Saturday, June 19, 2010

computer

असेम्बली भाषामशीनी भाषा द्वारा प्रोग्राम तैयार करने मे आने वाली कठिनाईयो को दूर करने हेतु कम्प्यूटर वैज्ञानिको ने एक अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम भाषा का निर्माण किया। इस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा को असेम्बली भाषा कहते है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का पहला कदम यह था कि मशीनी भाषा को अंकीय क्रियांवयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया। स्मरणोपकारी का अर्थ यह है कि -एसी युक्ति जो हमारी स्मृति मे वर्ध्दन करें। जैसे घटाने के लिये मशीनी भाषा मे द्विअंकीय प्रणाली मे 1111 और दशमलव प्रणाली मे 15 का प्रयोग किया जाता है, अब यदि इसके लिये मात्र sub का प्रयोग किया जाए तो यह प्रोग्रामर की समय मे सरलता लाएगी।पारिभाषिक शब्दो मे, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा जिसमे मशीनी भाषा मे प्रयुक्त अंकीय संकेतो के स्थान पर अक्षर अथवा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है, असेम्बली भाषा अथवा symbol language कहलाती है।असेम्बली भाषा मे मशीन कोड के स्थान पर ’नेमोनिक कोड’ का प्रयोग किया गया जिन्हे मानव मस्तिष्क आसानी से पहचान सकता था जैसे-LDA(load),Tran(Translation),JMP(Jump) एवं इसी प्रकार के अन्य नेमोनिक कोड जिन्हे आसानी से पहचाना व याद रखा जा सकता था। इनमे से प्रत्येक के लिये एक मशीन कोड भी निर्धारित किया गया,पर असेम्बली कोड से मशीन कोड मे परिवर्तन का काम, कम्प्यूटर मे ही स्थित एक प्रोग्राम के जरिये किया जाने लगा,इस प्रकार के प्रोग्राम को असेम्बलर नाम दिया गया। यह एक अनुवादक की भांति कार्य करता है।असेम्बली भाषा की विशेषताएं(१)नेमोनिक कोड और आकडो हेतु उपयुक्त नाम के प्रयोग के कारण इस प्रोग्रामिंग भाषा को अपेक्षाकृत अधिक सरलता से समझा जा सकता है।(२)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे कम समय लगता है।(३)इसमे गलतियो को सरलता से ढूंढकर दूर किया जा सकता है।(४)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे मशीनी भाषा की अनेक विशेषताओ का समावेश है।असेम्बली भाषा की परिसीमाए(१) चूंकि इस प्रोग्रामिंग भाषा मे प्रत्येक निर्देश चिन्हो एवं संकेतो मे दिया जाता है और इसका अनुवाद सीधे मशीनी भाषा मे होता है अत: यह भाषा भी हार्डवेयर पर निर्भर करती है। भिन्न ALU एवं Controling Unit के लिये भिन्न प्रोग्राम लिखना पडता है।(२) प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को हार्डवेयर की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।उच्च स्तरीय क्रमादेशन भाषा(
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
से अनुप्रेषित)मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा द्वारा क्रमादेश तैयार करने मे आने वाली कठिनाई को देखते हुए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस शोध मे जुट गए कि अब इस प्रकार की क्रमादेशन भाषा तैयार की जानी चाहिये जो कि कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर न हो। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का यह अगला कदम था। असेम्बलर के स्थान पर कम्पाइलर और इन्टरप्रेटर का विकास किया गया।अब कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये मशीनी भाषा को अंकीय क्रियान्वयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया।कम्प्यूटर मे प्रयोग की जाने वाली वह भाषा जिसमे अंग्रेजी अक्षरो,संख्याओ एवं चिन्हो का प्रयोग करके प्रोग्राम लिखा जाता है, उसे उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है।इस भाषा मे प्रोग्राम लिखना प्रोग्रामर के लिये बहुत ही आसान होता है,क्योंकि इसमे किसी भी निर्देश मशीन कोड मे बदलकर लिखने की आवश्यकता नही होती । जैसे -BASIC, COBOL,FORTRAN,PASCALअब तो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का अत्यन्त विकास हो चुका है। इन प्रोग्रमिंग भाषाओ को कार्यानुसार चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-(१) वैज्ञानिक प्रोग्रामिंग भाषाएं- इनका प्रयोग मुख्यत: वैज्ञानिक कार्यो के लिये प्रोग्राम बनाने मे होता है,परन्तु इनमे से कुछ भाषाएं ऎसी भी होती है जो वैज्ञानिक कार्यो के अलावा अन्य कार्यो को भी उतनी ही दक्षता से करती है।जैसे-ALGOL(Algorithmic language),BASIC,PASCAL,FORTRAN, आदि है।(२) व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषाएं-व्यापारिक कार्यो से सम्बंधित जैसे-बही खाता, रोजानामचा, स्टाक आदि का लेखा जोखा आदि व्यापारिक प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रोग्राम द्वारा अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।जैसे-PL1(Programing language 1),COBOL, DBASE आदि। (३) विशेष उद्देश्य प्रोग्रामिंग भाषाएं-ये भाषाएं विभिन्न कार्यो को विशेष क्षमता के साथ करने के लिये प्रयोग की जाती है।जैसे-(अ)APL360- पेरीफिरल युक्तियां सर्वश्रेष्ठ अनुप्रयोग हेतु प्रयोग की जाती है। यह भाषा 1968 से प्रचलन मे आई।(ब)LOGO- लोगो का विकास मात्र कम्प्यूटर शिक्षा को सरल बनाने हेतु किया गया। इस भाषा मे चित्रण इतना सरल है कि छोटे बच्चे भी चित्रण कर सकते है।लोगो भाषा मे चित्रण के लिये एक विशेष प्रकार की त्रिकोणाकार आकृति होती है जिसे टरटल कहते है। मॉनीटर पर प्रदर्शित रहता है लोगो भाषा के निर्देशो द्वारा यह टरटल, किसी भी तरफ घूम सकता है और आगे-पीछे चल सकता है। जब टरटल चलता है तो पीछे अपने मार्ग पर लकीर बनाता चलता है। इससे अनेक प्रकार के चित्रो को सरलता से बनाया जा सकता है।(४) बहुउद्देशीय भाषाएं- जो भाषाएं समान रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक कार्यो को करने की क्षमता रखती है, उन्हे बहुउद्देशीय भाषाएं कहते है।जैसे- BASIC,PASCAL,PL1उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं(१) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाए कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर नही करती। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रोग्राम के प्रयोगकर्ता के कम्प्यूटर बदलने पर अर्थात विभिन्न ALU और Control unit मे भी यह प्रोग्राम सूक्ष्मतम सुधार के बाद समान रूप से चलता है।(२)इन भाषाओ मे प्रयोग किये जाने वाले शब्द सामान्य अंग्रेजी भाषा मे होते है।(३)इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे गलतियो की सम्भावना कम होती है तथा गलतियो को जल्द ढूंढकर सुधारा जा सकता है।प्रयोग किया गया अनुवादक कम्पाइलर अथवा इन्टरप्रेटर प्रोग्राम मे किस लाइन और निर्देश मे गलती है यह स्वयं ही सूचित कर देता है।(४) प्रोग्राम लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की परिसीमाएं(१)इन भाषाओ मे लिखा गया प्रोग्राम चलने मे मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा मे लिखे गये प्रोग्राम की अपेक्षा कम्प्यूटर की मुख्य स्मृति मे अधिक स्थान घेरता है।(२)इन भाषाओ मे लचीलापन नही होता है अनुवादको के स्वयं नियन्त्रित होने के कारण यह प्रोग्रामर के नियन्त्रण मे नही होता है। लचीलेपन से तात्पर्य है कि कुछ विशेष कार्य इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे नही किए जा सकते है अथवा अत्यन्त कठिनाई से साथ किए जा सकते है। फिर भी उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं उसकी परिसीमाओ की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। अत: वर्तमान मे यही भाषाएं प्रयोग की जाती है।उच्च स्तरीय भाषाओ का परिचयप्रोग्रामिंग भाषाओ के विकास के इतिहास पर नजर डाली जाए तो डॉ। ग्रेस हापर का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इन्होने ही सन 1952 के आस-पास उच्च स्तरीय भाषाओ का विकास किया था। जिसमे एक कम्पाइलर का प्रयोग किया गया था। डॉ हापर के निर्देशन मे दो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ को विकसित किया गया पहली-FLOWMATIC और MATHEMATICS। FLOWMATIC एक व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषा थी और MATHEMATICS एक अंकगणितीय गणनाओ मे प्रयुक्त की जाने वाली भाषा। तब से लेकर अब तक लगभग 225 उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का विकास हो चुका है। उदाहरण:FORTRAN, COBOL, BASIC, PASCAL।मशीनी भाषामशीनी भाषा
कंप्यूटर की आधारभुत भाषा है, यह केवल 0 और 1 दो अंको के प्रयोग से निर्मित श्रृंखला से लिखी जाती है। यह एकमात्र कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा है जो कि कंप्यूटर द्वारा सीधे-सीधे समझी जाती है। इसे किसी अनुवादक प्रोग्राम का प्रयोग नही करना होता है। इसे कंप्यूटर का मशीनी संकेत भी कहा जाता है।कंप्यूटर का परिपथ इस प्रकार तैयार किया जाता है कि यह मशीनी भाषा को तुरन्त पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो मे परिवर्तित कर लेता है। विधुत संकेतो की दो अवस्थाए होती है- हाई और लो अथवा Anticlock wise & clock wise, 1 का अर्थ है Pulse अथवा High तथा 0 का अर्थ है No Pulse या low।मशीनी भाषा मे प्रत्येक निर्देश के दो भाग होते है- पहला क्रिया संकेत (Operation code अथवा Opcode) और दूसरा स्थिति संकेत (Location code अथवा Operand)। क्रिया संकेत कंप्यूटर को यह बताता जाता है कि क्या करना है और स्थिति संकेत यह बताता है कि आकडे कहां से प्राप्त करना है, कहां संग्रहीत करना है अथवा अन्य कोइ निर्देश जिसका की दक्षता से पालन किया जाना है।मशीनी भाषा की विशेषताएमशीनी भाषा मे लिखा गया प्रोग्राम कंप्यूटर द्वारा अत्यंत शीघ्रता से कार्यांवित हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मशीनी भाषा मे दिए गए निर्देश कंप्यूटर सीधे सीधे बिना किसी अनुवादक के समझ लेता है और अनुपालन कर देता है।मशीनी भाषा की परिसीमाएंमशीनी भाषा कंप्यूटर के ALU (Arithmatic Logic Unit) एवं Control Unit के डिजाइन अथवा रचना, आकार एवं Memory Unit के word की लम्बाई द्वारा निर्धारित होती है। एक बार किसी ALU के लिये मशीनी भाषा मे तैयार किये गए प्रोग्राम को किसी अन्य ALU पर चलाने के लिये उसे पुन: उस ALU के अनुसार मशीनी भाषा का अध्ययन करने और प्रोग्राम के पुन: लेखन की आवश्यकता होती है।मशीनी भाषा मे प्रोग्राम तैयार करना एक दुरूह कार्य है। इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को मशीनी निर्देशो या तो अनेकों संकेत संख्या के रूप मे याद करना पडता था अथवा एक निर्देशिका के संपर्क मे निरंतर रहना पडता था। साथ ही प्रोग्रामर को कंप्यूटर के Hardware Structure के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिये थी।विभिन्न निर्देशो हेतु चूंकि मशीनी भाषा मे मात्र दो अंको 0 और 1 की श्रृंखला का प्रयोग होता है। अत: इसमे त्रुटि होने की सम्भावना अत्यधिक है। और प्रोग्राम मे त्रुटि होने पर त्रुटि को तलाश कर पाना तो भुस मे सुइ तलाशने के बराबर है।मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखना एक कठिन और अत्यधिक समय लगाने वाला कार्य है। इसीलिये वर्तमान समय मे मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखने का कार्य नगण्य है।
www विश्व व्यापी वेब(जिसे सामान्यत: वेब कहा जाता है) आपस में परस्पर जुड़े hypertext (hypertext) दस्तावेजों को इन्टरनेट द्वारा प्राप्त करने की प्रणाली है.एक वेब ब्राउजर (Web browser) की सहायता से हम उन वेब पन्नों को देख सकते हैं जिनमें टेक्स्ट (text),
छवि
(image), विडियो (video), एंवं अन्य मल्टीमीडिया (multimedia) होते हैं तथा हाइपरलिंक (hyperlink) की सहायता से उन पन्नों के बीच में आवागमन कर सकते है. विश्व व्यापी वेब को सर टिम बरनर्स-ली द्वारा 1989 में यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (
European Organization for Nuclear Research
)(CERN) जो की जेनेवा, स्वीट्ज़रलैंड में है, में काम करते वक्त बनाया गया था और 1992 में जारी किया गया था.उसके बाद से बरनर्स-ली नें वेब के स्तरों के विकास( जैसे की मार्कअप भाषाएँ (markup language) जिनमें की वेब पन्ने लिखे जाते हैं) में एक सक्रीय भूमिका अदा की है और हाल के वर्षों में उन्होनें सीमेंटिक(अर्थ) वेब (Semantic Web) विकसित करने के अपने स्वप्न की वकालत की है.वेब कैसे काम करता हैविश्व व्यापी वेब पर एक वेब पन्ने
को देखने की शुरुआत सामान्यत: वेब ब्राउजर (Web browser) में उसका URL (URL) लिख कर अथवा उस पन्ने या संसाधन के हाइपरलिंक (hyperlink) का पीछा करते हुए होती है.तब उस पन्ने को ढूंढ कर प्रर्दशित करने के लिए वेब ब्राउजर अंदर ही अंदर संचार संदेशों की एक श्रृंखला आरंभ करता है.सबसे पहले URL के सर्वर-नाम वाले हिस्से को विश्व में वितरित इन्टरनेट डाटा-बेस, जिसे की
डोमेन नाम प्रणाली
(domain name system) या DNS के नाम से जाना जाता है, की सहायता से आईपी (IP address) पते में परिवर्तित कर दिया जाता है.वेब सर्वर (Web server) से संपर्क साधने और डाटा पैकेट (packets) भेजने के लिए ये आईपी पता जरुरी है.उसके बाद ब्राउजर वेब सर्वर के उस विशिष्ट पते पर
HTTP
(HTTP) की प्रार्थना भेज कर रिसोर्स से अनुरोध करता है.एक आम वेब पन्ने की बात करें तो, वेब ब्राउजर सबसे पहले उस पन्ने के HTML टेक्स्ट के लिए अनुरोध करता है और तुंरत ही उसका पदच्छेद (parsed)(PARSED) कर देता है, उसके बाद वेब ब्राउजर पुनः अनुरोध करता है उन छवियों और संचिकाओं के लिए जो उस पन्ने के भाग हैं.एक वेबसाइट की लोकप्रियता सामान्यत: इस बात से मापी जाती है की कितनी बार उसके पन्नों को देखा (page view) गया या कितनी बार उसके सर्वर को
हिट
(hits) किया गया या फिर कितनी बार उसकी संचिकाओं के लिए अनुरोध किया गया.वेब सेवक से आवश्यक संचिकाएँ प्राप्त करने के बाद ब्राउज़र उस पन्ने को स्क्रीन पर HTML, CSS (CSS) एंवं अन्य वेब भाषाओँ के निर्देश के अनुसार प्रर्दशित (renders) करता है.जिस वेब पन्ने को हम स्क्रीन पर देखते हैं उसके निर्माण के लिए अन्य छवियों एंवं संसाधनों का भी इस्तेमाल होता है.अधिकांश वेब पृष्ठों में उनसे संबंधित अन्य पृष्ठों और शायद डाउनलोड करने लायक वस्तु, स्रोत दस्तावेजों, परिभाषाएँ और अन्य वेब संसाधनों के
हाइपरलिंक (hyperlink) स्वयं शामिल होंगे.इस उपयोगी और सम्बंधित संसाधनों के समागम को, जो की आपस में हाइपरटेक्स्ट लिंक के द्वारा जुड़े हुए हों, को जानकारी का "वेब" कहा गया.इसको इन्टरनेट पर उपलब्ध कराने को टीम बर्नर्स-ली नें सर्वप्रथम 1990[१] में विश्वव्यापीवेब( एक शब्द जो कैमलकेस (CamelCase) में लिखा गया पर बाद में त्याग दिया गया) का नाम दिया.वेब पतों में WWW उपसर्ग"www" अक्षर सामान्यत:
वेब पते
(Web address) की शुरुआत में पाए जाते हैं, ऐसा एक लम्बे समय से चले आ रहे व्यवहार की वजह से है जिसके अनुसार इन्टरनेट मेज़बान का नाम इस आधार पर रखा जाता है की वो क्या सेवाएं प्रदान करता है.तो उदहारण के लिए, वेब सर्वर (Web server) के होस्ट नाम अक्सर "www" होता है; FTP सर्वर (FTP server) के लिए "ऍफ़टीपी"' और उसनेट (USENET)
न्यूज़ सर्वर
(news server) के लिए "न्यूज़" अथवा "एनएनटीपी" (समाचार प्रोटोकॉल एनएनटीपी (NNTP) के कारण).ये होस्ट नाम डीएनएस (DNS) उपनाम (subdomain) की तरह प्रकट होते हैं, जैसे की "www.EXAMPLE.कॉम"इन उपसर्गों का प्रयोग किन्हीं तकनीकी कारणों की वजह से नहीं है; वास्तव में पहला वेब सर्वर "nxoc01.cern.ch" पर था, [३१]और यहाँ तक आज भी कई साइट्स बिना "www" उपसर्ग के मौजूद हैं.मुख्य वेब साईट किस तरह दिखाई देगी इसमें "www" उपसर्ग का कोई महत्त्व नहीं है."www" उपसर्ग किसी वेब साईट के होस्ट नाम का बस एक विकल्प मात्र है.यदि लिखे गए URL में कोई मेज़बान दिखाई नहीं देता है तो कुछ वेब ब्राउसर "www" को स्वतः ही शुरू में जोड़ने की कोशिश करेंगे, और संभवतः ".com" को अंत में.
इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer), फ़ायरफ़ॉक्स, सफ़ारी (Safari), और ओपेरा यह भी "उपसर्ग जाएगाhttp://www."और जोड़ना". पता पट्टी सामग्री "के लिए com अगर नियंत्रण और चाबी एक साथ दबा रहे हैं दर्ज करें.मिसाल के तौर पर, पता लिखने की जगह पर यदि "EXAMPLE" लिख कर या तो केवल एंटर और या तो कंट्रोल+एंटर दबाने पर आमतौर पर "http://www.example.com" लिखा आयेगा, लेकिन ये निर्भर करेगा ब्राउज़र की सेटिंग्स और उसके संस्करण पर."www" का उच्चारण
अंग्रेजी में "www" का उच्चारण इस प्रकार है "डबल्यू डबल्यू डबल्यू" .चीनी भाषा मेंडेरिन में विश्व व्यापी वेब का आमतौर पर फोनो-सीमैंटिक मैचिंग (phono-semantic matching) के द्वारा "wàn wéi wǎng ()" अनुवाद किया जाता है, जो "www" से मेल भी खाता है और जिसका शाब्दिक अर्थ है "असंख्य आयामी नेट". सर्च खोज संयंत्रविकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष सेयहाँ जाएँ: भ्रमण, खोजइस लेख में विकिपीडिया के उच्च स्तर को बरकरार रखने के लिये
संपादन एवं वर्तनी सुधार इत्यादि की जरूरत है। इस लेख का संपादन करने के लिये संबंधित पन्ने देखें। आप चाहें तो इसे सुधार कर विकिपीडिया की मदद कर सकते हैं।वेब खोज इंजन एक ऐसा खोज इंजन (search engine) है जिसे विश्वव्यापी वेब पर सुचना की खोज के लिए बनाया गया है. सूचना में वेब पेज, छवियाँ और अन्य प्रकार की
संचिकाएँ हो सकती हैं.कुछ खोज इंजन मेरे पास उपलब्ध डाटा जैसे न्यूज़बुक्स,डेटाबेस, या खुली निर्देशिका (open directories) में हो सकतें हैं. वेब निर्देशिका (Web directories) जिसे मनुष्य संपादक के द्वारा बनाये रखा गया है इसके विपरीत खोज इंजन अल्गोरिथम या अल्गोरिथम का मिश्रण और मानव आगत का परिचालन करती है. चिट्ठा (अंग्रेज़ी:
ब्लॉग
), बहुवचन: चिट्ठे (अंग्रेज़ी:ब्लॉग्स), वेब लॉग (weblog) शब्द का सूक्ष्म रूप होता है। चिट्ठे एक प्रकार के व्यक्तिगत जालपृष्ठ (वेबसाइट) होते हैं जिन्हें दैनन्दिनी (डायरी) की तरह लिखा जाता है।[१] हर चिट्ठे में कुछ लेख, फोटो और बाहरी कड़ियां होती हैं। इनके विषय सामान्य भी हो सकते हैं और विशेष भी। चिट्ठा लिखने वाले को चिट्ठाकार तथा इस कार्य को चिट्ठाकारी अथवा चिट्ठाकारिता कहा जाता है। कई चिट्ठे किसी खास विषय से संबंधित होते हैं, व उस विषय से जुड़े समाचार, जानकारी या विचार आदि उपलब्ध कराते हैं। एक चिट्ठे में उस विषय से जुड़े पाठ, चित्र/मीडिया व अन्य चिट्ठों के लिंक्स मिल सकते हैं। चिट्ठों में पाठकों को अपनी टीका-टिप्पणियां देने की क्षमता उन्हें एक इंटरैक्टिव प्रारूप प्रदन प्रदान करती है।[२] अधिकतर चिट्ठे मुख्य तौर पर पाठ रूप में होते हैं, हालांकि कुछ कलाओं(आर्ट ब्लॉग्स), छायाचित्रों (फोटोग्राफ़ी ब्लॉग्स), वीडियो, संगीत (एमपी३ ब्लॉग्स) एवं ऑडियो (पॉडकास्टिंग) पर केन्द्रित भी होते हैं।
चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे सरल तरीका है, किसी अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा वेसाइट जैसे ब्लॉग्स्पॉट या लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि जैसे स्थलों में से किसी एक पर खाता खोल कर लिखना शुरू करना।[३]एक अन्य प्रकार की चिट्ठेकारी माइक्रोब्लॉगिंग कहलाती है। इसमें अति लघु आकार के पोस्ट्स होते हैं।दिसंबर २००७ तक, ब्लॉग सर्च इंजिन टेक्नोरैटी द्वारा ११२,०००,००० चिट्ठे ट्रैक किये जा रहे थे।[४]आज के कंप्यूटर जगत में ब्लॉग का भारी चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध मशहूर हस्तियों के ब्लॉग लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और उन पर अपने विचार भी भेजते हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद के विषयों पर लिखते हैं और कई चिट्ठे विश्व भर में मशहूर होते हैं जिनका हवाला कई नीति-निर्धारण मुद्दों में किया जाता है। ब्लॉग का आरंभ १९९२ में लांच की गई पहली वेबसाइट के साथ ही हो गया था। आगे चलकर १९९० के दशक के अंतिम वर्षो में जाकर ब्लॉगिंग ने जोर पकड़ा। आरंभिक ब्लॉग कंप्यूटर जगत संबंधी मूलभूत जानकारी के थे। लेकिन बाद में कई विषयों के ब्लॉग सामने आने लगे। वर्तमान समय में लेखन का हल्का सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति अपना एक ब्लॉग बना सकता है, चूंकि यह निःशुल्क होता है, और अपना लिखा पूरे विश्व के सामने तक पहुंचा सकता है।
[२]
चिट्ठों पर राजनीतिक विचार, उत्पादों के विज्ञापन, शोधपत्र और शिक्षा का आदान-प्रदान भी किया जाता है। कई लोग चिट्ठों पर अपनी शिकायतें भी दर्ज कर के दूसरों को भेजते हैं। इन शिकायतों में दबी-छुपी भाषा से लेकर बेहद कर्कश भाषा तक प्रयोग की जाती है।वर्ष २००४ में ब्लॉग शब्द को मेरियम-वेबस्टर में आधिकारिक तौर पर सम्मिलित किया गया था। कई लोग अब चिट्ठों के माध्यम से ही एक दूसरे से संपर्क में रहने लग गए हैं। इस प्रकार एक तरह से चिट्ठाकारी या ब्लॉगिंग अब विश्व के साथ-साथ निजी संपर्क में रहने का माध्यम भी बन गया है। कई कंपनियां आपके चिट्ठों की सेवाओं को अत्यंत सरल बनाने के लिए कई सुविधाएं देने लग गई हैं।

Tuesday, June 8, 2010

लन्गुअगे ऑफ़ कंप्यूटर

असेम्बली भाषा
मशीनी भाषा द्वारा प्रोग्राम तैयार करने मे आने वाली कठिनाईयो को दूर करने हेतु कम्प्यूटर वैज्ञानिको ने एक अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम भाषा का निर्माण किया। इस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा को असेम्बली भाषा कहते है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का पहला कदम यह था कि मशीनी भाषा को अंकीय क्रियांवयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया। स्मरणोपकारी का अर्थ यह है कि -एसी युक्ति जो हमारी स्मृति मे वर्ध्दन करें। जैसे घटाने के लिये मशीनी भाषा मे द्विअंकीय प्रणाली मे 1111 और दशमलव प्रणाली मे 15 का प्रयोग किया जाता है, अब यदि इसके लिये मात्र sub का प्रयोग किया जाए तो यह प्रोग्रामर की समय मे सरलता लाएगी।
पारिभाषिक शब्दो मे, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा जिसमे मशीनी भाषा मे प्रयुक्त अंकीय संकेतो के स्थान पर अक्षर अथवा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है, असेम्बली भाषा अथवा symbol language कहलाती है।असेम्बली भाषा मे मशीन कोड के स्थान पर ’नेमोनिक कोड’ का प्रयोग किया गया जिन्हे मानव मस्तिष्क आसानी से पहचान सकता था जैसे-LDA(load),Tran(Translation),JMP(Jump) एवं इसी प्रकार के अन्य नेमोनिक कोड जिन्हे आसानी से पहचाना व याद रखा जा सकता था। इनमे से प्रत्येक के लिये एक मशीन कोड भी निर्धारित किया गया,पर असेम्बली कोड से मशीन कोड मे परिवर्तन का काम, कम्प्यूटर मे ही स्थित एक प्रोग्राम के जरिये किया जाने लगा,इस प्रकार के प्रोग्राम को असेम्बलर नाम दिया गया। यह एक अनुवादक की भांति कार्य करता है।

असेम्बली भाषा की विशेषताएं
(१)नेमोनिक कोड और आकडो हेतु उपयुक्त नाम के प्रयोग के कारण इस प्रोग्रामिंग भाषा को अपेक्षाकृत अधिक सरलता से समझा जा सकता है।(२)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे कम समय लगता है।(३)इसमे गलतियो को सरलता से ढूंढकर दूर किया जा सकता है।(४)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे मशीनी भाषा की अनेक विशेषताओ का समावेश है।
असेम्बली भाषा की परिसीमाए
(१) चूंकि इस प्रोग्रामिंग भाषा मे प्रत्येक निर्देश चिन्हो एवं संकेतो मे दिया जाता है और इसका अनुवाद सीधे मशीनी भाषा मे होता है अत: यह भाषा भी हार्डवेयर पर निर्भर करती है। भिन्न ALU एवं Controling Unit के लिये भिन्न प्रोग्राम लिखना पडता है।(२) प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को हार्डवेयर की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।





उच्च स्तरीय क्रमादेशन भाषा
(उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा से अनुप्रेषित)
मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा द्वारा क्रमादेश तैयार करने मे आने वाली कठिनाई को देखते हुए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस शोध मे जुट गए कि अब इस प्रकार की क्रमादेशन भाषा तैयार की जानी चाहिये जो कि कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर न हो। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का यह अगला कदम था। असेम्बलर के स्थान पर कम्पाइलर और इन्टरप्रेटर का विकास किया गया।अब कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये मशीनी भाषा को अंकीय क्रियान्वयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया।कम्प्यूटर मे प्रयोग की जाने वाली वह भाषा जिसमे अंग्रेजी अक्षरो,संख्याओ एवं चिन्हो का प्रयोग करके प्रोग्राम लिखा जाता है, उसे उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है।इस भाषा मे प्रोग्राम लिखना प्रोग्रामर के लिये बहुत ही आसान होता है,क्योंकि इसमे किसी भी निर्देश मशीन कोड मे बदलकर लिखने की आवश्यकता नही होती । जैसे -BASIC, COBOL,FORTRAN,PASCALअब तो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का अत्यन्त विकास हो चुका है। इन प्रोग्रमिंग भाषाओ को कार्यानुसार चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-(१) वैज्ञानिक प्रोग्रामिंग भाषाएं- इनका प्रयोग मुख्यत: वैज्ञानिक कार्यो के लिये प्रोग्राम बनाने मे होता है,परन्तु इनमे से कुछ भाषाएं ऎसी भी होती है जो वैज्ञानिक कार्यो के अलावा अन्य कार्यो को भी उतनी ही दक्षता से करती है।जैसे-ALGOL(Algorithmic language),BASIC,PASCAL,FORTRAN, आदि है।(२) व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषाएं-व्यापारिक कार्यो से सम्बंधित जैसे-बही खाता, रोजानामचा, स्टाक आदि का लेखा जोखा आदि व्यापारिक प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रोग्राम द्वारा अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।जैसे-PL1(Programing language 1),COBOL, DBASE आदि। (३) विशेष उद्देश्य प्रोग्रामिंग भाषाएं-ये भाषाएं विभिन्न कार्यो को विशेष क्षमता के साथ करने के लिये प्रयोग की जाती है।जैसे-(अ)APL360- पेरीफिरल युक्तियां सर्वश्रेष्ठ अनुप्रयोग हेतु प्रयोग की जाती है। यह भाषा 1968 से प्रचलन मे आई।(ब)LOGO- लोगो का विकास मात्र कम्प्यूटर शिक्षा को सरल बनाने हेतु किया गया। इस भाषा मे चित्रण इतना सरल है कि छोटे बच्चे भी चित्रण कर सकते है।लोगो भाषा मे चित्रण के लिये एक विशेष प्रकार की त्रिकोणाकार आकृति होती है जिसे टरटल कहते है। मॉनीटर पर प्रदर्शित रहता है लोगो भाषा के निर्देशो द्वारा यह टरटल, किसी भी तरफ घूम सकता है और आगे-पीछे चल सकता है। जब टरटल चलता है तो पीछे अपने मार्ग पर लकीर बनाता चलता है। इससे अनेक प्रकार के चित्रो को सरलता से बनाया जा सकता है।(४) बहुउद्देशीय भाषाएं- जो भाषाएं समान रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक कार्यो को करने की क्षमता रखती है, उन्हे बहुउद्देशीय भाषाएं कहते है।जैसे- BASIC,PASCAL,PL1
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं
(१) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाए कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर नही करती। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रोग्राम के प्रयोगकर्ता के कम्प्यूटर बदलने पर अर्थात विभिन्न ALU और Control unit मे भी यह प्रोग्राम सूक्ष्मतम सुधार के बाद समान रूप से चलता है।(२)इन भाषाओ मे प्रयोग किये जाने वाले शब्द सामान्य अंग्रेजी भाषा मे होते है।(३)इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे गलतियो की सम्भावना कम होती है तथा गलतियो को जल्द ढूंढकर सुधारा जा सकता है।प्रयोग किया गया अनुवादक कम्पाइलर अथवा इन्टरप्रेटर प्रोग्राम मे किस लाइन और निर्देश मे गलती है यह स्वयं ही सूचित कर देता है।(४) प्रोग्राम लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की परिसीमाएं
(१)इन भाषाओ मे लिखा गया प्रोग्राम चलने मे मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा मे लिखे गये प्रोग्राम की अपेक्षा कम्प्यूटर की मुख्य स्मृति मे अधिक स्थान घेरता है।(२)इन भाषाओ मे लचीलापन नही होता है अनुवादको के स्वयं नियन्त्रित होने के कारण यह प्रोग्रामर के नियन्त्रण मे नही होता है। लचीलेपन से तात्पर्य है कि कुछ विशेष कार्य इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे नही किए जा सकते है अथवा अत्यन्त कठिनाई से साथ किए जा सकते है। फिर भी उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं उसकी परिसीमाओ की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। अत: वर्तमान मे यही भाषाएं प्रयोग की जाती है।
उच्च स्तरीय भाषाओ का परिचय
प्रोग्रामिंग भाषाओ के विकास के इतिहास पर नजर डाली जाए तो डॉ। ग्रेस हापर का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इन्होने ही सन 1952 के आस-पास उच्च स्तरीय भाषाओ का विकास किया था। जिसमे एक कम्पाइलर का प्रयोग किया गया था। डॉ हापर के निर्देशन मे दो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ को विकसित किया गया पहली-FLOWMATIC और MATHEMATICS। FLOWMATIC एक व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषा थी और MATHEMATICS एक अंकगणितीय गणनाओ मे प्रयुक्त की जाने वाली भाषा। तब से लेकर अब तक लगभग 225 उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का विकास हो चुका है। उदाहरण:FORTRAN, COBOL, BASIC, PASCAL।


मशीनी भाषा
मशीनी भाषा कंप्यूटर की आधारभुत भाषा है, यह केवल 0 और 1 दो अंको के प्रयोग से निर्मित श्रृंखला से लिखी जाती है। यह एकमात्र कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा है जो कि कंप्यूटर द्वारा सीधे-सीधे समझी जाती है। इसे किसी अनुवादक प्रोग्राम का प्रयोग नही करना होता है। इसे कंप्यूटर का मशीनी संकेत भी कहा जाता है।
कंप्यूटर का परिपथ इस प्रकार तैयार किया जाता है कि यह मशीनी भाषा को तुरन्त पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो मे परिवर्तित कर लेता है। विधुत संकेतो की दो अवस्थाए होती है- हाई और लो अथवा Anticlock wise & clock wise, 1 का अर्थ है Pulse अथवा High तथा 0 का अर्थ है No Pulse या low।
मशीनी भाषा मे प्रत्येक निर्देश के दो भाग होते है- पहला क्रिया संकेत (Operation code अथवा Opcode) और दूसरा स्थिति संकेत (Location code अथवा Operand)। क्रिया संकेत कंप्यूटर को यह बताता जाता है कि क्या करना है और स्थिति संकेत यह बताता है कि आकडे कहां से प्राप्त करना है, कहां संग्रहीत करना है अथवा अन्य कोइ निर्देश जिसका की दक्षता से पालन किया जाना है।
मशीनी भाषा की विशेषताए
मशीनी भाषा मे लिखा गया प्रोग्राम कंप्यूटर द्वारा अत्यंत शीघ्रता से कार्यांवित हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मशीनी भाषा मे दिए गए निर्देश कंप्यूटर सीधे सीधे बिना किसी अनुवादक के समझ लेता है और अनुपालन कर देता है।
मशीनी भाषा की परिसीमाएं
मशीनी भाषा कंप्यूटर के ALU (Arithmatic Logic Unit) एवं Control Unit के डिजाइन अथवा रचना, आकार एवं Memory Unit के word की लम्बाई द्वारा निर्धारित होती है। एक बार किसी ALU के लिये मशीनी भाषा मे तैयार किये गए प्रोग्राम को किसी अन्य ALU पर चलाने के लिये उसे पुन: उस ALU के अनुसार मशीनी भाषा का अध्ययन करने और प्रोग्राम के पुन: लेखन की आवश्यकता होती है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम तैयार करना एक दुरूह कार्य है। इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को मशीनी निर्देशो या तो अनेकों संकेत संख्या के रूप मे याद करना पडता था अथवा एक निर्देशिका के संपर्क मे निरंतर रहना पडता था। साथ ही प्रोग्रामर को कंप्यूटर के Hardware Structure के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिये थी।
विभिन्न निर्देशो हेतु चूंकि मशीनी भाषा मे मात्र दो अंको 0 और 1 की श्रृंखला का प्रयोग होता है। अत: इसमे त्रुटि होने की सम्भावना अत्यधिक है। और प्रोग्राम मे त्रुटि होने पर त्रुटि को तलाश कर पाना तो भुस मे सुइ तलाशने के बराबर है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखना एक कठिन और अत्यधिक समय लगाने वाला कार्य है। इसीलिये वर्तमान समय मे मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखने का कार्य नगण्य है।

lan wan

लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) एक कंप्यूटर नेटवर्क है, जो घर, कार्यालय, अथवा स्कूल या हवाई अड्डा जैसे भवनों के छोटे समूह के लघु भौतिक क्षेत्र को आवृत करता है. वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) के विपरीत LAN को परिभाषित करने वाली विशेषताओं में शामिल हैं, आम तौर पर उनका अधिक डाटा अंतरण दर, छोटे भौगोलिक क्षेत्र, और पट्टे पर दूरसंचार लाइनों की ज़रूरत का अभाव.
अतीत में, ARCNET, टोकन रिंग और कई अन्य प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया गया, और संभव है कि भविष्य में G.hn का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन वर्तमान में, दो सबसे आम प्रयुक्त प्रौद्योगिकी, घुमावदार जोड़ी केबलों पर ईथरनेट लगाना और Wi-Fi हैं।


इतिहास
चूंकि 1960 के दशक के उत्तरार्ध में बड़े विश्वविद्यालयों और अनुसंधान प्रयोगशालाओं ने अधिक कंप्यूटर प्राप्त किये, उन पर उच्च-गति के आतंरिक संपर्क प्रदान करने का दबाव बढ़ता गया. लॉरेंस विकिरण प्रयोगशाला के "ऑक्टोपस" नेटवर्क[१][२] के विकास का विवरण देने वाली 1970 की एक रिपोर्ट, इस स्थिति का एक अच्छा संकेत देती है.
1974 के दौरान, केम्ब्रिज विश्वविद्यालय [३] में केम्ब्रिज रिंग विकसित किया गया था, पर यह कभी एक सफल व्यावसायिक उत्पाद नहीं बन पाया.
1973-1975 के दौरान, Xerox PARC में ईथरनेट विकसित किया गया,[४] और साँचा:US patent के रूप में इसे दर्ज किया गया. 1976 में, PARC में सिस्टम के विकास के बाद, Metcalfe और Boggs ने अपना प्रारंभिक लेख "ईथरनेट: डिस्ट्रीब्यूटेड पैकेट-स्विचिंग फॉर लोकल कंप्यूटर नेटवर्क" प्रकाशित किया.[५]
डाटापॉइंट निगम द्वारा ARCNET 1976 में विकसित और 1977 में घोषित किया गया.[६] दिसंबर 1977 के दौरान, न्यूयॉर्क के चेस मैनहटन बैंक में इसकी पहली व्यावसायिक स्थापना की गई.[७]
[संपादित करें] मानकों का विकास
1970 के दशक के उत्तरार्ध से CP/M-आधारित निजी कंप्यूटर का विकास तथा प्रसार और फिर 1981 से DOS-आधारित व्यक्तिगत कंप्यूटरों का तात्पर्य था कि एक साइट में दर्जनों या सैकड़ों कंप्यूटर होने लगे. इनकी नेटवर्किंग करने का प्रारंभिक आकर्षण आम तौर पर, डिस्क स्थान और लेज़र प्रिंटर को साझा करना था, जो दोनों, उस समय बहुत महंगे हुआ करते थे. इस अवधारणा के लिए बहुत उत्साह था और कई वर्षों तक, क़रीब 1983 से आगे, कंप्यूटर उद्योग के जानकार नियमित रूप से आने वाले वर्ष को "लैन का वर्ष" घोषित करते थे.
व्यवहार में, असंगत भौतिक परत के प्रसार और नेटवर्क प्रोटोकॉल कार्यान्वयन और संसाधनों को साझा करने के ढेर सारे तरीकों के कारण इस अवधारणा को हानि पहुंची. विशिष्ट तौर पर, प्रत्येक विक्रेता का अपना अलग प्रकार का नेटवर्क कार्ड, केबल, प्रोटोकॉल और नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम हुआ करता था. नॉवेल नेटवेयर के आगमन के साथ एक समाधान दिखा, जिसने दर्जनों विरोधी-कार्ड/केबल प्रकार के लिए समर्थन प्रदान किया और अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में सबसे अधिक परिष्कृत ऑपरेटिंग सिस्टम उपलब्ध कराए. 1983 में अपनी शुरुआत के बाद से ही, नेटवेयर ने व्यक्तिगत कंप्यूटर LAN व्यापार में अपना प्रभाव[८] जमा लिया और यह 1990 के दशक के मध्य तक चला, जब Microsoft ने वर्कग्रुप के लिए Windows और उन्नत सर्वर Windows NT पेश किया.
NetWare के प्रतियोगियों में केवल बैनयान वाइन्स के पास तुलनात्मक तकनीकी क्षमता थी, लेकिन बैनयान को एक सुरक्षित आधार कभी नहीं मिला. Microsoft और 3Com ने एक सरल नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम के निर्माण के लिए एक साथ काम किया, जिसने 3Com's 3+Share, Microsoft के लैन मैनेजर और IBM के लैन सर्वर के आधार का गठन किया. इनमें से कोई भी विशेष रूप से सफल नहीं हुआ.
उसी समय-सीमा में, Sun Microsystems, Hewlett-Packard, Silicon Graphics, Intergraph, NeXT और Apollo जैसे विक्रेताओं के Unix कंप्यूटर वर्कस्टेशन, TCP/IP आधारित नेटवर्किंग का उपयोग कर रहे थे. हालांकि यह बाजार क्षेत्र अब काफी घट गया है, इस क्षेत्र में विकसित प्रौद्योगिकी, इंटरनेट पर और Linux and Apple Mac OS X नेटवर्किंग के लिए अभी भी प्रभावशाली है और TCP/IP प्रोटोकॉल ने अब लगभग पूरी तरह से IPX, AppleTalk, NBF और प्रारंभिक PC LANS द्वारा प्रयुक्त अन्य प्रोटोकॉल को प्रस्थापित कर दिया है.
[संपादित करें] केबलिंग
प्रारंभिक LAN केबलिंग हमेशा विभिन्न श्रेणियों के सह-अक्षीय केबल पर आधारित होते थे, लेकिन IBM के टोकन रिंग ने स्वयं के डिजाइन किये हुए परिरक्षित, घुमावदार जोड़ी वाले केबलों का उपयोग किया और 1984 में StarLAN ने सरल Cat3 अपरिरक्षित घुमावदार जोड़ी की क्षमता प्रदर्शित की - जिसका साधारण केबल टेलीफोन प्रणाली के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसने 10Base-T (और उसके परवर्तियों को) और संरचित केबलिंग के विकास को प्रेरित किया, जो आज भी अधिकांश LAN का आधार है. इसके अतिरिक्त, फाइबर ऑप्टिक केबल का अधिकाधिक प्रयोग किया गया.
[संपादित करें] तकनीकी पहलू
लोकल एरिया नेटवर्क पर स्विचड ईथरनेट, सबसे आम डाटा लिंक लेयर कार्यान्वयन है. नेटवर्क परत में, इंटरनेट प्रोटोकॉल मानक बन गया है. हालांकि, LAN के विकास के इतिहास में कई विभिन्न विकल्पों का इस्तेमाल किया गया है और उनमें से कुछ आला अनुप्रयोगों में लोकप्रिय रहे हैं. छोटे लं, आम तौर पर एक या अधिक एक-दूसरे से जुड़े स्विचों से मिल कर बनते हैं - उनमें से कम से कम एक अक्सर एक रूटर, केबल मॉडेम, या इंटरनेट उपयोग के लिए ADSL मॉडेम से जुड़ा होता है.
बड़े LAN की विशेषताओं में शामिल हैं - लूप्स को रोकने के लिए स्पैनिंग ट्री प्रोटोकॉल का उपयोग करने वाले स्विच के साथ अनावश्यक लिंक्स का उपयोग, सेवा की गुणवत्ता (QoS) के द्वारा भिन्न प्रकार के यातायात प्रबंधन की क्षमता, और VLAN के साथ यातायात अलग करना. बड़े LAN विस्तृत विविधता के नेटवर्क उपकरणों को रखते हैं, जैसे स्विच, फायर वॉल, रूटर्स, लोड बैलेंसर्स, सेंसर. [९]
LAN का लीज़्ड लाइनों, लीज़्ड सेवाओं, या वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क प्रौद्योगिकी का उपयोग कर इंटरनेट के पार, टनेलिंग के माध्यम से अन्य LAN के साथ संबंध हो सकता है. इस बात पर निर्भर करते हुए कि LAN में कनेक्शन की स्थापना और सुरक्षा कैसे होती है, और इसमें शामिल दूरी से, एक LAN का वर्गीकरण मेट्रोपोलिटन एरिया नेटवर्क (MAN) या वाइड एरिया नेटवर्क (WAN) के रूप में किया जा सकता है।


[संपादित करें] वृहत क्षेत्रीय जाल (WAN)
दूरस्थ संगणकों को जोड़ने में प्रयुक्त । इसमें आदान-प्रदान की गति कम होती है तथा अक्सर बाहर के सेवा प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है । उदाहरण के लिए किसी कंपनी के बेंगलुर और मुंबई स्थित कार्यालयों के संगणकों को जोड़ने की व्यवस्था जिसके लिए बीएसएनएल या किसी अन्य इंटरनेट सेवा प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है

[संपादित करें] सीमित क्षेत्रीय जाल (LAN)
एक खास छोटी दूरी के संगणकों को जोड़ने के काम आने वाला नेटवर्क । इसमें डाटा के आदान-प्रदान की गति तीव्र होती है और इसका संचालन और देखरेख एक संस्था या समूह मात्र द्वारा संभव हो पाता है । उदाहरणस्वरूप एक कॉलेज के विभिन्न विभागों तथा छात्रावासों के बीच का नेटवर्क ।

ntsc

NTSC , अर्थात् नैशनल टेलीविज़न सिस्टम कमिटी अधिकांशतः उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, बर्मा और प्रशांत द्वीप के कुछ प्रदेशों और राष्ट्रों (नक्शा देखें) में प्रयोग किया जाने वाला एनालॉग टेलीविजन सिस्टम है. NTSC अमेरिका की उस मानकीकरण संस्था का भी नाम है जिसने प्रसारण मानक का विकास किया है.[१] पहला NTSC मानक 1941 में विकसित किया गया था और उसमे रंगीन टीवी के लिए कोई प्रावधान नहीं था.
1953 में NTSC मानक के एक दूसरें संशोधित संस्करण को स्वीकृत किया गया था, जिसमें काले और सफेद रिसीवर्स के मौजूदा स्टॉक के साथ अनुकूल रंगीन प्रसारण की अनुमति थी. NTSC व्यापक रूप से स्वीकृत की जाने वाली पहली प्रसारित रंग प्रणाली थी. उपयोग करने के कम से कम आधी शताब्दी के बाद,12 जून 2009 को संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत सारी संख्या में ओवर- द - एअर NTSC प्रसारण को ATSC से परिवर्तित कर दिया गया था और 31 अगस्त 2011, तक कनाडा में भी परिवर्तित हो जाएगा।

[संपादित करें] इतिहास
इन्हें भी देखें: History of television
नैशनल टेलीविज़न सिस्टम कमिटी 1940 में संयुक्त राज्य संघीय संचार आयोग(FCC) द्वारा स्थापित की गयी थी जिससें संयुक्त राज्य में एनालॉग टेलीविजन प्रणाली के सर्वव्यापक प्रस्तुतीकरण को लेकर कंपनियों के मध्य चल रहे विवाद का समाधान किया जा सके. मार्च 1941 में, समिति ने ब्लैक-एण्ड-व्हाइट टेलीविजन हेतु एक तकनीकी मानक जारी किया था जो रेडियो निर्माता समिति (RMA) द्वारा निर्मित 1936 अनुरोध पर आधारित था. अल्पविकसित साइडबैंड तकनीक के तकनीकी अभ्युदय इमेज रेजोलुजन में वृद्धि हेतु अवसर प्रदान करते थे. NTSC ने RCA के 441 स्कैन लाइन मानक (RCA के NBC TV नेटवर्क द्वारा पहले से ही प्रयोग हो रही) तथा फिल्को और डुमोंट की स्कैन लाइन्स को 605 से 800 करने की इच्छा के तहत एक समझौता किया और 525 स्कैन लाइन्स का चयन किया. इस मानक में प्रति सेकंड 30 फ्रेम्स (इमेज) का फ़्रेम रेट प्रस्तावित है, जिसमें प्रति फ़ील्ड 262.5 लाइनों तथा प्रति सेकंड 60 फील्ड्स पर प्रति फ्रेम दो अंतर्वयन फील्ड्स को सम्मिलित किया गया हैं. निर्णायक अनुरोध के अन्य मानक 4:3 का अभिमुखता अनुपात तथा साउंड सिग्नल(जो उस समय पर काफी नया था) हेतु आवृत्ति अधिमिश्रण (FM) थे.
जनवरी 1950 में, रंगीन टेलीविजन को मानकीकृत करने के लिए समिति का पुनर्गठन किया गया था. 1953 दिसम्बर में, समिति ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार कर लिया जिसे अब NTSC कलर टेलीविजन मानक(बाद में जिसे RS-170a कहा गया) कहा जाता है. "अनुकूल रंग" मानक मौजूदा काले और सफेद टेलीविजन सेटों के साथ पूर्ण रूप से बैकवर्ड संगतता बनाए रखता है. वीडियो सिग्नल में 455/572 × 4.5 MHz (लगभग 3.58 MHz) का कलर सबकैरियर जोड़कर ब्लैक-एण्ड-व्हाइट इमेज में रंगीन जानकारी जोड़ी गयी थी. क्रोमिनेंस सिग्नल तथा FM के मध्य हस्तक्षेप की दृश्यता को कम करने के लिए साउंड कैरियर को आवश्यकता होती है जिससे कि फ्रेम रेट 30 फ्रेम प्रति सेकंड से लगभग 29.97 फ्रेम प्रति सेकंड हो जाये, और आवृत्ति 15,734.26 हर्ट्ज से 15,750 हर्ट्ज हो जाये.
FCC ने एक भिन्न कलर टेलीविजन स्टेंडर्ड को अनुमोदित किया जो अक्टूबर 1950 में शुरू हुआ था और CBS द्वारा विकसित किया गया था.[२] हालांकि, यह मानक ब्लैक-एण्ड-व्हाइट प्रसारण के साथ अनुकूल नहीं था. इसमें आवर्ती रंगीन पहिये का उपयोग किया गया था, स्कैन लाइन्स की संख्या 525 से घटकर 405 हो गयी थी, तथा फील्ड रेट 60 से बढ़कर 144 हो गया था (पर प्रभावी फ्रेम दर केवल 24 फ्रेम प्रति सेकंड था) प्रतिद्वंद्वी RCA द्वारा कानूनी कार्रवाई ने प्रणाली के वाणिज्यिक उपयोग को जून 1951 तक हवा से दूर रखा और नियमित प्रसारण केवल कुछ महीनों तक ही चल पाया क्योकि कोरियाई युद्ध के कारण रक्षा संघटन विभाग (ODM) ने अक्टूबर में सभी रंगीन टेलीविजन सेटों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था.[३] CBS ने मार्च 1953 में अपनी इस प्रणाली को निरस्त कर दिया,[४] तथा FCC ने 17 दिसंबर 1953 को इस प्रणाली को NTSC कलर स्टेंडर्ड से बदल दिया, जो RCA और फिल्को सहित कई कंपनियों के सहयोग से विकसित किया गया था.[५] NTSC "अनुकूल रंगीन" प्रणाली का उपयोग कर पहला सार्वजनिक रूप से घोषित नेटवर्क टीवी प्रसारण NBC के कुकला, फ्रन एंड ओल्ली कार्यक्रम का एक प्रसंग था, हालांकि इसे केवल नेटवर्क मुख्यालय पर ही रंगीन रूप में देखा जा सकता था.[६] NTSC कलर का पहला राष्ट्रव्यापी दर्शन रोसेस पराडे टूर्नामेंट के तट दर तट प्रसारण के साथ 1 जनवरी को आया था. यह प्रसारण देश भर में प्रोटोटाइप रंग रिसीवर्स पर विशेष प्रस्तुतियों द्वारा देखा जा सकता था.
पहला रंगीन NTSC टेलीविजन कैमरा RCA TK-40 था जो 1953 में प्रयोगात्मक प्रसारण के लिए उपयोग किया गया था; इसका एक उन्नत संस्करण TK-40A मार्च में प्रस्तुत हुआ था, यह वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध पहला रंगीन टीवी कैमरा था. बाद में उसी वर्ष संशोधित TK-41 मानक कैमरा बन गया जो 1960 के दशक में इस्तेमाल किया गया था.
NTSC मानक जापान और अमेरिका सहित अन्य अधिकांश देशों द्वारा अपनाया गया है. डिजिटल टेलीविजन के आगमन के साथ, एनालॉग प्रसारण खत्म होता जा रहा हैं. 2009 में अपने एनालॉग ट्रांसमिटर को बंद करने के लिए FCC को ज्यादातर अमेरिकी NTSC प्रसारकों की आवश्यकता थी. कम विद्युत स्टेशन, क्लास A स्टेशन और अनुवादक एकदम से प्रभावित नहीं होते हैं। इन स्टेशनों के लिए एनालॉग अंतिम तिथि निर्धारित नहीं की गयी हैं.

[संपादित करें] तकनीकी विवरण
[संपादित करें] पंक्ति और ताज़ा दर
NTSC रंग एन्कोडिंग सिस्टम M टेलीविजन सिग्नल, जिसमें प्रति सेकंड वीडियो के लिए 29.97 अंतर्वयन फ्रेम्स होते हैं, अथवा जापान के लगभग समान सिस्टम J के साथ उपयोग होती है. प्रत्येक फ्रेम में कुल 525 स्कैन लाइन्स होती हैं, जिसमें से 486 लाइन्स स्पष्ट रेखापुंज का निर्माण करती हैं. शेष (ऊर्ध्वाधर रिक्त अंतराल) तुल्यकालन और ऊर्ध्वाधर प्रतिधाव हेतु उपयोग की जाती हैं. यह रिक्त अंतराल मूलतः रिसीवर CRT को बस खाली करने के लिए डिजाइन किया गया था जिससे सरल एनालॉग सर्किट और पूर्व टीवी रिसीवर को धीमी ऊर्ध्वाधर प्रतिधाव की अनुमति दे जा सके. हालांकि, इनमें से कुछ पंक्तिया अब सीमित अनुशीर्षक और वर्टिकल इंटरवल टाइमकोड (VITC) जैसा डाटा भी सम्मिलित कर सकती हैं. संपूर्ण रेखापुंज में (आधी लाइनों को छोड़कर), सम-क्रमांकित अथवा "लघु" स्कैन लाइन्स (हर दूसरी लाइन सम होगी अगर उसकी गणना वीडियो सिग्नल में होगी जैसे ( 2,4,6 ,..., 524)) पहले क्षेत्र में बनायीं जाती हैं, और विषम क्रमांकित या "उच्च" (हर दूसरी लाइन विषम होगी अगर उसकी गणना वीडियो सिग्नल में होगी जैसे ( 1,3,5 ,..., 525)) दूसरे क्षेत्र में बनायीं जाती हैं, जिससे लगभग 59.94 हर्ट्ज (वास्तव में 60 Hz/1.001)की फील्ड रिफ्रेश आवृत्ति पर बिना झिलमिलाहट वाली छवि प्राप्त की जा सके. तुलना के लिए, 576i सिस्टम जैसे PAL-B/G तथा SECAM 625 लाइनों(576 स्पष्ट) का उपयोग करते हैं, इसलिए इनका ऊर्ध्वाधर विभेदन अधिक होता हैं, लेकिन इनका कालिक विभेदन केवल 25 फ्रेम्स या प्रति सेकण्ड 50 फील्ड्स होता है जो कि कम है.
ब्लैक-एण्ड-व्हाइट सिस्टम की NTSC फील्ड रीफ्रेश आवृत्ति मूलतः संयुक्त राज्य अमेरिका में उपयोग होने वाले एकांतर करंट पावर की नाममात्र 60 हर्ट्ज आवृत्ति के बिल्कुल समान है. पावर सोर्से से फील्ड रीफ्रेश रेट का मिलान इंटरमाडउलेशन (जिसे बीटिंग भी कहते है) से बचाता है जिसके कारण स्क्रीन पर रोलिंग बार्स का उत्पादन होता हैं, बाद में जब सिस्टम में रंग जोड़ा गया, तो रीफ्रेश आवृत्ति को थोड़ा नीचे 59.94 हर्ट्ज पर स्थानांतरित कर दिया गया था जिससे ध्वनि और कलर कैरियर के मध्य भिन्न आवृत्ति में स्थिर डॉट पैटर्न को समाप्त किया जा सके, जैसा कि नीचे रंग कूटलेखन में समझाया गया है. संयोगवश पावर के साथ रीफ्रेश रेट का तुल्यकालन कीनेस्कौप कैमरों को पूर्व सजीव टेलीविजन प्रसारण रिकार्ड करने मे मदद करता है, क्योंकि एकांतर करंट आवृत्ति का उपयोग करके प्रत्येक फिल्म फ्रेम पर वीडियो का एक फ्रेम केप्चर करने के लिए एक फिल्म कैमरे को सिंक्रनाइज़ करना बहुत आसान था जिससे तुल्यकालिक AC मोटर ड्राइव कैमरे की गति को सेट किया जा सके. समय के साथ रंग के लिए फ्रेम दर 29.97 हर्ट्ज हो गया, यह लगभग वीडियो सिग्नल से कैमरे के शटर को ट्रिगर करने जितना आसान था.
525 लाइनों की संख्या को वैक्यूम ट्यूब आधारित तकनीकों की सीमाओं के एक परिणाम के रूप में चुना गया था। पूर्व TV सिस्टम में, एक मास्टर वोल्टेज-नियंत्रित दोलक क्षैतिज रेखा आवृत्ति की दुगनी आवृत्ति पर चलता था, और यह आवृत्ति क्षेत्र आवृत्ति (इस मामले में 60 हर्ट्ज) प्राप्त करने के लिए उपयोग होने वाली लाइनों की संख्या (इस मामले में 525) द्वारा विभाजित की जाती थी). फिर इस आवृत्ति की तुलना 60 हर्ट्ज पावर-लाइन आवृत्ति के साथ की जाती है और किसी भी विसंगति को मास्टर दोलक की आवृत्ति को समायोजित करके सही किया जाता है. अंतर्वयन स्कैनिंग के लिए, प्रति फ्रेम विषम संख्या में लाइनों की आवश्यकता होती है जिससे सम तथा विषम क्षेत्रों के लिए ऊर्ध्वाधर प्रतिधाव दूरी को समान बनाया जा सके; एक अतिरिक्त विषम लाइन का मतलब है कि अंतिम विषम लाइन से पहली सम लाइन तक वापिस आने में उतनी ही समान दूरी तय होती है जो अंतिम सम लाइन से पहली विषम लाइन तक वापिस आने में तय होती है अत: यह प्रतिधाव सर्किट्री को सरल बनाता है. 500 के सबसे ज्यादा करीबी व्यावहारिक अनुक्रम 3 × 5 × 5 × 7 = 525 था. इसी तरह, 625-लाइन PAL-B/G और SECAM 5 × 5 × 5 × 5 का उपयोग करता हैं. ब्रिटिश 405-लाइन सिस्टम 3 × 3 × 3 × 3 × 5 का इस्तेमाल करते हैं, फ्रेंच 819-लाइन सिस्टम का 3 × 3 × 7 × 13 का उपयोग करते हैं.

[संपादित करें] रंग कूटबन्धन
ब्लैक-एण्ड-व्हाइट टेलीविजन के साथ बैकवर्ड संगतता के लिए, NTSC लुमिनांस-क्रोमिनेंस कूटबन्धन प्रणाली का उपयोग करता है जिसका आविष्कार 1938 में गोर्गेस वलेंसी ने किया था. लुमिनांस (गणितीय रूप से मिश्रित रंग सिग्नल्स से व्युत्पन्न) मूल मोनोक्रोम सिग्नल की जगह लेता है. क्रोमिनेंस में रंग से सम्बंधित जानकारी होती है. यह ब्लैक-एण्ड-व्हाइट रिसीवर को क्रोमिनेंस की अनदेखी करके NTSC सिग्नल्स प्रदर्शित करने की अनुमति देता है.
NTSC में, क्रोमिनेंस दो 3.579545 मेगाहर्टज सिग्नल्स का उपयोग करके इनकोड होता है यह सिग्नल्स 90 डिग्री फेज के बाहर होते हैं, इन्हें I (इन-फेज) तथा Q (क्वाड्रेचर) QAM कहते हैं. यह दोनों सिग्नल्स आयाम मॉड्यूलेटेड होते हैं और फिर एक साथ जोड़े जाते है. कैरियर को दबा दिया जाता है. गणितीय रूप से, परिणाम स्वरूप आप भिन्न फेज (भिन्न आयाम और संदर्भ के सापेक्ष में) के साथ एकल साइन वेव देख सकते हैं. फेज एक टीवी कैमरे द्वारा कैप्चर किये गए तात्कालिक रंग हए को प्रदर्शित करता है, और आयाम तात्कालिक रंग संतृप्ति को प्रदर्शित करता है.
I/Q फेज से हए जानकारी पुन: प्राप्त करने के लिए, TV के पास शून्य फेज संदर्भ को बदलने के लिए दबा हुआ कैरियर होना आवश्यक है. इसे संतृप्ति जानकारी को प्राप्त करने के लिए आयाम हेतु एक संदर्भ की भी जरूरत होती है. अत:, NTSC सिग्नल के पास इस संदर्भ सिग्नल का छोटा नमूना होता है, जिसे कलर बर्स्ट कहते है, जो प्रत्येक क्षैतिज रेखा के 'बैक पोर्च' पर स्थित है (क्षैतिज तुल्यकालन पल्स के अंत तथा रिक्त पल्स के अंत के बीच का समय). कलर बर्स्ट में अनमॉड्यूलेटेड (फिक्स्ड फेज और आयाम) कलर सबकैरियर के न्यूनतम आठ चक्रों को सम्मिलित किया जाता है. टीवी रिसीवर के पास एक "स्थानीय दोलक" होता है जिसे वह कलर बर्स्ट के साथ सिंक्रोनाइज करता है तथा फिर क्रोमिनेंस को डिकोड करने के लिए इसे सन्दर्भ की तरह उपयोग करता है. रेखापुंज स्कैन में एक खास बिंदु पर कलर बर्स्ट से प्राप्त संदर्भ सिग्नल तथा क्रोमिनेंस सिग्नल के आयाम और फेज की तुलना करके, उपकरण यह निर्धारित करता है कि उस बिंदु पर क्या क्रोमिनेंस प्रदर्शित होगा. लुमिनांस सिग्नल के आयाम के साथ संयोजित करके रिसीवर यह गणना करता है इस बिंदु अर्थात्् लगातार स्कैनिंग बीम की तात्कालिक स्थिति वाला बिंदु, के निर्माण हेतु कौन से रंग की आवश्यकता है . ध्यान दें कि एनालॉग टीवी ऊर्ध्वाधर आयाम में भिन्न है (इसमें अलग-अलग लाइनें हैं), लेकिन क्षैतिज आयाम में निरंतर है (प्रत्येक बिंदु अगले बिंदु के साथ बिना किसी सीमा के साथ मिल जाता है), इसलिए एनालॉग टीवी में पिक्सेल नहीं होते है.(एनालॉग सिग्नल्स प्राप्त करने वाले डिजिटल टीवी सेट निरंतर क्षैतिज स्कैन लाइनों को प्रदर्शित करने से पहले असतत पिक्सल में परिवर्तित कर देते है. प्रथक्करण की यह प्रक्रिया कुछ हद तक पिक्चर सूचना को घटाती है, हालांकि छोटे पिक्सल के साथ प्रभाव अतीन्द्रिय हो सकता है. डिजिटल सेट प्रदर्शित डिवाइस जैसे LCD,प्लाज्मा, और DLP स्क्रीन लेकिन परंपरागत CRTs नहीं, पर अंतर्निहित असतत पिक्सल की मैट्रिक्स के साथ सभी सेट्स को सम्मिलित करते हैं. प्लाज्मा या DLP प्रदर्शित पैनल से प्राप्त उच्च गुणवत्ता वाली छवि प्रथक्करण के माध्यम से छवि की गुणवत्ता में हुई सभी हानि को ऑफसेट कर सकती हैं.)
जब एक ट्रांसमीटर एक NTSC सिग्नल का प्रसारण करता है, यह आयाम हाल में ही वर्णित NTSC के साथ रेडियो आवृत्ति कैरियर को मॉड्यूलेट करता है, जबकि यह आवृत्ति ऑडियो सिग्नल के साथ कैरियर 4.5 मेगाहर्ट्ज उच्च को मॉड्यूलेट करता है. अगर अरैखिक विरूपण सिग्नल प्रसारित करने के लिए होता है, 3.579545 मेगाहर्ट्ज रंग कैरियर स्क्रीन पर डॉट पैटर्न का उत्पादन करने के लिए साउंड कैरियर के साथ टकरा सकता है. परिणामस्वरूप प्राप्त हुए पैटर्न को कम ध्यान योग्य बनाने के लिए, डिजाइनर ने 60 हर्ट्ज के मूल फील्ड रेट को लगभग 1.001 (0.1%) कम करके 59.94 फील्ड्स प्रति सेकंड समायोजित कर दिया है. यह समायोजन सुनिश्चित करता है कि साउंड कैरियर और कलर सबकैरियर और उनके गुणज (अर्थात्, दो कैरियर का इंटरमॉड्यूलेशन गुणन फल) का जोड़ और अंतर फ्रेम रेट का सटीक गुणज नहीं है, जो स्क्रीन पर डॉट्स के स्थिर रहने के लिए महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जो इन्हें ज्यादा ध्यान देने योग्य बनाती है.
59.94 दर निम्नलिखित गणना से प्राप्त होता है. डिजाइनर क्रोमिनेंस सबकैरियर आवृत्ति को लाइन आवृत्ति का n +0.5 गुणज बनाना पसंद करते है जिससे क्रोमिनेंस सिग्नल और लुमिनांस सिग्नल के मध्य हस्तक्षेप को कम से कम हो सके. (एक अन्य तरीका अक्सर यह निर्धारित करता है कि कलर सबकैरियर आवृत्ति रेखा आवृत्ति का आधा विषम गुणज है.) फिर वे ऑडियो सबकैरियर आवृत्ति को रेखा आवृत्ति का एक पूर्णांक गुणज बनाते है जिससे ऑडियो सिग्नल और क्रोमिनेंस सिग्नल के मध्य स्पष्ट (इंटरमॉड्यूलेशन) हस्तक्षेप को कम से कम किया जा सके. 15750 हर्ट्ज रेखा आवृत्ति और 4.5 मेगाहर्ट्ज ऑडियो सबकैरियर के साथ मूल ब्लैक-एण्ड-व्हाइट मानक इन आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, अत: डिजाइनरों को या तो ऑडियो सबकैरियर आवृत्ति बढानी पड़ती है या रेखा आवृत्ति को कम करना पड़ता है. ऑडियो सबकैरियर आवृत्ति में वृद्धि मौजूदा (काले और सफेद) रिसीवर को ठीक से ऑडियो सिग्नल में ट्यूनिंग करने से रोक सकती है. रेखा आवृत्ति कम करना अपेक्षाकृत अहानिकर है, क्योंकि NTSC सिग्नल में क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर तुल्यकालन सूचना एक रिसीवर को रेखा आवृत्ति में विविधता की एक पर्याप्त मात्रा सहन करने की अनुमति देती है. इसलिए इंजीनियर्स रंग मानक के लिए रेखा आवृत्ति को बदलना चुनते हैं. मूल ब्लैक-एण्ड-व्हाइट मानक में, ऑडियो सबकैरियर आवृत्ति का रेखा आवृत्ति से अनुपात 4.5 मेगाहर्ट्ज/15750 = 285.71 है. रंग मानक में, यह लगभग 286 पूर्णांक बन जाता है, जिसका अर्थ है कि रंग मानक का लाइन रेट 4.5 मेगाहर्ट्ज /286 = लगभग 15,734 लाइन प्रति सेकंड है. प्रति फील्ड (तथा फ्रेम) स्कैन लाइन की समान संख्या बनाए रखने के लिए, कम पंक्ति दर कम फील्ड दर देता है. (4,500,000 / 286) लाइन्स प्रति सेकंड को प्रति फील्ड 262.5 लाइनों द्वारा भाग देने पर प्रति सेकंड लगभग 59.94 फील्ड्स प्राप्त होते है.