Monday, April 19, 2010

असामान्य मनोविज्ञान

असामान्य मनोविज्ञान
आसामान्य मनोविज्ञान (Abnormal Psychology) मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्यों के असाधारण व्यवहारों, विचारों, ज्ञान, भावनाओं और क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करती है। असामान्य या असाधारण व्यवहार वह है जो सामान्य या साधारण व्यवहार से भिन्न हो। साधारण व्यवहार वह है जो बहुधा देखा जाता है और जिसको देखकर कोई आश्चर्य नहीं होता और न उसके लिए कोई चिंता ही होती है। वैसे तो सभी मनुष्यों के व्यवहार में कुछ न कुछ विशेषता और भिन्नता होती है जो एक व्यक्ति को दूसरे से भिन्न बतलाती है, फिर भी जबतक वह विशेषता अति अद्भुत न हो, कोई उससे उद्विग्न नहीं होता, उसकी ओर किसी का विशेष ध्यान नहीं जाता। पर जब किसी व्यक्ति का व्यवहार, ज्ञान, भावना, या क्रिया दूसरे व्यक्तियों से विशेष मात्रा और विशेष प्रकार से भिन्न हो और इतना भिन्न होकि दूसरे लोगों को विचित्र जान पड़े तो उस क्रिया या व्यवहार को असामान्य या असाधारण कहते हैं
असामान्य मनोविज्ञान के प्रकार
असामान्य मनोविज्ञान के कई प्रकार होते हैं :
(1) अभावात्मक, जिसमें किसी ऐसे व्यवहार, ज्ञान, भावना और क्रिया में से किसी का अभाव पाया जाए तो साधारण या सामान्य मनुष्यों में पाया जाता हो। जैसे किसी व्यक्ति में किसी प्रकार के इंद्रियज्ञान का अभाव, अथवा कामप्रवृत्ति अथवा क्रियाशक्ति का अभाव।
(2) किसी विशेष शक्ति, ज्ञान, भाव या क्रिया की अधिकता या मात्रा में वृद्धि।
(3) किसी विशेष शक्ति, ज्ञान, भाव या क्रिया की अधिकता या मात्रा में वृद्धि।
(4) असाधारण व्यवहार से इतना भिन्न व्यवहार कि वह अनोखा और आश्चर्यजनक जान पड़े। उदाहरणार्थ कह सकते हैं कि साधारण कामप्रवृत्ति के असामान्य रूप का भाव, कामह्रास, कामाधिक्य और विकृत काम हो सकते हैं।
किसी प्रकार की असामान्यता हो तो केवल उसी व्यक्ति को कष्ट और दु:ख नहीं होता जिसमें वह असामान्यता पाई जाती है, बल्कि समाज के लिए भी वह कष्टप्रद होकर एक समस्या बन जाती है। अतएव समाज के लिए असामान्यता एक बड़ी समस्या है। कहा जाता है कि संयुक्त राज्य, अमरीका में 10 प्रतिशत व्यक्ति असामान्य हैं, इसी कारण वहाँ का समाज समृद्ध और सब प्रकार से संपन्न होता हुआ थी सुखी नहीं कहा जा सकता।
कुछ असामान्यताएँ तो ऐसी होती हैं कि उनके कारण किसी की विशेष हानि नहीं होती, वे केवल आश्चर्य और कौतूहल का विषय होती हैं, किंतु कुछ असामान्यताएँ ऐसी होती हैं जिनके कारण व्यक्ति का अपना जीवन दु:खी, असफल और असमर्थ हो जाता है, पर उनसे दूसरों को विशेष कष्ट और हानि नहीं होती। उनको साधारण मानसिक रोग कहते हैं। जब मानसिक रोग इस प्रकार का हो जाए कि उससे दूसरे व्यक्तियों को भय, दु:ख, कष्ट और हानि होने लगे ते उसे पागलपन कहते हैं। पागलपन की मात्रा जब अधिक हो जाती है तो उस व्यक्ति को पागलखाने में रखा जाता है, ताकि वह स्वतंत्र रहकर दूसरों के लिए कष्टप्रद और हानिकारक न हो जाए।
उस समय और उन देशों में जब और जहाँ मनोविज्ञान का अधिक ज्ञान नहीं था, मनोरोगी और पागलों के संबंध में यह मिथ्या धारणा थी कि उनपर भूत, पिशाच या हैवान का प्रभाव पड़ गया है और वे उनमें से किसी के वश में होकर असामान्य व्यवहार करते हैं। उनको ठीक करने के लिए पूजा पाठ, मंत्र तंत्र और यंत्र आदि का प्रयोग होता था अथवा उनको बहुत मार पीटकर उनके शरीर से भूत पिशाच या शैतान भगाया जाता था।
आधुनिक समय में मनोविज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अब मनोरोग, पागलपन और मनुष्य के असामान्य व्यवहार के कारण, स्वरूप और उपचार को बहुत लोग जान गए हैं
असामान्य और असाधारण व्यवहारों के कारण
उपर्युक्त विषयों का वैज्ञानिक रीति से अध्ययन करना असामान्य मनोविज्ञान का काम है, इसपर कोई मतभेद नहीं है; पर इस विज्ञान में इस विषय पर बड़ा मतभेद है कि इन असामान्य और असाधारण घटनाओं के कारण क्या हैं। यह तो सभी वैज्ञानिक मानते हैं कि मनोविकृतियों की उत्पत्ति के कारणों में भूत, पिशाच, शैतान आदि के प्रभाव का मानना अनावश्यक और अवैज्ञानिक है। उनके कारण तो शरीर, मन और सामाजिक परिस्थितियों में ही ढूंढ़ने होंगे। इस संबंध में अनेक मत प्रचलित होते हुए भी तीन मतों को प्रधानता दी जा सकती है और उनमें समन्वय भी किया जा सकता है। वे ये हैं :
(1) शारीरिक तत्वों का रासायनिक ह्रास अथवा अतिवृद्धि। विषैले रासायनिक तत्वों का प्रवेश या अंतरुत्पादन और शारीरिक अंगों तथा अवयवों की, विशेषत: मस्तिष्क और स्नायुओं की, विकृति अथवा विनाश।
(2) सामाजिक परिस्थितियों की अत्यंत प्रतिकूलता और उनसे व्यक्ति के ऊपर अनुपयुक्त दबाव तथा उनके द्वारा व्यक्ति की पराजय। बाहरी आघात और साधनहीनता।
(3) अज्ञात और गुप्त मानसिक वासनाएँ, प्रवृत्तियाँ और भावनाएँ जिनका ज्ञान मन के ऊपर अज्ञात रूप से प्रभाव डालता है। इस दिशामें खोज करने में फ्रायड, एडलर और युंग ने बहुत कार्य किया है और उनकी बहुमूल्य खोजों के आधार पर बहुत से मानसिक रोगों का उपचार भी हो जाता है
मानसिक असामान्यताओं और रोगों का उपचार
मानसिक असामान्यताओं और रोगों का उपचार भी असामान्य मनोविज्ञान के अंतर्गत होता है।
रोगों के कारणों के अध्ययन के आधार पर ही अनेक प्रकार के उपचारों का निर्माण होता है। उनमें प्रधान ये हैं :
(1) रासायनिक कर्मी की पूर्ति।
(2) संमोहन द्वारा निर्देश देकर व्यक्ति की सुप्त शक्तियों का उद्बोधन।
(3) मनोविश्लेषण, जिसके द्वारा अज्ञात मन में निहित कारणों का ज्ञान प्राप्त करके दूर किया जाता है।
(4) मस्तिष्क की शल्यचिकित्सा।
(5) पुन:शिक्षण द्वारा बालकपन में हुए अनुपयुक्त स्वभावों को बदलकर दूसरे स्वभावों और प्रतिक्रियाओं का निर्माण इत्यादि।
अनेक प्रकार की विधियों का प्रयोग मानसिक चिकित्सा में किया जाता है।

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