु प्रयोग की जाती है। यह भाषा 1968 से प्रचलन मे आई।(ब)LOGO- लोगो का विकास मात्र कम्प्यूटर शिक्षा को सरल बनाने हेतु किया गया। इस भाषा मे चित्रण इतना सरल है कि छोटे बच्चे भी चित्रण कर सकते है।लोगो भाषा मे चित्रण के लिये एक विशेष प्रकार की त्रिकोणाकार आकृति होती है जिसे टरटल कहते है। मॉनीटर पर प्रदर्शित रहता है लोगो भाषा के निर्देशो द्वारा यह टरटल, किसी भी तरफ घूम सकता है और आगे-पीछे चल सकता है। जब टरटल चलता है तो पीछे अपने मार्ग पर लकीर बनाता चलता है। इससे अनेक प्रकार के चित्रो को सरलता से बनाया जा सकता है।(४) बहुउद्देशीय भाषाएं- जो भाषाएं समान रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक कार्यो को करने की क्षमता रखती है, उन्हे बहुउद्देशीय भाषाएं कहते है।जैसे- BASIC,PASCAL,PL1
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं
(१) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाए कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर नही करती। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रोग्राम के प्रयोगकर्ता के कम्प्यूटर बदलने पर अर्थात विभिन्न ALU और Control unit मे भी यह प्रोग्राम सूक्ष्मतम सुधार के बाद समान रूप से चलता है।(२)इन भाषाओ मे प्रयोग किये जाने वाले शब्द सामान्य अंग्रेजी भाषा मे होते है।(३)इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे गलतियो की सम्भावना कम होती है तथा गलतियो को जल्द ढूंढकर सुधारा जा सकता है।प्रयोग किया गया अनुवादक कम्पाइलर अथवा इन्टरप्रेटर प्रोग्राम मे किस लाइन और निर्देश मे गलती है यह स्वयं ही सूचित कर देता है।(४) प्रोग्राम लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की परिसीमाएं
(१)इन भाषाओ मे लिखा गया प्रोग्राम चलने मे मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा मे लिखे गये प्रोग्राम की अपेक्षा कम्प्यूटर की मुख्य स्मृति मे अधिक स्थान घेरता है।(२)इन भाषाओ मे लचीलापन नही होता है अनुवादको के स्वयं नियन्त्रित होने के कारण यह प्रोग्रामर के नियन्त्रण मे नही होता है। लचीलेपन से तात्पर्य है कि कुछ विशेष कार्य इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे नही किए जा सकते है अथवा अत्यन्त कठिनाई से साथ किए जा सकते है। फिर भी उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं उसकी परिसीमाओ की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। अत: वर्तमान मे यही भाषाएं प्रयोग की जाती है।
उच्च स्तरीय भाषाओ का परिचय
प्रोग्रामिंग भाषाओ के विकास के इतिहास पर नजर डाली जाए तो डॉ। ग्रेस हापर का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इन्होने ही सन 1952 के आस-पास उच्च स्तरीय भाषाओ का विकास किया था। जिसमे एक कम्पाइलर का प्रयोग किया गया था। डॉ हापर के निर्देशन मे दो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ को विकसित किया गया पहली-FLOWMATIC और MATHEMATICS। FLOWMATIC एक व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषा थी और MATHEMATICS एक अंकगणितीय गणनाओ मे प्रयुक्त की जाने वाली भाषा। तब से लेकर अब तक लगभग 225 उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का विकास हो चुका है। उदाहरण:FORTRAN, COBOL, BASIC, PASCAL।
असेम्बली भाषा
मशीनी भाषा द्वारा प्रोग्राम तैयार करने मे आने वाली कठिनाईयो को दूर करने हेतु कम्प्यूटर वैज्ञानिको ने एक अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम भाषा का निर्माण किया। इस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा को असेम्बली भाषा कहते है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का पहला कदम यह था कि मशीनी भाषा को अंकीय क्रियांवयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया। स्मरणोपकारी का अर्थ यह है कि -एसी युक्ति जो हमारी स्मृति मे वर्ध्दन करें। जैसे घटाने के लिये मशीनी भाषा मे द्विअंकीय प्रणाली मे 1111 और दशमलव प्रणाली मे 15 का प्रयोग किया जाता है, अब यदि इसके लिये मात्र sub का प्रयोग किया जाए तो यह प्रोग्रामर की समय मे सरलता लाएगी।
पारिभाषिक शब्दो मे, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा जिसमे मशीनी भाषा मे प्रयुक्त अंकीय संकेतो के स्थान पर अक्षर अथवा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है, असेम्बली भाषा अथवा symbol language कहलाती है।असेम्बली भाषा मे मशीन कोड के स्थान पर ’नेमोनिक कोड’ का प्रयोग किया गया जिन्हे मानव मस्तिष्क आसानी से पहचान सकता था जैसे-LDA(load),Tran(Translation),JMP(Jump) एवं इसी प्रकार के अन्य नेमोनिक कोड जिन्हे आसानी से पहचाना व याद रखा जा सकता था। इनमे से प्रत्येक के लिये एक मशीन कोड भी निर्धारित किया गया,पर असेम्बली कोड से मशीन कोड मे परिवर्तन का काम, कम्प्यूटर मे ही स्थित एक प्रोग्राम के जरिये किया जाने लगा,इस प्रकार के प्रोग्राम को असेम्बलर नाम दिया गया। यह एक अनुवादक की भांति कार्य करता है।
असेम्बली भाषा की विशेषताएं
(१)नेमोनिक कोड और आकडो हेतु उपयुक्त नाम के प्रयोग के कारण इस प्रोग्रामिंग भाषा को अपेक्षाकृत अधिक सरलता से समझा जा सकता है।(२)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे कम समय लगता है।(३)इसमे गलतियो को सरलता से ढूंढकर दूर किया जा सकता है।(४)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे मशीनी भाषा की अनेक विशेषताओ का समावेश है।
असेम्बली भाषा की परिसीमाए
(१)चूंकि इस प्रोग्रामिंग भाषा मे प्रत्येक निर्देश चिन्हो एवं संकेतो मे दिया जाता है और इसका अनुवाद सीधे मशीनी भाषा मे होता है अत: यह भाषा भी हार्डवेयर पर निर्भर करती है। भिन्न ALU एवं Controling Unit के लिये भिन्न प्रोग्राम लिखना पडता है।(२)प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को हार्डवेयर की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।
हिंदी के नोट्स
कंप्यूटर नेटवर्क
कंप्यूटर नेटवर्क दो या दो से अधिक परस्पर जुडे हुए कम्प्यूटर और उन्हें जोडने वाली व्यवस्था को कहते हैं । ये कम्प्यूटर आपस में इलेक्ट्रोनिक सूचना का आदान-प्रदान कर सकते हैं, और आपस में तार या बेतार से जुडे रहते हैं। सूचना का यह आवागमन खास परिपाटी से होता है, जिसे
प्रोटोकॉल कहते हैं और नेटवर्क के प्रत्येक कम्प्यूटर को इसका पालन करना पड़ता है। कई नेटवर्क जब एक साथ जुड़ते हैं तो इसे इंटरनेटवर्क कहते हैं जिसका संक्षिप्त रूप इन्टरनेट (अंतर्जाल, अंग्रेज़ी में Internet) काफ़ी प्रचलित है । अलग अलग प्रकार की सूचनाओं के कार्यकुशल आदान-प्रदान के लिये विशेष प्रोटोकॉल हैं।
सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए एनालॉग तथा डिजिटल विधियों का प्रयोग होता है । नेटवर्क के उपादानों में तार, हब, स्विच, राउटर आदि उपकरणों का नाम लिया जा सकता है । स्थानीय कम्प्यूटर नेटवर्किंग में बेतार नेटवर्क का प्रभाव बढ़ता जा रहा है ।
सीमित क्षेत्रीय जाल (LAN)
एक खास छोटी दूरी के संगणकों को जोड़ने के काम आने वाला नेटवर्क । इसमें डाटा के आदान-प्रदान की गति तीव्र होती है और इसका संचालन और देखरेख एक संस्था या समूह मात्र द्वारा संभव हो पाता है । उदाहरणस्वरूप एक कॉलेज के विभिन्न विभागों तथा छात्रावासों के बीच का नेटवर्क ।
वृहत क्षेत्रीय जाल (WAN)
दूरस्थ संगणकों को जोड़ने में प्रयुक्त । इसमें आदान-प्रदान की गति कम होती है तथा अक्सर बाहर के सेवा प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है । उदाहरण के लिए किसी कंपनी के बेंगलुर और मुंबई स्थित कार्यालयों के संगणकों को जोड़ने की व्यवस्था जिसके लिए बीएसएनएल या किसी अन्य इंटरनेट सेवा प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है ।
blogs
चिट्ठा (अंग्रेज़ी:ब्लॉग), बहुवचन: चिट्ठे (अंग्रेज़ी:ब्लॉग्स), वेब लॉग (weblog) शब्द का सूक्ष्म रूप होता है। चिट्ठे एक प्रकार के व्यक्तिगत जालपृष्ठ (वेबसाइट) होते हैं जिन्हें दैनन्दिनी (डायरी) की तरह लिखा जाता है।[१] हर चिट्ठे में कुछ लेख, फोटो और बाहरी कड़ियां होती हैं। इनके विषय सामान्य भी हो सकते हैं और विशेष भी। चिट्ठा लिखने वाले को चिट्ठाकार तथा इस कार्य को चिट्ठाकारी अथवा चिट्ठाकारिता कहा जाता है। कई चिट्ठे किसी खास विषय से संबंधित होते हैं, व उस विषय से जुड़े समाचार, जानकारी या विचार आदि उपलब्ध कराते हैं। एक चिट्ठे में उस विषय से जुड़े पाठ, चित्र/मीडिया व अन्य चिट्ठों के लिंक्स मिल सकते हैं। चिट्ठों में पाठकों को अपनी टीका-टिप्पणियां देने की क्षमता उन्हें एक इंटरैक्टिव प्रारूप प्रदन प्रदान करती है।[२] अधिकतर चिट्ठे मुख्य तौर पर पाठ रूप में होते हैं, हालांकि कुछ कलाओं(आर्ट ब्लॉग्स), छायाचित्रों (फोटोग्राफ़ी ब्लॉग्स), वीडियो, संगीत (एमपी३ ब्लॉग्स) एवं ऑडियो (पॉडकास्टिंग) पर केन्द्रित भी होते हैं।
चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे सरल तरीका है, किसी अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा वेसाइट जैसे ब्लॉग्स्पॉट या लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि जैसे स्थलों में से किसी एक पर खाता खोल कर लिखना शुरू करना।[३]एक अन्य प्रकार की चिट्ठेकारी माइक्रोब्लॉगिंग कहलाती है। इसमें अति लघु आकार के पोस्ट्स होते हैं।
दिसंबर २००७ तक, ब्लॉग सर्च इंजिन टेक्नोरैटी द्वारा ११२,०००,००० चिट्ठे ट्रैक किये जा रहे थे।[४]
आज के कंप्यूटर जगत में ब्लॉग का भारी चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध मशहूर हस्तियों के ब्लॉग लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और उन पर अपने विचार भी भेजते हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद के विषयों पर लिखते हैं और कई चिट्ठे विश्व भर में मशहूर होते हैं जिनका हवाला कई नीति-निर्धारण मुद्दों में किया जाता है। ब्लॉग का आरंभ १९९२ में लांच की गई पहली वेबसाइट के साथ ही हो गया था। आगे चलकर १९९० के दशक के अंतिम वर्षो में जाकर ब्लॉगिंग ने जोर पकड़ा। आरंभिक ब्लॉग कंप्यूटर जगत संबंधी मूलभूत जानकारी के थे। लेकिन बाद में कई विषयों के ब्लॉग सामने आने लगे। वर्तमान समय में लेखन का हल्का सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति अपना एक ब्लॉग बना सकता है, चूंकि यह निःशुल्क होता है, और अपना लिखा पूरे विश्व के सामने तक पहुंचा सकता है।[२]
चिट्ठों पर राजनीतिक विचार, उत्पादों के विज्ञापन, शोधपत्र और शिक्षा का आदान-प्रदान भी किया जाता है। कई लोग चिट्ठों पर अपनी शिकायतें भी दर्ज कर के दूसरों को भेजते हैं। इन शिकायतों में दबी-छुपी भाषा से लेकर बेहद कर्कश भाषा तक प्रयोग की जाती है।वर्ष २००४ में ब्लॉग शब्द को मेरियम-वेबस्टर में आधिकारिक तौर पर सम्मिलित किया गया था। कई लोग अब चिट्ठों के माध्यम से ही एक दूसरे से संपर्क में रहने लग गए हैं। इस प्रकार एक तरह से चिट्ठाकारी या ब्लॉगिंग अब विश्व के साथ-साथ निजी संपर्क में रहने का माध्यम भी बन गया है। कई कंपनियां आपके चिट्ठों की सेवाओं को अत्यंत सरल बनाने के लिए कई सुविधाएं देने लग गई हैं।
internet
सर्वप्रथम १९६२ में विश्वविद्यालय के जे सी आर लिकलिडर ने अभिकलित्र जाल तैयार किया था। वे चाहते थे कि अभिकलित्र का एक एसा जाल हो ,जिससे आंकड़ो, क्रमादेश और सूचनायें भेजी जा सके। 1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान परियोजना अभिकरण) (en:DARPA) ने आरपानेट के रूप में अभिकलित्र जाल बनायायह जाल चार स्थानो से जुडा था। बाद में इसमें भी कई परिवर्तन हुए और 1972 में बाँब काँहन ने अन्तर्राष्ट्रीय अभिकलित्र संचार सम्मेलन ने पहला सजीव प्रदर्शन किया। 1 जनवरी 1983 को आरपानेट (en:ARPANET) पुनर्स्थापित हुआ TCP-IP। इसी वर्ष एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन हुआ।नवंबर में पहली [[प्रक्षेत्र] नाम सेवा (DNS) पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई अंतरजाल सैनिक और असैनिक भागों में बाँटा गया हालाँकि 1971 में संचिका अन्तरण नियमावली (FTP)विकसित हुआ, जिससे संचिका अन्तरण करना आसान हो गया 1990 मे टिम बेनर्स ली ने विश्वव्यापी जाल(WWW) से परिचित कराया
अमरीकी सेना की सूचना और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 1973 में ``यू एस एडवांस रिसर्च प्र्रोजेक्ट एजेंसी´´ ने एक कार्यक्रम की शुरुआत की। उस कार्यक्रम का उद्देश्य था कम्प्यूटरों के द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से जोड़ा जाए और एक `नेटवर्क´ बनाया जाए। इसका उद्देश्य संचार संबंधी मूल बातों ( कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल ) को एक साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर नेटवर्क के माध्यम से देखा और पढ़ा जा सके। इसे ``इन्टरनेटिंग प्रोजेक्ट´´ नाम दिया गया जो आगे चलकर `इंटरनेट´ के नाम से जाना जाने लगा। 1986 में अमरीका की ``नेशनल सांइस फांउडेशन´´ ने ``एनएसएफनेट´´ का विकास किया जो आज इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है। एक सैकण्ड में 45 मेगाबाइट संचार सुविधा वाली इस प्रौद्योगिकी के कारण `एनएसएफनेट´ बारह अरब -12 बिलियन- सूचना पैकेट्स को एक महीने में अपने नेटवर्क पर आदान-प्रदान करने में सक्षम हो गया। इस प्रौद्योगिकी को और अधिक तेज गति देने के लिए `नासा´ और उर्जा विभाग ने अनुसंधान किया और ``एनएसआईनेट´´ और `ईएसनेट´ जैसी सुविधाओं को इसका आधार बनाया।
इन्टरनेट हेतु `क्षेत्रीय´ सहायता कन्सर्टियम नेटवर्कों द्वारा तथा स्थानीय सहायता अनुसंधान व शिक्षा संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। अमरीका में फेडरल तथा राज्य सरकारों की इसमें अहम भूमिका है परन्तु उद्योगों का भी इसमें काफी हाथ रहा है। यूरोप व अन्य देशों में पारस्परिक अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व राष्ट्रीय अनुसंधान संगठन भी इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1991 के अन्त तक इन्टरनेट इस कदर विकसित हुआ कि इसमें तीन दर्जन देशों के 5 हजार नेटवर्क शामिल हो गए, जिनकी पहुंच 7 लाख कम्प्यूटरों तक हो गई। इस प्रकार 4 करोड़ उपभोक्ताओं ने इससे लाभ उठाना शुरू किया।
इन्टरनेट समुदाय को अमरीकी फेडरल सरकार की सहायता लगातार उपलब्ध होती रही क्योंकि मूल रूप से इन्टरनेट अमरीका के अनुसंधान कार्य का ही एक हिस्सा था। आज भी यह अमरीकी अनुसंधान कार्यशाला का महत्वपूर्ण अंग है किन्तु 1980 के दशक के अन्त में नेटवर्क सेवाओं व इन्टरनेट उपभोक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक गतिविधियों के लिये भी किया जाने लगा। सच तो ये है कि आज की इन्टरनेट प्रणाली का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा व अनुसंधान संस्थानों एवं विश्व-स्तरीय निजी व सरकारी व्यापार संगठनों की निजी नेटवर्क सेवाओं से ही बना है।
इंटरनेट का तकनीकी विकास
पिछले 1८ सालों से इंटरनेट सहकारी पक्षों के बीच सहयोगी भूमिका निभाता चला आ रहा है। इंटरनेट के संचालन में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं। इनमे से एक है प्रणाली को संचालित करने वाले प्रोटोकोल का निर्धारण। प्रोटोकोल का मूल विकास डीएआरपीए अनुंसधान कार्यक्रम में किया गया किन्तु पिछले 5-6 सालों में यह कार्य विभिन्न देशों की सरकारी एजेंसियों, उद्योगों व शैक्षिक समुदाय की सहायता से विस्तृत रूप से किया जाने लगा है। इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये 1983 में अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है।
इस बोर्ड व टास्क फोर्स के नियमित संचालन के लिये सचिवालय का भी गठन किया गया है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स की मीटिंग औपचारिक रूप से चार महीने में एक बार होती ही है। इसके 50 कार्यकारी दल समय-समय पर `ई-मेल´ टेलीकान्फ्रेंसिग व रू-बरू मीटिगों द्वारा प्रगति की समीक्षा करते हैं। बोर्ड की मीटिंग भी तीन-तीन महीने में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से और अनेेकों बार टेलीफोन, ई-मेल अथवा कम्प्यूटर कान्फ्रेसों के जरिये होती रहती है।
बोर्ड के दो और महत्वपूर्ण कार्य हैं - इंटरनेट संबन्धी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। इंटरनेट के क्रमिक विकास के दौरान इसके प्रोटोकोल व संचालन के अन्य पक्षों को पहले `इंटरनेट एक्सपेरिमेंट नोट्स´ और बाद में `रिक्वेस्टस फॉर कमेंन्ट्स´ नामक दस्तावेजों के रूप में संग्रहीत किये जाते हैं। दस्तावेज इंटरनेट विषयक सूचना के मुख्य पुरालेख बन गये हैं।
आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग `इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स ऑथोरिटी´ उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक `इंटरनेट रजिस्ट्री´ (आई आर) को दे रखी है। `इन्टरनेट रजिस्ट्री´ ही डोमेन नेम सिस्टम -डी एन एस- रूट डाटाबेस का केन्द्रीय रखरखाव करती है जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक `डी एन एस सर्वर्स´ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल `होस्ट´ तथा `नेटवर्क´ नामों को उनके `एडडेसिज´ से कनैक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है । उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर `नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स´ (सूचना केन्द्र)- स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
आरम्भ में इंटरनेट उपभोगकर्ता समुदाय में जहां केवल कम्प्यूटर सांइस तथा इंजीनियरिंग श्रेणी के लोग ही हुआ करते थे, आज इसके उपभोक्ताओं में विज्ञान, कला, संस्कृति, सरकारी/गैर सरकारी प्रशासन व सैन्य-जगत के ही नहीं बल्कि कृषि एवं व्यापार जगत के लोग भी शामिल हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई भी व्यक्ति `इंटरनेट´ के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना कर सके।
संक्षिप्त इतिहास (प्रमुख घटनाएँ)
वर्ष
घटना
1958
बेल पहले मॉडेम के लिए एक टेलीफोन लाइन [१] बाइनरी डेटा संचारित [१]
1961
लियोनार्ड एमआईटी के Kleinrock के लिए डेटा [१] हस्तांतरण पैकेट स्विचन के प्रयोग पर पहला सिद्धांत [१]
1962
खोज ARPA, रक्षा, विभाग की एक एजेंसी द्वारा शुरू होती है जब JCR Licklider सफलतापूर्वक कंप्यूटर के एक वैश्विक नेटवर्क पर अपने विचारों का बचाव करते हैं.
1964
लियोनार्ड एमआईटी के Kleinrock एक नेटवर्क [१] करने के लिए संचार के पैकेट पर एक पुस्तक [१]
1967
अरपानेट पर पहले सम्मेलन
1969
इंटरफेस Leonard Kleinrock का संदेश प्रोसेसर द्वारा 4 अमेरिकी विश्वविद्यालयों से पहले कंप्यूटर कनेक्ट
1971
साँचा:Nombre कंप्यूटर अरपानेट पर जुड़े हुए हैं
1972
Internetworking कार्य समूह, एक इंटरनेट के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार संगठन का जन्म
1973
इंग्लैंड और नॉर्वे प्रत्येक 1 कंप्यूटर के साथ इंटरनेट में शामिल
1979
बनाने Newsgroups अमेरिकी छात्रों द्वारा (मंचों)
1981
फ्रांस में Minitel की शुरुआत
1982
स्थापना टीसीपी / आईपी और इंटरनेट शब्द ""
1983
प्रथम नाम सर्वर साइटें
1984
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1987
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1989
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1990
अरपानेट के लापता
1991
वर्ल्ड वाइड वेब की सार्वजनिक घोषणा
1992
साँचा:Nombre कंप्यूटर जुड़ा
1993
NCSA मौज़ेक के रूप वेब ब्राउज़र
1996
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1999
साँचा:Nombre उपयोगकर्ताओं को दुनिया भर में
2000
इंटरनेट का बुलबुला धमाका
2005
साँचा:Refnec
2007
साँचा:Refnec
कंप्यूटर नेटवर्क दो या दो से अधिक परस्पर जुडे हुए कम्प्यूटर और उन्हें जोडने वाली व्यवस्था को कहते हैं । ये कम्प्यूटर आपस में इलेक्ट्रोनिक सूचना का आदान-प्रदान कर सकते हैं, और आपस में तार या बेतार से जुडे रहते हैं। सूचना का यह आवागमन खास परिपाटी से होता है, जिसे
प्रोटोकॉल कहते हैं और नेटवर्क के प्रत्येक कम्प्यूटर को इसका पालन करना पड़ता है। कई नेटवर्क जब एक साथ जुड़ते हैं तो इसे इंटरनेटवर्क कहते हैं जिसका संक्षिप्त रूप इन्टरनेट (अंतर्जाल, अंग्रेज़ी में Internet) काफ़ी प्रचलित है । अलग अलग प्रकार की सूचनाओं के कार्यकुशल आदान-प्रदान के लिये विशेष प्रोटोकॉल हैं।
सूचनाओं के आदान प्रदान के लिए एनालॉग तथा डिजिटल विधियों का प्रयोग होता है । नेटवर्क के उपादानों में तार, हब, स्विच, राउटर आदि उपकरणों का नाम लिया जा सकता है । स्थानीय कम्प्यूटर नेटवर्किंग में बेतार नेटवर्क का प्रभाव बढ़ता जा रहा है ।
सीमित क्षेत्रीय जाल (LAN)
एक खास छोटी दूरी के संगणकों को जोड़ने के काम आने वाला नेटवर्क । इसमें डाटा के आदान-प्रदान की गति तीव्र होती है और इसका संचालन और देखरेख एक संस्था या समूह मात्र द्वारा संभव हो पाता है । उदाहरणस्वरूप एक कॉलेज के विभिन्न विभागों तथा छात्रावासों के बीच का नेटवर्क ।
वृहत क्षेत्रीय जाल (WAN)
दूरस्थ संगणकों को जोड़ने में प्रयुक्त । इसमें आदान-प्रदान की गति कम होती है तथा अक्सर बाहर के सेवा प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है । उदाहरण के लिए किसी कंपनी के बेंगलुर और मुंबई स्थित कार्यालयों के संगणकों को जोड़ने की व्यवस्था जिसके लिए बीएसएनएल या किसी अन्य इंटरनेट सेवा प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है ।
blogs
चिट्ठा (अंग्रेज़ी:ब्लॉग), बहुवचन: चिट्ठे (अंग्रेज़ी:ब्लॉग्स), वेब लॉग (weblog) शब्द का सूक्ष्म रूप होता है। चिट्ठे एक प्रकार के व्यक्तिगत जालपृष्ठ (वेबसाइट) होते हैं जिन्हें दैनन्दिनी (डायरी) की तरह लिखा जाता है।[१] हर चिट्ठे में कुछ लेख, फोटो और बाहरी कड़ियां होती हैं। इनके विषय सामान्य भी हो सकते हैं और विशेष भी। चिट्ठा लिखने वाले को चिट्ठाकार तथा इस कार्य को चिट्ठाकारी अथवा चिट्ठाकारिता कहा जाता है। कई चिट्ठे किसी खास विषय से संबंधित होते हैं, व उस विषय से जुड़े समाचार, जानकारी या विचार आदि उपलब्ध कराते हैं। एक चिट्ठे में उस विषय से जुड़े पाठ, चित्र/मीडिया व अन्य चिट्ठों के लिंक्स मिल सकते हैं। चिट्ठों में पाठकों को अपनी टीका-टिप्पणियां देने की क्षमता उन्हें एक इंटरैक्टिव प्रारूप प्रदन प्रदान करती है।[२] अधिकतर चिट्ठे मुख्य तौर पर पाठ रूप में होते हैं, हालांकि कुछ कलाओं(आर्ट ब्लॉग्स), छायाचित्रों (फोटोग्राफ़ी ब्लॉग्स), वीडियो, संगीत (एमपी३ ब्लॉग्स) एवं ऑडियो (पॉडकास्टिंग) पर केन्द्रित भी होते हैं।
चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे सरल तरीका है, किसी अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा वेसाइट जैसे ब्लॉग्स्पॉट या लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि जैसे स्थलों में से किसी एक पर खाता खोल कर लिखना शुरू करना।[३]एक अन्य प्रकार की चिट्ठेकारी माइक्रोब्लॉगिंग कहलाती है। इसमें अति लघु आकार के पोस्ट्स होते हैं।
दिसंबर २००७ तक, ब्लॉग सर्च इंजिन टेक्नोरैटी द्वारा ११२,०००,००० चिट्ठे ट्रैक किये जा रहे थे।[४]
आज के कंप्यूटर जगत में ब्लॉग का भारी चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध मशहूर हस्तियों के ब्लॉग लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और उन पर अपने विचार भी भेजते हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद के विषयों पर लिखते हैं और कई चिट्ठे विश्व भर में मशहूर होते हैं जिनका हवाला कई नीति-निर्धारण मुद्दों में किया जाता है। ब्लॉग का आरंभ १९९२ में लांच की गई पहली वेबसाइट के साथ ही हो गया था। आगे चलकर १९९० के दशक के अंतिम वर्षो में जाकर ब्लॉगिंग ने जोर पकड़ा। आरंभिक ब्लॉग कंप्यूटर जगत संबंधी मूलभूत जानकारी के थे। लेकिन बाद में कई विषयों के ब्लॉग सामने आने लगे। वर्तमान समय में लेखन का हल्का सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति अपना एक ब्लॉग बना सकता है, चूंकि यह निःशुल्क होता है, और अपना लिखा पूरे विश्व के सामने तक पहुंचा सकता है।[२]
चिट्ठों पर राजनीतिक विचार, उत्पादों के विज्ञापन, शोधपत्र और शिक्षा का आदान-प्रदान भी किया जाता है। कई लोग चिट्ठों पर अपनी शिकायतें भी दर्ज कर के दूसरों को भेजते हैं। इन शिकायतों में दबी-छुपी भाषा से लेकर बेहद कर्कश भाषा तक प्रयोग की जाती है।वर्ष २००४ में ब्लॉग शब्द को मेरियम-वेबस्टर में आधिकारिक तौर पर सम्मिलित किया गया था। कई लोग अब चिट्ठों के माध्यम से ही एक दूसरे से संपर्क में रहने लग गए हैं। इस प्रकार एक तरह से चिट्ठाकारी या ब्लॉगिंग अब विश्व के साथ-साथ निजी संपर्क में रहने का माध्यम भी बन गया है। कई कंपनियां आपके चिट्ठों की सेवाओं को अत्यंत सरल बनाने के लिए कई सुविधाएं देने लग गई हैं।
internet
सर्वप्रथम १९६२ में विश्वविद्यालय के जे सी आर लिकलिडर ने अभिकलित्र जाल तैयार किया था। वे चाहते थे कि अभिकलित्र का एक एसा जाल हो ,जिससे आंकड़ो, क्रमादेश और सूचनायें भेजी जा सके। 1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान परियोजना अभिकरण) (en:DARPA) ने आरपानेट के रूप में अभिकलित्र जाल बनायायह जाल चार स्थानो से जुडा था। बाद में इसमें भी कई परिवर्तन हुए और 1972 में बाँब काँहन ने अन्तर्राष्ट्रीय अभिकलित्र संचार सम्मेलन ने पहला सजीव प्रदर्शन किया। 1 जनवरी 1983 को आरपानेट (en:ARPANET) पुनर्स्थापित हुआ TCP-IP। इसी वर्ष एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन हुआ।नवंबर में पहली [[प्रक्षेत्र] नाम सेवा (DNS) पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई अंतरजाल सैनिक और असैनिक भागों में बाँटा गया हालाँकि 1971 में संचिका अन्तरण नियमावली (FTP)विकसित हुआ, जिससे संचिका अन्तरण करना आसान हो गया 1990 मे टिम बेनर्स ली ने विश्वव्यापी जाल(WWW) से परिचित कराया
अमरीकी सेना की सूचना और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 1973 में ``यू एस एडवांस रिसर्च प्र्रोजेक्ट एजेंसी´´ ने एक कार्यक्रम की शुरुआत की। उस कार्यक्रम का उद्देश्य था कम्प्यूटरों के द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से जोड़ा जाए और एक `नेटवर्क´ बनाया जाए। इसका उद्देश्य संचार संबंधी मूल बातों ( कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल ) को एक साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर नेटवर्क के माध्यम से देखा और पढ़ा जा सके। इसे ``इन्टरनेटिंग प्रोजेक्ट´´ नाम दिया गया जो आगे चलकर `इंटरनेट´ के नाम से जाना जाने लगा। 1986 में अमरीका की ``नेशनल सांइस फांउडेशन´´ ने ``एनएसएफनेट´´ का विकास किया जो आज इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है। एक सैकण्ड में 45 मेगाबाइट संचार सुविधा वाली इस प्रौद्योगिकी के कारण `एनएसएफनेट´ बारह अरब -12 बिलियन- सूचना पैकेट्स को एक महीने में अपने नेटवर्क पर आदान-प्रदान करने में सक्षम हो गया। इस प्रौद्योगिकी को और अधिक तेज गति देने के लिए `नासा´ और उर्जा विभाग ने अनुसंधान किया और ``एनएसआईनेट´´ और `ईएसनेट´ जैसी सुविधाओं को इसका आधार बनाया।
इन्टरनेट हेतु `क्षेत्रीय´ सहायता कन्सर्टियम नेटवर्कों द्वारा तथा स्थानीय सहायता अनुसंधान व शिक्षा संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। अमरीका में फेडरल तथा राज्य सरकारों की इसमें अहम भूमिका है परन्तु उद्योगों का भी इसमें काफी हाथ रहा है। यूरोप व अन्य देशों में पारस्परिक अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व राष्ट्रीय अनुसंधान संगठन भी इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1991 के अन्त तक इन्टरनेट इस कदर विकसित हुआ कि इसमें तीन दर्जन देशों के 5 हजार नेटवर्क शामिल हो गए, जिनकी पहुंच 7 लाख कम्प्यूटरों तक हो गई। इस प्रकार 4 करोड़ उपभोक्ताओं ने इससे लाभ उठाना शुरू किया।
इन्टरनेट समुदाय को अमरीकी फेडरल सरकार की सहायता लगातार उपलब्ध होती रही क्योंकि मूल रूप से इन्टरनेट अमरीका के अनुसंधान कार्य का ही एक हिस्सा था। आज भी यह अमरीकी अनुसंधान कार्यशाला का महत्वपूर्ण अंग है किन्तु 1980 के दशक के अन्त में नेटवर्क सेवाओं व इन्टरनेट उपभोक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक गतिविधियों के लिये भी किया जाने लगा। सच तो ये है कि आज की इन्टरनेट प्रणाली का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा व अनुसंधान संस्थानों एवं विश्व-स्तरीय निजी व सरकारी व्यापार संगठनों की निजी नेटवर्क सेवाओं से ही बना है।
इंटरनेट का तकनीकी विकास
पिछले 1८ सालों से इंटरनेट सहकारी पक्षों के बीच सहयोगी भूमिका निभाता चला आ रहा है। इंटरनेट के संचालन में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं। इनमे से एक है प्रणाली को संचालित करने वाले प्रोटोकोल का निर्धारण। प्रोटोकोल का मूल विकास डीएआरपीए अनुंसधान कार्यक्रम में किया गया किन्तु पिछले 5-6 सालों में यह कार्य विभिन्न देशों की सरकारी एजेंसियों, उद्योगों व शैक्षिक समुदाय की सहायता से विस्तृत रूप से किया जाने लगा है। इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये 1983 में अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है।
इस बोर्ड व टास्क फोर्स के नियमित संचालन के लिये सचिवालय का भी गठन किया गया है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स की मीटिंग औपचारिक रूप से चार महीने में एक बार होती ही है। इसके 50 कार्यकारी दल समय-समय पर `ई-मेल´ टेलीकान्फ्रेंसिग व रू-बरू मीटिगों द्वारा प्रगति की समीक्षा करते हैं। बोर्ड की मीटिंग भी तीन-तीन महीने में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से और अनेेकों बार टेलीफोन, ई-मेल अथवा कम्प्यूटर कान्फ्रेसों के जरिये होती रहती है।
बोर्ड के दो और महत्वपूर्ण कार्य हैं - इंटरनेट संबन्धी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। इंटरनेट के क्रमिक विकास के दौरान इसके प्रोटोकोल व संचालन के अन्य पक्षों को पहले `इंटरनेट एक्सपेरिमेंट नोट्स´ और बाद में `रिक्वेस्टस फॉर कमेंन्ट्स´ नामक दस्तावेजों के रूप में संग्रहीत किये जाते हैं। दस्तावेज इंटरनेट विषयक सूचना के मुख्य पुरालेख बन गये हैं।
आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग `इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स ऑथोरिटी´ उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक `इंटरनेट रजिस्ट्री´ (आई आर) को दे रखी है। `इन्टरनेट रजिस्ट्री´ ही डोमेन नेम सिस्टम -डी एन एस- रूट डाटाबेस का केन्द्रीय रखरखाव करती है जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक `डी एन एस सर्वर्स´ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल `होस्ट´ तथा `नेटवर्क´ नामों को उनके `एडडेसिज´ से कनैक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है । उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर `नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स´ (सूचना केन्द्र)- स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
आरम्भ में इंटरनेट उपभोगकर्ता समुदाय में जहां केवल कम्प्यूटर सांइस तथा इंजीनियरिंग श्रेणी के लोग ही हुआ करते थे, आज इसके उपभोक्ताओं में विज्ञान, कला, संस्कृति, सरकारी/गैर सरकारी प्रशासन व सैन्य-जगत के ही नहीं बल्कि कृषि एवं व्यापार जगत के लोग भी शामिल हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई भी व्यक्ति `इंटरनेट´ के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना कर सके।
संक्षिप्त इतिहास (प्रमुख घटनाएँ)
वर्ष
घटना
1958
बेल पहले मॉडेम के लिए एक टेलीफोन लाइन [१] बाइनरी डेटा संचारित [१]
1961
लियोनार्ड एमआईटी के Kleinrock के लिए डेटा [१] हस्तांतरण पैकेट स्विचन के प्रयोग पर पहला सिद्धांत [१]
1962
खोज ARPA, रक्षा, विभाग की एक एजेंसी द्वारा शुरू होती है जब JCR Licklider सफलतापूर्वक कंप्यूटर के एक वैश्विक नेटवर्क पर अपने विचारों का बचाव करते हैं.
1964
लियोनार्ड एमआईटी के Kleinrock एक नेटवर्क [१] करने के लिए संचार के पैकेट पर एक पुस्तक [१]
1967
अरपानेट पर पहले सम्मेलन
1969
इंटरफेस Leonard Kleinrock का संदेश प्रोसेसर द्वारा 4 अमेरिकी विश्वविद्यालयों से पहले कंप्यूटर कनेक्ट
1971
साँचा:Nombre कंप्यूटर अरपानेट पर जुड़े हुए हैं
1972
Internetworking कार्य समूह, एक इंटरनेट के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार संगठन का जन्म
1973
इंग्लैंड और नॉर्वे प्रत्येक 1 कंप्यूटर के साथ इंटरनेट में शामिल
1979
बनाने Newsgroups अमेरिकी छात्रों द्वारा (मंचों)
1981
फ्रांस में Minitel की शुरुआत
1982
स्थापना टीसीपी / आईपी और इंटरनेट शब्द ""
1983
प्रथम नाम सर्वर साइटें
1984
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1987
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1989
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1990
अरपानेट के लापता
1991
वर्ल्ड वाइड वेब की सार्वजनिक घोषणा
1992
साँचा:Nombre कंप्यूटर जुड़ा
1993
NCSA मौज़ेक के रूप वेब ब्राउज़र
1996
साँचा:Nombre कंप्यूटर
1999
साँचा:Nombre उपयोगकर्ताओं को दुनिया भर में
2000
इंटरनेट का बुलबुला धमाका
2005
साँचा:Refnec
2007
साँचा:Refnec
Thursday, April 15, 2010
बाप रे बाप खाप
aaj khaap ka naam sunte hi sabke muh se yahi baat nikalti hai ki baap re baap khaap. khaap aaj se hi vivaad me nahi hai balki ek labe arse se eske saath vivaad ka chooli daaman ka saath raha hai. par aaj ka samay media yug hai aur media kisi bhi mamle ko bhunane se baaj nahi ata. parantu eske kai sakaratmak pahlu bhi hai jab media jyada sakriya nahi tha to najane kitne hi manoj kitni hi babli in khaapo ke tuglaki farmano ki shikaar hue ho. khair kuch bhi ho khaape aaj bhi ye baat maanne ko tayaar nahi hai ki unhone kabhi kisi ko shararik dannd diya hai. abhi 13 april ko kurukshetra me hue sarvdharm sarvkhaap mahapanchayat ki baat hi lelo khaapo ke jo thekedaar doosro ka insaaf karte hai wo manch par apni bate manwane ke liye lato ghuso ka upyoog karte najar aie. shyaad inhe ye abhaas nahi tha ki inki is harkat se logo ke beach unki chavi aur jyada kharaab hogi aur jo abhyaan unhone apni chavi sudharne ke liye chalaya tha wo uki ijjat utaar dega. khair khaapo ke bare me kya kahe wo to ek bhudhi maansikta wale logo ki jamaat hai jo log apne faislo ko doosro par thoopna apna adhikaar samajhte hai lekin harbaar ya har maamle me aisa ho ye jaroori nahi. jyadatar mamlo me khaapoke nirnyo ko sabhi loog manyata de dete hai aur khaape hamari nyaay pranali ka bhoojh kam karti hai. mere najarye se agar khaape apni jimmederi ko samajhte hue sahi nirnay de aur aur samay ke saath ho rahe badlav ko apnale to ye desh ki tarakki me ek mahatvpurn bhumika ada kar sakti hai.
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