Saturday, June 19, 2010

computer

असेम्बली भाषामशीनी भाषा द्वारा प्रोग्राम तैयार करने मे आने वाली कठिनाईयो को दूर करने हेतु कम्प्यूटर वैज्ञानिको ने एक अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम भाषा का निर्माण किया। इस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा को असेम्बली भाषा कहते है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का पहला कदम यह था कि मशीनी भाषा को अंकीय क्रियांवयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया। स्मरणोपकारी का अर्थ यह है कि -एसी युक्ति जो हमारी स्मृति मे वर्ध्दन करें। जैसे घटाने के लिये मशीनी भाषा मे द्विअंकीय प्रणाली मे 1111 और दशमलव प्रणाली मे 15 का प्रयोग किया जाता है, अब यदि इसके लिये मात्र sub का प्रयोग किया जाए तो यह प्रोग्रामर की समय मे सरलता लाएगी।पारिभाषिक शब्दो मे, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा जिसमे मशीनी भाषा मे प्रयुक्त अंकीय संकेतो के स्थान पर अक्षर अथवा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है, असेम्बली भाषा अथवा symbol language कहलाती है।असेम्बली भाषा मे मशीन कोड के स्थान पर ’नेमोनिक कोड’ का प्रयोग किया गया जिन्हे मानव मस्तिष्क आसानी से पहचान सकता था जैसे-LDA(load),Tran(Translation),JMP(Jump) एवं इसी प्रकार के अन्य नेमोनिक कोड जिन्हे आसानी से पहचाना व याद रखा जा सकता था। इनमे से प्रत्येक के लिये एक मशीन कोड भी निर्धारित किया गया,पर असेम्बली कोड से मशीन कोड मे परिवर्तन का काम, कम्प्यूटर मे ही स्थित एक प्रोग्राम के जरिये किया जाने लगा,इस प्रकार के प्रोग्राम को असेम्बलर नाम दिया गया। यह एक अनुवादक की भांति कार्य करता है।असेम्बली भाषा की विशेषताएं(१)नेमोनिक कोड और आकडो हेतु उपयुक्त नाम के प्रयोग के कारण इस प्रोग्रामिंग भाषा को अपेक्षाकृत अधिक सरलता से समझा जा सकता है।(२)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे कम समय लगता है।(३)इसमे गलतियो को सरलता से ढूंढकर दूर किया जा सकता है।(४)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे मशीनी भाषा की अनेक विशेषताओ का समावेश है।असेम्बली भाषा की परिसीमाए(१) चूंकि इस प्रोग्रामिंग भाषा मे प्रत्येक निर्देश चिन्हो एवं संकेतो मे दिया जाता है और इसका अनुवाद सीधे मशीनी भाषा मे होता है अत: यह भाषा भी हार्डवेयर पर निर्भर करती है। भिन्न ALU एवं Controling Unit के लिये भिन्न प्रोग्राम लिखना पडता है।(२) प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को हार्डवेयर की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।उच्च स्तरीय क्रमादेशन भाषा(
उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
से अनुप्रेषित)मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा द्वारा क्रमादेश तैयार करने मे आने वाली कठिनाई को देखते हुए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस शोध मे जुट गए कि अब इस प्रकार की क्रमादेशन भाषा तैयार की जानी चाहिये जो कि कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर न हो। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का यह अगला कदम था। असेम्बलर के स्थान पर कम्पाइलर और इन्टरप्रेटर का विकास किया गया।अब कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये मशीनी भाषा को अंकीय क्रियान्वयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया।कम्प्यूटर मे प्रयोग की जाने वाली वह भाषा जिसमे अंग्रेजी अक्षरो,संख्याओ एवं चिन्हो का प्रयोग करके प्रोग्राम लिखा जाता है, उसे उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है।इस भाषा मे प्रोग्राम लिखना प्रोग्रामर के लिये बहुत ही आसान होता है,क्योंकि इसमे किसी भी निर्देश मशीन कोड मे बदलकर लिखने की आवश्यकता नही होती । जैसे -BASIC, COBOL,FORTRAN,PASCALअब तो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का अत्यन्त विकास हो चुका है। इन प्रोग्रमिंग भाषाओ को कार्यानुसार चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-(१) वैज्ञानिक प्रोग्रामिंग भाषाएं- इनका प्रयोग मुख्यत: वैज्ञानिक कार्यो के लिये प्रोग्राम बनाने मे होता है,परन्तु इनमे से कुछ भाषाएं ऎसी भी होती है जो वैज्ञानिक कार्यो के अलावा अन्य कार्यो को भी उतनी ही दक्षता से करती है।जैसे-ALGOL(Algorithmic language),BASIC,PASCAL,FORTRAN, आदि है।(२) व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषाएं-व्यापारिक कार्यो से सम्बंधित जैसे-बही खाता, रोजानामचा, स्टाक आदि का लेखा जोखा आदि व्यापारिक प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रोग्राम द्वारा अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।जैसे-PL1(Programing language 1),COBOL, DBASE आदि। (३) विशेष उद्देश्य प्रोग्रामिंग भाषाएं-ये भाषाएं विभिन्न कार्यो को विशेष क्षमता के साथ करने के लिये प्रयोग की जाती है।जैसे-(अ)APL360- पेरीफिरल युक्तियां सर्वश्रेष्ठ अनुप्रयोग हेतु प्रयोग की जाती है। यह भाषा 1968 से प्रचलन मे आई।(ब)LOGO- लोगो का विकास मात्र कम्प्यूटर शिक्षा को सरल बनाने हेतु किया गया। इस भाषा मे चित्रण इतना सरल है कि छोटे बच्चे भी चित्रण कर सकते है।लोगो भाषा मे चित्रण के लिये एक विशेष प्रकार की त्रिकोणाकार आकृति होती है जिसे टरटल कहते है। मॉनीटर पर प्रदर्शित रहता है लोगो भाषा के निर्देशो द्वारा यह टरटल, किसी भी तरफ घूम सकता है और आगे-पीछे चल सकता है। जब टरटल चलता है तो पीछे अपने मार्ग पर लकीर बनाता चलता है। इससे अनेक प्रकार के चित्रो को सरलता से बनाया जा सकता है।(४) बहुउद्देशीय भाषाएं- जो भाषाएं समान रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक कार्यो को करने की क्षमता रखती है, उन्हे बहुउद्देशीय भाषाएं कहते है।जैसे- BASIC,PASCAL,PL1उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं(१) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाए कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर नही करती। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रोग्राम के प्रयोगकर्ता के कम्प्यूटर बदलने पर अर्थात विभिन्न ALU और Control unit मे भी यह प्रोग्राम सूक्ष्मतम सुधार के बाद समान रूप से चलता है।(२)इन भाषाओ मे प्रयोग किये जाने वाले शब्द सामान्य अंग्रेजी भाषा मे होते है।(३)इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे गलतियो की सम्भावना कम होती है तथा गलतियो को जल्द ढूंढकर सुधारा जा सकता है।प्रयोग किया गया अनुवादक कम्पाइलर अथवा इन्टरप्रेटर प्रोग्राम मे किस लाइन और निर्देश मे गलती है यह स्वयं ही सूचित कर देता है।(४) प्रोग्राम लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की परिसीमाएं(१)इन भाषाओ मे लिखा गया प्रोग्राम चलने मे मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा मे लिखे गये प्रोग्राम की अपेक्षा कम्प्यूटर की मुख्य स्मृति मे अधिक स्थान घेरता है।(२)इन भाषाओ मे लचीलापन नही होता है अनुवादको के स्वयं नियन्त्रित होने के कारण यह प्रोग्रामर के नियन्त्रण मे नही होता है। लचीलेपन से तात्पर्य है कि कुछ विशेष कार्य इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे नही किए जा सकते है अथवा अत्यन्त कठिनाई से साथ किए जा सकते है। फिर भी उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं उसकी परिसीमाओ की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। अत: वर्तमान मे यही भाषाएं प्रयोग की जाती है।उच्च स्तरीय भाषाओ का परिचयप्रोग्रामिंग भाषाओ के विकास के इतिहास पर नजर डाली जाए तो डॉ। ग्रेस हापर का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इन्होने ही सन 1952 के आस-पास उच्च स्तरीय भाषाओ का विकास किया था। जिसमे एक कम्पाइलर का प्रयोग किया गया था। डॉ हापर के निर्देशन मे दो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ को विकसित किया गया पहली-FLOWMATIC और MATHEMATICS। FLOWMATIC एक व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषा थी और MATHEMATICS एक अंकगणितीय गणनाओ मे प्रयुक्त की जाने वाली भाषा। तब से लेकर अब तक लगभग 225 उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का विकास हो चुका है। उदाहरण:FORTRAN, COBOL, BASIC, PASCAL।मशीनी भाषामशीनी भाषा
कंप्यूटर की आधारभुत भाषा है, यह केवल 0 और 1 दो अंको के प्रयोग से निर्मित श्रृंखला से लिखी जाती है। यह एकमात्र कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा है जो कि कंप्यूटर द्वारा सीधे-सीधे समझी जाती है। इसे किसी अनुवादक प्रोग्राम का प्रयोग नही करना होता है। इसे कंप्यूटर का मशीनी संकेत भी कहा जाता है।कंप्यूटर का परिपथ इस प्रकार तैयार किया जाता है कि यह मशीनी भाषा को तुरन्त पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो मे परिवर्तित कर लेता है। विधुत संकेतो की दो अवस्थाए होती है- हाई और लो अथवा Anticlock wise & clock wise, 1 का अर्थ है Pulse अथवा High तथा 0 का अर्थ है No Pulse या low।मशीनी भाषा मे प्रत्येक निर्देश के दो भाग होते है- पहला क्रिया संकेत (Operation code अथवा Opcode) और दूसरा स्थिति संकेत (Location code अथवा Operand)। क्रिया संकेत कंप्यूटर को यह बताता जाता है कि क्या करना है और स्थिति संकेत यह बताता है कि आकडे कहां से प्राप्त करना है, कहां संग्रहीत करना है अथवा अन्य कोइ निर्देश जिसका की दक्षता से पालन किया जाना है।मशीनी भाषा की विशेषताएमशीनी भाषा मे लिखा गया प्रोग्राम कंप्यूटर द्वारा अत्यंत शीघ्रता से कार्यांवित हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मशीनी भाषा मे दिए गए निर्देश कंप्यूटर सीधे सीधे बिना किसी अनुवादक के समझ लेता है और अनुपालन कर देता है।मशीनी भाषा की परिसीमाएंमशीनी भाषा कंप्यूटर के ALU (Arithmatic Logic Unit) एवं Control Unit के डिजाइन अथवा रचना, आकार एवं Memory Unit के word की लम्बाई द्वारा निर्धारित होती है। एक बार किसी ALU के लिये मशीनी भाषा मे तैयार किये गए प्रोग्राम को किसी अन्य ALU पर चलाने के लिये उसे पुन: उस ALU के अनुसार मशीनी भाषा का अध्ययन करने और प्रोग्राम के पुन: लेखन की आवश्यकता होती है।मशीनी भाषा मे प्रोग्राम तैयार करना एक दुरूह कार्य है। इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को मशीनी निर्देशो या तो अनेकों संकेत संख्या के रूप मे याद करना पडता था अथवा एक निर्देशिका के संपर्क मे निरंतर रहना पडता था। साथ ही प्रोग्रामर को कंप्यूटर के Hardware Structure के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिये थी।विभिन्न निर्देशो हेतु चूंकि मशीनी भाषा मे मात्र दो अंको 0 और 1 की श्रृंखला का प्रयोग होता है। अत: इसमे त्रुटि होने की सम्भावना अत्यधिक है। और प्रोग्राम मे त्रुटि होने पर त्रुटि को तलाश कर पाना तो भुस मे सुइ तलाशने के बराबर है।मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखना एक कठिन और अत्यधिक समय लगाने वाला कार्य है। इसीलिये वर्तमान समय मे मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखने का कार्य नगण्य है।
www विश्व व्यापी वेब(जिसे सामान्यत: वेब कहा जाता है) आपस में परस्पर जुड़े hypertext (hypertext) दस्तावेजों को इन्टरनेट द्वारा प्राप्त करने की प्रणाली है.एक वेब ब्राउजर (Web browser) की सहायता से हम उन वेब पन्नों को देख सकते हैं जिनमें टेक्स्ट (text),
छवि
(image), विडियो (video), एंवं अन्य मल्टीमीडिया (multimedia) होते हैं तथा हाइपरलिंक (hyperlink) की सहायता से उन पन्नों के बीच में आवागमन कर सकते है. विश्व व्यापी वेब को सर टिम बरनर्स-ली द्वारा 1989 में यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (
European Organization for Nuclear Research
)(CERN) जो की जेनेवा, स्वीट्ज़रलैंड में है, में काम करते वक्त बनाया गया था और 1992 में जारी किया गया था.उसके बाद से बरनर्स-ली नें वेब के स्तरों के विकास( जैसे की मार्कअप भाषाएँ (markup language) जिनमें की वेब पन्ने लिखे जाते हैं) में एक सक्रीय भूमिका अदा की है और हाल के वर्षों में उन्होनें सीमेंटिक(अर्थ) वेब (Semantic Web) विकसित करने के अपने स्वप्न की वकालत की है.वेब कैसे काम करता हैविश्व व्यापी वेब पर एक वेब पन्ने
को देखने की शुरुआत सामान्यत: वेब ब्राउजर (Web browser) में उसका URL (URL) लिख कर अथवा उस पन्ने या संसाधन के हाइपरलिंक (hyperlink) का पीछा करते हुए होती है.तब उस पन्ने को ढूंढ कर प्रर्दशित करने के लिए वेब ब्राउजर अंदर ही अंदर संचार संदेशों की एक श्रृंखला आरंभ करता है.सबसे पहले URL के सर्वर-नाम वाले हिस्से को विश्व में वितरित इन्टरनेट डाटा-बेस, जिसे की
डोमेन नाम प्रणाली
(domain name system) या DNS के नाम से जाना जाता है, की सहायता से आईपी (IP address) पते में परिवर्तित कर दिया जाता है.वेब सर्वर (Web server) से संपर्क साधने और डाटा पैकेट (packets) भेजने के लिए ये आईपी पता जरुरी है.उसके बाद ब्राउजर वेब सर्वर के उस विशिष्ट पते पर
HTTP
(HTTP) की प्रार्थना भेज कर रिसोर्स से अनुरोध करता है.एक आम वेब पन्ने की बात करें तो, वेब ब्राउजर सबसे पहले उस पन्ने के HTML टेक्स्ट के लिए अनुरोध करता है और तुंरत ही उसका पदच्छेद (parsed)(PARSED) कर देता है, उसके बाद वेब ब्राउजर पुनः अनुरोध करता है उन छवियों और संचिकाओं के लिए जो उस पन्ने के भाग हैं.एक वेबसाइट की लोकप्रियता सामान्यत: इस बात से मापी जाती है की कितनी बार उसके पन्नों को देखा (page view) गया या कितनी बार उसके सर्वर को
हिट
(hits) किया गया या फिर कितनी बार उसकी संचिकाओं के लिए अनुरोध किया गया.वेब सेवक से आवश्यक संचिकाएँ प्राप्त करने के बाद ब्राउज़र उस पन्ने को स्क्रीन पर HTML, CSS (CSS) एंवं अन्य वेब भाषाओँ के निर्देश के अनुसार प्रर्दशित (renders) करता है.जिस वेब पन्ने को हम स्क्रीन पर देखते हैं उसके निर्माण के लिए अन्य छवियों एंवं संसाधनों का भी इस्तेमाल होता है.अधिकांश वेब पृष्ठों में उनसे संबंधित अन्य पृष्ठों और शायद डाउनलोड करने लायक वस्तु, स्रोत दस्तावेजों, परिभाषाएँ और अन्य वेब संसाधनों के
हाइपरलिंक (hyperlink) स्वयं शामिल होंगे.इस उपयोगी और सम्बंधित संसाधनों के समागम को, जो की आपस में हाइपरटेक्स्ट लिंक के द्वारा जुड़े हुए हों, को जानकारी का "वेब" कहा गया.इसको इन्टरनेट पर उपलब्ध कराने को टीम बर्नर्स-ली नें सर्वप्रथम 1990[१] में विश्वव्यापीवेब( एक शब्द जो कैमलकेस (CamelCase) में लिखा गया पर बाद में त्याग दिया गया) का नाम दिया.वेब पतों में WWW उपसर्ग"www" अक्षर सामान्यत:
वेब पते
(Web address) की शुरुआत में पाए जाते हैं, ऐसा एक लम्बे समय से चले आ रहे व्यवहार की वजह से है जिसके अनुसार इन्टरनेट मेज़बान का नाम इस आधार पर रखा जाता है की वो क्या सेवाएं प्रदान करता है.तो उदहारण के लिए, वेब सर्वर (Web server) के होस्ट नाम अक्सर "www" होता है; FTP सर्वर (FTP server) के लिए "ऍफ़टीपी"' और उसनेट (USENET)
न्यूज़ सर्वर
(news server) के लिए "न्यूज़" अथवा "एनएनटीपी" (समाचार प्रोटोकॉल एनएनटीपी (NNTP) के कारण).ये होस्ट नाम डीएनएस (DNS) उपनाम (subdomain) की तरह प्रकट होते हैं, जैसे की "www.EXAMPLE.कॉम"इन उपसर्गों का प्रयोग किन्हीं तकनीकी कारणों की वजह से नहीं है; वास्तव में पहला वेब सर्वर "nxoc01.cern.ch" पर था, [३१]और यहाँ तक आज भी कई साइट्स बिना "www" उपसर्ग के मौजूद हैं.मुख्य वेब साईट किस तरह दिखाई देगी इसमें "www" उपसर्ग का कोई महत्त्व नहीं है."www" उपसर्ग किसी वेब साईट के होस्ट नाम का बस एक विकल्प मात्र है.यदि लिखे गए URL में कोई मेज़बान दिखाई नहीं देता है तो कुछ वेब ब्राउसर "www" को स्वतः ही शुरू में जोड़ने की कोशिश करेंगे, और संभवतः ".com" को अंत में.
इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer), फ़ायरफ़ॉक्स, सफ़ारी (Safari), और ओपेरा यह भी "उपसर्ग जाएगाhttp://www."और जोड़ना". पता पट्टी सामग्री "के लिए com अगर नियंत्रण और चाबी एक साथ दबा रहे हैं दर्ज करें.मिसाल के तौर पर, पता लिखने की जगह पर यदि "EXAMPLE" लिख कर या तो केवल एंटर और या तो कंट्रोल+एंटर दबाने पर आमतौर पर "http://www.example.com" लिखा आयेगा, लेकिन ये निर्भर करेगा ब्राउज़र की सेटिंग्स और उसके संस्करण पर."www" का उच्चारण
अंग्रेजी में "www" का उच्चारण इस प्रकार है "डबल्यू डबल्यू डबल्यू" .चीनी भाषा मेंडेरिन में विश्व व्यापी वेब का आमतौर पर फोनो-सीमैंटिक मैचिंग (phono-semantic matching) के द्वारा "wàn wéi wǎng ()" अनुवाद किया जाता है, जो "www" से मेल भी खाता है और जिसका शाब्दिक अर्थ है "असंख्य आयामी नेट". सर्च खोज संयंत्रविकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष सेयहाँ जाएँ: भ्रमण, खोजइस लेख में विकिपीडिया के उच्च स्तर को बरकरार रखने के लिये
संपादन एवं वर्तनी सुधार इत्यादि की जरूरत है। इस लेख का संपादन करने के लिये संबंधित पन्ने देखें। आप चाहें तो इसे सुधार कर विकिपीडिया की मदद कर सकते हैं।वेब खोज इंजन एक ऐसा खोज इंजन (search engine) है जिसे विश्वव्यापी वेब पर सुचना की खोज के लिए बनाया गया है. सूचना में वेब पेज, छवियाँ और अन्य प्रकार की
संचिकाएँ हो सकती हैं.कुछ खोज इंजन मेरे पास उपलब्ध डाटा जैसे न्यूज़बुक्स,डेटाबेस, या खुली निर्देशिका (open directories) में हो सकतें हैं. वेब निर्देशिका (Web directories) जिसे मनुष्य संपादक के द्वारा बनाये रखा गया है इसके विपरीत खोज इंजन अल्गोरिथम या अल्गोरिथम का मिश्रण और मानव आगत का परिचालन करती है. चिट्ठा (अंग्रेज़ी:
ब्लॉग
), बहुवचन: चिट्ठे (अंग्रेज़ी:ब्लॉग्स), वेब लॉग (weblog) शब्द का सूक्ष्म रूप होता है। चिट्ठे एक प्रकार के व्यक्तिगत जालपृष्ठ (वेबसाइट) होते हैं जिन्हें दैनन्दिनी (डायरी) की तरह लिखा जाता है।[१] हर चिट्ठे में कुछ लेख, फोटो और बाहरी कड़ियां होती हैं। इनके विषय सामान्य भी हो सकते हैं और विशेष भी। चिट्ठा लिखने वाले को चिट्ठाकार तथा इस कार्य को चिट्ठाकारी अथवा चिट्ठाकारिता कहा जाता है। कई चिट्ठे किसी खास विषय से संबंधित होते हैं, व उस विषय से जुड़े समाचार, जानकारी या विचार आदि उपलब्ध कराते हैं। एक चिट्ठे में उस विषय से जुड़े पाठ, चित्र/मीडिया व अन्य चिट्ठों के लिंक्स मिल सकते हैं। चिट्ठों में पाठकों को अपनी टीका-टिप्पणियां देने की क्षमता उन्हें एक इंटरैक्टिव प्रारूप प्रदन प्रदान करती है।[२] अधिकतर चिट्ठे मुख्य तौर पर पाठ रूप में होते हैं, हालांकि कुछ कलाओं(आर्ट ब्लॉग्स), छायाचित्रों (फोटोग्राफ़ी ब्लॉग्स), वीडियो, संगीत (एमपी३ ब्लॉग्स) एवं ऑडियो (पॉडकास्टिंग) पर केन्द्रित भी होते हैं।
चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे सरल तरीका है, किसी अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा वेसाइट जैसे ब्लॉग्स्पॉट या लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि जैसे स्थलों में से किसी एक पर खाता खोल कर लिखना शुरू करना।[३]एक अन्य प्रकार की चिट्ठेकारी माइक्रोब्लॉगिंग कहलाती है। इसमें अति लघु आकार के पोस्ट्स होते हैं।दिसंबर २००७ तक, ब्लॉग सर्च इंजिन टेक्नोरैटी द्वारा ११२,०००,००० चिट्ठे ट्रैक किये जा रहे थे।[४]आज के कंप्यूटर जगत में ब्लॉग का भारी चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध मशहूर हस्तियों के ब्लॉग लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और उन पर अपने विचार भी भेजते हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद के विषयों पर लिखते हैं और कई चिट्ठे विश्व भर में मशहूर होते हैं जिनका हवाला कई नीति-निर्धारण मुद्दों में किया जाता है। ब्लॉग का आरंभ १९९२ में लांच की गई पहली वेबसाइट के साथ ही हो गया था। आगे चलकर १९९० के दशक के अंतिम वर्षो में जाकर ब्लॉगिंग ने जोर पकड़ा। आरंभिक ब्लॉग कंप्यूटर जगत संबंधी मूलभूत जानकारी के थे। लेकिन बाद में कई विषयों के ब्लॉग सामने आने लगे। वर्तमान समय में लेखन का हल्का सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति अपना एक ब्लॉग बना सकता है, चूंकि यह निःशुल्क होता है, और अपना लिखा पूरे विश्व के सामने तक पहुंचा सकता है।
[२]
चिट्ठों पर राजनीतिक विचार, उत्पादों के विज्ञापन, शोधपत्र और शिक्षा का आदान-प्रदान भी किया जाता है। कई लोग चिट्ठों पर अपनी शिकायतें भी दर्ज कर के दूसरों को भेजते हैं। इन शिकायतों में दबी-छुपी भाषा से लेकर बेहद कर्कश भाषा तक प्रयोग की जाती है।वर्ष २००४ में ब्लॉग शब्द को मेरियम-वेबस्टर में आधिकारिक तौर पर सम्मिलित किया गया था। कई लोग अब चिट्ठों के माध्यम से ही एक दूसरे से संपर्क में रहने लग गए हैं। इस प्रकार एक तरह से चिट्ठाकारी या ब्लॉगिंग अब विश्व के साथ-साथ निजी संपर्क में रहने का माध्यम भी बन गया है। कई कंपनियां आपके चिट्ठों की सेवाओं को अत्यंत सरल बनाने के लिए कई सुविधाएं देने लग गई हैं।

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