Tuesday, April 5, 2011

eng

अंग्रेज़ी भाषाhttp://defn.me/r/hi/2n3
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

Editing of this article by new or unregistered users is currently disabled.
कृपया इस बारे में अधिक जानकारी हेतु सुरक्षा नीति एवं सुरक्षा लॉग का अवलोकन करें। If you cannot edit this article and you wish to make a change, you can discuss changes on the talk page, request unprotection, log in, or create an account.
इस लेख (या अनुभाग) को विकिफ़ाई करने की ज़रूरत है ताकि यह विकिपीडिया के गुणवत्ता आदर्शों तक पहुँचे।
कृपया इस लेख को सुधारने में मदद करें, मुख्यतः इसकी भूमिका, अनुभागों और उचित भीतरी कड़ियों को सुधारें। (मदद)
यह सुझाव दिया जाता है कि इस लेख या भाग का अंग्रेजी भाषा के साथ विलय कर दिया जाए। (वार्ता)भाषा का नाम
बोली जाती है —
क्षेत्र —
कुल बोलने वाले —
भाषा परिवार —
{{{name}}}

भाषा कूट
ISO 639-1 None
ISO 639-2 –टन्कण
ISO 639-3 –
Note: This page may contain IPA phonetic symbols in Unicode.
अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति, और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है।

अनुक्रम [छुपाएँ]
१ इतिहास
२ ध्वनियाँ
२.१ स्वर
२.२ व्यंजन
२.३ ध्वनि-अक्षरमाला सम्बन्ध
३ शब्दावली
४ व्याकरण
५ भाषाई साम्राज्यवाद एवं अंग्रेज़ी
६ इन्हें भी देखें
७ बाहरी कड़ियाँ


इतिहास
पाँचवीं और छठी सदी में ब्रिटेन के द्वीपों पर उत्तर की ओर से एंगल और सेक्सन क़बीलों ने हमला किया था और उन्होंने केल्टिक भाषाएँ बोलने वाले स्थानीय लोगों को स्कॉटलैंड, आयरलैंड और वेल्स की ओर धकेल दिया था।

आठवीं और नवीं सदी में उत्तर से वाइकिंग्स और नोर्स क़बीलों के हमले भी आरंभ हो गए थे और इस प्रकार वर्तमान इंगलैंड का क्षेत्र कई प्रकार की भाषा बोलने वालों का देश बन गया, और कई पुराने शब्दों को नए अर्थ मिल गए। जैसे – ड्रीम (dream) का अर्थ उस समय तक आनंद लेना था लेकिन उत्तर के वाइकिंग्स ने इसे सपने का अर्थ दे दिया। इसी प्रकार स्कर्ट का शब्द भी उत्तरी हमलावरों के साथ यहाँ आया। लेकिन इसका रूप बदल कर शर्ट (shirt) हो गया। बाद में दोनों शब्द अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त होने लगे और आज तक हो रहे हैं।

सन् ५०० से लेकर ११०० तक के काल को पुरानी अंग्रेज़ी का दौर कहा जाता है। १०६६ ईस्वी में ड्यूक ऑफ़ नॉरमंडी ने इंगलैंड पर हमला किया और यहाँ के एंग्लो-सैक्सॉन क़बीलों पर विजय पाई। इस प्रकार पुरानी फ़्रांसीसी भाषा के शब्द स्थानीय भाषा में मिलने लगे। अंग्रेज़ी का यह दौर ११०० से १५०० तक जारी रहा और इसे अंग्रेज़ी का विस्तार वाला दौर मध्यकालीन अंग्रेज़ी कहा जाता है। क़ानून और अपराध-दंड से संबंध रखने वाले बहुत से अंग्रेज़ी शब्द इसी काल में प्रचलित हुए। अंग्रेज़ी साहित्य में चौसर (Chaucer) की शायरी को इस भाषा का महत्वपूर्ण उदाहरण बताया जाता है।

सन् १५०० के बाद अंग्रेज़ी का आधुनिक काल आरंभ होता है जिसमें यूनानी भाषा के कुछ शब्दों ने मिलना आरंभ किया। यह दौर का शेक्सपियर जैसे साहित्यकार के नाम से आरंभ होता है और ये दौर सन १८०० तक चलता है। उसके बाद अंग्रेज़ी का आधुनिकतम दौर कहलाता है जिसमें अंग्रेज़ी व्याकरण सरल हो चुका है और उसमें अंग्रेज़ों के नए औपनिवेशिक एशियाई और अफ्रीक़ी लोगों की भाषाओं के बहुत से शब्द शामिल हो चुके हैं।
विश्व राजनीति, साहित्य, व्यवसाय आदि में अमरीका के बढ़ती हुए प्रभाव से अमरीकी अंग्रेज़ी ने भी विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है। इसका दूसरा कारण ब्रिटिश लोगों का साम्राज्यवाद भी था। वर्तनी की सरलता और बात करने की सरल और सुगम शैली अमरीकी अंग्रेज़ी की विशेषताएँ हैं।

ध्वनियाँ
स्वर
IPA विवरण हिन्दी उच्चारण (लगभग) अंग्रेज़ी शब्द अंग्रेज़ी स्पेलिंग के अक्षर
en:monophthongs
i/iː en:Close front unrounded vowel ई machine e, ee, ea, ie, i, ey, eo
ɪ en:Near-close near-front unrounded vowel इ bit i, e, y, a, u, ee, ey, ia, ai, ui, ei
ɛ en:Open-mid front unrounded vowel *छोटा ऍ red e, ea, a, u, ie, ei, ai, ay
æ en:Near-open front unrounded vowel *ऐ cat a
ɒ en:Open back rounded vowel *छोटा ऑ hot o, ua, au, ou, ow
ɔ en:Open-mid back rounded vowel *औ c'aught a, or, our, ore, ough, oor, aw, al, oar, ough, o, ar
ɑ/ɑː en:Open back unrounded vowel आ father a, au, e, ea
ʊ en:Near-close near-back rounded vowel उ put u, o, ou, oo, oe
u/uː en:Close back rounded vowel ऊ rule u, oo, o, ou, ui, ew, eau, oe, wo
ʌ/ɐ en:Open-mid back unrounded vowel, en:Near-open central vowel *छोटा आ cut u, o, ou, oo, oe
ɝ/ɜː en:Open-mid central unrounded vowel लम्बा अ bird er, ir, ur, or, ear, our
ə en:Schwa अ above a, ar, e, er, o (unstressed)
ɨ en:Close central unrounded vowel *छोटा इ rosez es, i
en:diphthongs
eɪ en:Close-mid front unrounded vowel
en:Close front unrounded vowel *एइ gate a, ay, ai, ey, ea
oʊ/əʊ en:Close-mid back rounded vowel
en:Near-close near-back rounded vowel *ओउ home o, ow, oa, ou
aɪ en:Open front unrounded vowel
en:Near-close near-front rounded vowel आइ time i, y, igh, ei, uy
aʊ en:Open front unrounded vowel
en:Near-close near-back rounded vowel आउ house ou, ow
ɔɪ en:Open-mid back rounded vowel
en:Close front unrounded vowel *ऑइ spoil oi, oy

व्यंजन
bilabial ओष्ठ्य Labiodental दन्त्योष्ठ्य dental दन्त्य alveolar वर्त्स्य post-
alveolar परा-वर्त्स palatal तालव्य velar कण्ठ्य glottal काकल्य
plosive स्पर्श p प b ब t *त--ट d *द--ड k क g ग
nasal अनुनासिक m म n न ŋ ङ
flap उत्क्षिपित ɾ *र
fricative संघर्षी f *फ़ v *व θ *थ ð *द s स z *ज़ ʃ *श ʒ *श्झ h *ह
affricate स्पर्श-संघर्षी tʃ *च dʒ *ज
en:approximant अर्धस्वर w *व ɹ *र j य
lateral approximant पार्श्विक l ल, ɫ *ल

यहाँ * का अर्थ उन स्वरों पर निशान लगाना है जो हिन्दी के ध्वनि-तन्त्र में नहीं होते, या जिनका शुद्ध उच्चारण अधिकांश भारतीय नहीं कर पाते ।

ध्वनि-अक्षरमाला सम्बन्ध
IPA वर्ण्माला का अक्षर अन्य बोलियों में
p p
b b
t t, th (rarely) thyme, Thames th thing ( African-American, New York)
d d th that ( African-American, New York)
k c (+ a, o, u, consonants), k, ck, ch, qu (rarely) conquer, kh (in foreign words)
g g, gh, gu (+ a, e, i), gue (final position)
m m
n n
ŋ n (before g or k), ng
f f, ph, gh (final, infrequent) laugh, rough th thing (many forms of English used in England)
v v th with ( en:Cockney, en:Estuary English)
θ th : there is no obvious way to identify which is which from the spelling.
ð
s s, c (+ e, i, y), sc (+ e, i, y)
z z, s (finally or occasionally medially),

शब्दावली
चूँकी अंग्रेज़ी एक जर्मनिक भाषा है, उसकी अधिकतर दैनिक उपयोग की शब्दावली प्राचीन जर्मन से आयी है । इसके अतिरिक्त भी अंग्रेज़ी में कई ऋणशब्द हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार स्थिति ये है :

फ़्रांसिसी और प्राचीन फ़्रांसिसी : २८.३ %
लैटिन : २८.२ %
प्राचीन ग्रीक : ५.३२ %
प्राचीन अंग्रेज़ी, प्राचिन नॉर्स और डच : २५ %
व्याकरण
यह अनुभाग खाली है, अर्थात पर्याप्त रूप से विस्तृत नहीं है या अधूरा है। आपकी सहायता का स्वागत है!



भाषाई साम्राज्यवाद एवं अंग्रेज़ी
अंग्रेज़ों ने दुनिया के अनेक देशों को राजनैतिक रूप से अपना उपनिवेश बनाया। इसके साथ ही उन्होंने उन देशों पर बड़ी चालाकी से अंग्रेज़ी भी लाद दी। इसी का परिणाम है कि आज ब्रिटेन के बाहर सं रा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, कनाडा, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश्, दक्षिण अफ्रिका आदि अनेक देशों में अंग्रेज़ी का वर्चस्व है। अंग्रेज़ी ने यहां कि देशी भाषाओं को बुरी तरह पंगु बना रखा है। ब्रिटिश काउन्सिल जैसी संस्थायें इस अंग्रेज़ी के प्रसार के लिये तरह-तरह के दुष्प्रचार एवं गुप्त अभियान करती रहतीं हैं।

इन्हें भी देखें
अंग्रेजी साहित्य
बाहरी कड़ियाँ
अंगरेजी भाषा का संक्षिप्त ऐतिहासिक वृत्तांत
राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी (लेखक - ऋषिकेश राय)

eng

अंग्रेज़ी भाषाhttp://defn.me/r/hi/2n3
विकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

Editing of this article by new or unregistered users is currently disabled.
कृपया इस बारे में अधिक जानकारी हेतु सुरक्षा नीति एवं सुरक्षा लॉग का अवलोकन करें। If you cannot edit this article and you wish to make a change, you can discuss changes on the talk page, request unprotection, log in, or create an account.
इस लेख (या अनुभाग) को विकिफ़ाई करने की ज़रूरत है ताकि यह विकिपीडिया के गुणवत्ता आदर्शों तक पहुँचे।
कृपया इस लेख को सुधारने में मदद करें, मुख्यतः इसकी भूमिका, अनुभागों और उचित भीतरी कड़ियों को सुधारें। (मदद)
यह सुझाव दिया जाता है कि इस लेख या भाग का अंग्रेजी भाषा के साथ विलय कर दिया जाए। (वार्ता)भाषा का नाम
बोली जाती है —
क्षेत्र —
कुल बोलने वाले —
भाषा परिवार —
{{{name}}}

भाषा कूट
ISO 639-1 None
ISO 639-2 –टन्कण
ISO 639-3 –
Note: This page may contain IPA phonetic symbols in Unicode.
अंग्रेज़ी भाषा (अंग्रेज़ी: English हिन्दी उच्चारण: इंग्लिश) हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार में आती है और इस दृष्टि से हिंदी, उर्दू, फ़ारसी आदि के साथ इसका दूर का संबंध बनता है। ये इस परिवार की जर्मनिक शाखा में रखी जाती है। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति, और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। अंग्रेज़ी भाषा रोमन लिपि में लिखी जाती है।

अनुक्रम [छुपाएँ]
१ इतिहास
२ ध्वनियाँ
२.१ स्वर
२.२ व्यंजन
२.३ ध्वनि-अक्षरमाला सम्बन्ध
३ शब्दावली
४ व्याकरण
५ भाषाई साम्राज्यवाद एवं अंग्रेज़ी
६ इन्हें भी देखें
७ बाहरी कड़ियाँ


इतिहास
पाँचवीं और छठी सदी में ब्रिटेन के द्वीपों पर उत्तर की ओर से एंगल और सेक्सन क़बीलों ने हमला किया था और उन्होंने केल्टिक भाषाएँ बोलने वाले स्थानीय लोगों को स्कॉटलैंड, आयरलैंड और वेल्स की ओर धकेल दिया था।

आठवीं और नवीं सदी में उत्तर से वाइकिंग्स और नोर्स क़बीलों के हमले भी आरंभ हो गए थे और इस प्रकार वर्तमान इंगलैंड का क्षेत्र कई प्रकार की भाषा बोलने वालों का देश बन गया, और कई पुराने शब्दों को नए अर्थ मिल गए। जैसे – ड्रीम (dream) का अर्थ उस समय तक आनंद लेना था लेकिन उत्तर के वाइकिंग्स ने इसे सपने का अर्थ दे दिया। इसी प्रकार स्कर्ट का शब्द भी उत्तरी हमलावरों के साथ यहाँ आया। लेकिन इसका रूप बदल कर शर्ट (shirt) हो गया। बाद में दोनों शब्द अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त होने लगे और आज तक हो रहे हैं।

सन् ५०० से लेकर ११०० तक के काल को पुरानी अंग्रेज़ी का दौर कहा जाता है। १०६६ ईस्वी में ड्यूक ऑफ़ नॉरमंडी ने इंगलैंड पर हमला किया और यहाँ के एंग्लो-सैक्सॉन क़बीलों पर विजय पाई। इस प्रकार पुरानी फ़्रांसीसी भाषा के शब्द स्थानीय भाषा में मिलने लगे। अंग्रेज़ी का यह दौर ११०० से १५०० तक जारी रहा और इसे अंग्रेज़ी का विस्तार वाला दौर मध्यकालीन अंग्रेज़ी कहा जाता है। क़ानून और अपराध-दंड से संबंध रखने वाले बहुत से अंग्रेज़ी शब्द इसी काल में प्रचलित हुए। अंग्रेज़ी साहित्य में चौसर (Chaucer) की शायरी को इस भाषा का महत्वपूर्ण उदाहरण बताया जाता है।

सन् १५०० के बाद अंग्रेज़ी का आधुनिक काल आरंभ होता है जिसमें यूनानी भाषा के कुछ शब्दों ने मिलना आरंभ किया। यह दौर का शेक्सपियर जैसे साहित्यकार के नाम से आरंभ होता है और ये दौर सन १८०० तक चलता है। उसके बाद अंग्रेज़ी का आधुनिकतम दौर कहलाता है जिसमें अंग्रेज़ी व्याकरण सरल हो चुका है और उसमें अंग्रेज़ों के नए औपनिवेशिक एशियाई और अफ्रीक़ी लोगों की भाषाओं के बहुत से शब्द शामिल हो चुके हैं।
विश्व राजनीति, साहित्य, व्यवसाय आदि में अमरीका के बढ़ती हुए प्रभाव से अमरीकी अंग्रेज़ी ने भी विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है। इसका दूसरा कारण ब्रिटिश लोगों का साम्राज्यवाद भी था। वर्तनी की सरलता और बात करने की सरल और सुगम शैली अमरीकी अंग्रेज़ी की विशेषताएँ हैं।

ध्वनियाँ
स्वर
IPA विवरण हिन्दी उच्चारण (लगभग) अंग्रेज़ी शब्द अंग्रेज़ी स्पेलिंग के अक्षर
en:monophthongs
i/iː en:Close front unrounded vowel ई machine e, ee, ea, ie, i, ey, eo
ɪ en:Near-close near-front unrounded vowel इ bit i, e, y, a, u, ee, ey, ia, ai, ui, ei
ɛ en:Open-mid front unrounded vowel *छोटा ऍ red e, ea, a, u, ie, ei, ai, ay
æ en:Near-open front unrounded vowel *ऐ cat a
ɒ en:Open back rounded vowel *छोटा ऑ hot o, ua, au, ou, ow
ɔ en:Open-mid back rounded vowel *औ c'aught a, or, our, ore, ough, oor, aw, al, oar, ough, o, ar
ɑ/ɑː en:Open back unrounded vowel आ father a, au, e, ea
ʊ en:Near-close near-back rounded vowel उ put u, o, ou, oo, oe
u/uː en:Close back rounded vowel ऊ rule u, oo, o, ou, ui, ew, eau, oe, wo
ʌ/ɐ en:Open-mid back unrounded vowel, en:Near-open central vowel *छोटा आ cut u, o, ou, oo, oe
ɝ/ɜː en:Open-mid central unrounded vowel लम्बा अ bird er, ir, ur, or, ear, our
ə en:Schwa अ above a, ar, e, er, o (unstressed)
ɨ en:Close central unrounded vowel *छोटा इ rosez es, i
en:diphthongs
eɪ en:Close-mid front unrounded vowel
en:Close front unrounded vowel *एइ gate a, ay, ai, ey, ea
oʊ/əʊ en:Close-mid back rounded vowel
en:Near-close near-back rounded vowel *ओउ home o, ow, oa, ou
aɪ en:Open front unrounded vowel
en:Near-close near-front rounded vowel आइ time i, y, igh, ei, uy
aʊ en:Open front unrounded vowel
en:Near-close near-back rounded vowel आउ house ou, ow
ɔɪ en:Open-mid back rounded vowel
en:Close front unrounded vowel *ऑइ spoil oi, oy

व्यंजन
bilabial ओष्ठ्य Labiodental दन्त्योष्ठ्य dental दन्त्य alveolar वर्त्स्य post-
alveolar परा-वर्त्स palatal तालव्य velar कण्ठ्य glottal काकल्य
plosive स्पर्श p प b ब t *त--ट d *द--ड k क g ग
nasal अनुनासिक m म n न ŋ ङ
flap उत्क्षिपित ɾ *र
fricative संघर्षी f *फ़ v *व θ *थ ð *द s स z *ज़ ʃ *श ʒ *श्झ h *ह
affricate स्पर्श-संघर्षी tʃ *च dʒ *ज
en:approximant अर्धस्वर w *व ɹ *र j य
lateral approximant पार्श्विक l ल, ɫ *ल

यहाँ * का अर्थ उन स्वरों पर निशान लगाना है जो हिन्दी के ध्वनि-तन्त्र में नहीं होते, या जिनका शुद्ध उच्चारण अधिकांश भारतीय नहीं कर पाते ।

ध्वनि-अक्षरमाला सम्बन्ध
IPA वर्ण्माला का अक्षर अन्य बोलियों में
p p
b b
t t, th (rarely) thyme, Thames th thing ( African-American, New York)
d d th that ( African-American, New York)
k c (+ a, o, u, consonants), k, ck, ch, qu (rarely) conquer, kh (in foreign words)
g g, gh, gu (+ a, e, i), gue (final position)
m m
n n
ŋ n (before g or k), ng
f f, ph, gh (final, infrequent) laugh, rough th thing (many forms of English used in England)
v v th with ( en:Cockney, en:Estuary English)
θ th : there is no obvious way to identify which is which from the spelling.
ð
s s, c (+ e, i, y), sc (+ e, i, y)
z z, s (finally or occasionally medially),

शब्दावली
चूँकी अंग्रेज़ी एक जर्मनिक भाषा है, उसकी अधिकतर दैनिक उपयोग की शब्दावली प्राचीन जर्मन से आयी है । इसके अतिरिक्त भी अंग्रेज़ी में कई ऋणशब्द हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार स्थिति ये है :

फ़्रांसिसी और प्राचीन फ़्रांसिसी : २८.३ %
लैटिन : २८.२ %
प्राचीन ग्रीक : ५.३२ %
प्राचीन अंग्रेज़ी, प्राचिन नॉर्स और डच : २५ %
व्याकरण
यह अनुभाग खाली है, अर्थात पर्याप्त रूप से विस्तृत नहीं है या अधूरा है। आपकी सहायता का स्वागत है!



भाषाई साम्राज्यवाद एवं अंग्रेज़ी
अंग्रेज़ों ने दुनिया के अनेक देशों को राजनैतिक रूप से अपना उपनिवेश बनाया। इसके साथ ही उन्होंने उन देशों पर बड़ी चालाकी से अंग्रेज़ी भी लाद दी। इसी का परिणाम है कि आज ब्रिटेन के बाहर सं रा अमेरिका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, कनाडा, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश्, दक्षिण अफ्रिका आदि अनेक देशों में अंग्रेज़ी का वर्चस्व है। अंग्रेज़ी ने यहां कि देशी भाषाओं को बुरी तरह पंगु बना रखा है। ब्रिटिश काउन्सिल जैसी संस्थायें इस अंग्रेज़ी के प्रसार के लिये तरह-तरह के दुष्प्रचार एवं गुप्त अभियान करती रहतीं हैं।

इन्हें भी देखें
अंग्रेजी साहित्य
बाहरी कड़ियाँ
अंगरेजी भाषा का संक्षिप्त ऐतिहासिक वृत्तांत
राष्ट्रीय अस्मिता और अंग्रेजी (लेखक - ऋषिकेश राय)

Thursday, February 3, 2011

redio

Radio broadcasting is a one-way sound broadcasting service, transmitted over radio waves (a form of electromagnetic radiation) from a transmitter to a receiving antenna and intended to reach a wide audience. Stations can be linked in radio networks to broadcast common programming, either in syndication or simulcast or both. Audio broadcasting also can be done via cable FM, local wire networks, satellite and the Internet.
Contents [hide]
1 History
2 Types
2.1 Shortwave
2.2 AM
2.3 FM
2.4 Pirate radio
2.5 Terrestrial digital radio
2.6 Satellite
3 Program formats
4 See also
5 References
6 Further reading
7 External links
[edit]History

Main article: History of radio
The earliest radio stations were simply radiotelegraphy systems and did not carry audio. The first claimed audio transmission that could be termed a broadcast occurred on Christmas Eve in 1906, and was made by Reginald Fessenden. Whether this broadcast actually took place is disputed.[1] While many early experimenters attempted to create systems similar to radiotelephone devices where only two parties were meant to communicate, there were others who intended to transmit to larger audiences. Charles Herrold started broadcasting in California in 1909 and was carrying audio by the next year. (Herrold's station eventually became KCBS).
For the next decade, radio tinkerers had to build their own radio receivers. In The Hague, the Netherlands, PCGG started broadcasting on November 6, 1919. Dr. Frank Conrad began broadcasting from his Wilkinsburg, Pennsylvania garage with the call letters KDKA. KDKA's first commercial broadcast was made from Saxonburg, Butler County, PA on November 2, 1920. Later, the equipment was moved to the top of an office building in Pittsburgh, Pennsylvania and purchased by Westinghouse. KDKA of Pittsburgh, under Westinghouse's ownership, started broadcasting as the first licensed "commercial" radio station on November 2, 1920.[2] The commercial designation came from the type of license; advertisements did not air until years later. The first broadcast in USA was the results of the U.S. presidential election, 1920. The Montreal station that became CFCF began program broadcasts on May 20, 1920, and the Detroit station that became WWJ began program broadcasts beginning on August 20, 1920, although neither held a license at the time.
Radio Argentina began regularly scheduled transmissions from the Teatro Coliseo in Buenos Aires on August 27, 1920, making its own priority claim. The station got its license on November 19, 1923. The delay was due to the lack of official Argentine licensing procedures before that date. This station continued regular broadcasting of entertainment and cultural fare for several decades.[3]
Radio in education soon followed and colleges across the U.S. began adding radio broadcasting courses to their curricula. Curry College in Milton, Massachusetts introduced one of the first broadcasting majors in 1932 when the college teamed up with WLOE in Boston to have students broadcast programs.[4]
[edit]Types



Transmission and reception schematic
Broadcasting by radio takes several forms. These include AM and FM stations. There are several subtypes, namely commercial, public and nonprofit varieties as well as student-run campus radio stations and hospital radio stations can be found throughout the world.
Many stations that broadcast on shortwave bands using AM technology that can be received over thousands of miles (especially at night). For example, the BBC has a full schedule transmitted via shortwave to Africa and Asia. These broadcasts are very sensitive to atmospheric conditions and solar activity.
Arbitron, the United States based company that reports on radio audiences, defines a "radio station" as a government-licensed AM or FM station; an HD Radio (primary or multicast) station; an internet stream of an existing government-licensed station; one of the satellite radio channels from XM Satellite Radio or Sirius Satellite Radio; or, potentially, a station that is not government licensed.[5]
[edit]Shortwave
See Shortwave for the differences between shortwave, medium wave and long wave spectra. Used largely for national broadcasters, international propaganda, or religious organizations.
[edit]AM


AM radio broadcast stations in 2006
AM stations were the earliest broadcasting stations to be developed. AM refers to amplitude modulation, a mode of broadcasting radio waves by varying the amplitude of the carrier signal in response to the amplitude of the signal to be transmitted.
The medium-wave band is used worldwide for AM broadcasting. Europe also uses the long wave band. In response to the growing popularity of FM radio stereo radio stations in the late 1980s and early 1990s, some North American stations began broadcasting in AM stereo, though this never gained popularity, and very few receivers were ever sold.
One of the advantages of AM is that its signal can be detected (turned into sound) with simple equipment. If a signal is strong enough, not even a power source is needed; building an unpowered crystal radio receiver is a common childhood project.
AM broadcasts occur on North American airwaves in the medium wave frequency range of 530 to 1700 kHz (known as the "standard broadcast band"). The band was expanded in the 1990s by adding nine channels from 1620 to 1700 kHz. Channels are spaced every 10 kHz in the Americas, and generally every 9 kHz everywhere else.
The signal is subject to interference from electrical storms (lightning) and other EMI.
AM transmissions cannot be ionospherically propagated during the day due to strong absorption in the D-layer of the ionosphere. In a crowded channel environment this means that the power of regional channels which share a frequency must be reduced at night or directionally beamed in order to avoid interference, which reduces the potential nighttime audience. Some stations have frequencies unshared with other stations in North America; these are called clear-channel stations. Many of them can be heard across much of the country at night. This is not to be confused with Clear Channel Communications, merely a brand name, which currently owns many U.S. radio stations on both the AM and FM bands. During the night, this absorption largely disappears and permits signals to travel to much more distant locations via ionospheric reflections. However, fading of the signal can be severe at night.
AM radio transmitters can transmit audio frequencies up to 15 kHz (now limited to 10 kHz in the US due to FCC rules designed to reduce interference), but most receivers are only capable of reproducing frequencies up to 5 kHz or less. At the time that AM broadcasting began in the 1920s, this provided adequate fidelity for existing microphones, 78 rpm recordings, and loudspeakers. The fidelity of sound equipment subsequently improved considerably, but the receivers did not. Reducing the bandwidth of the receivers reduces the cost of manufacturing and makes them less prone to interference. AM stations are never assigned adjacent channels in the same service area. This prevents the sideband power generated by two stations from interfering with each other. Bob Carver created an AM stereo tuner employing notch filtering that demonstrated that an AM broadcast can meet or exceed the 15 kHz baseband bandwidth allocted to FM stations without objectionable interference. After several years, the tuner was discontinued. Bob Carver had left the company and the Carver Corporation later cut the number of models produced before discontinuing production completely. AM stereo broadcasts declined with the advent of HD Radio.
[edit]FM


FM radio broadcast stations in 2006
FM refers to frequency modulation, and occurs on VHF airwaves in the frequency range of 88 to 108 MHz everywhere (except Japan and Russia). Japan uses the 76 to 90 MHz band. Russia has two bands widely used by the Soviet Union, 65.9 to 74 MHz and 87.5 to 108 MHz worldwide standard. FM stations are much more popular since higher sound fidelity and stereo broadcasting became common in this format.
FM radio was invented by Edwin H. Armstrong in the 1930s for the specific purpose of overcoming the interference problem of AM radio, to which it is relatively immune. At the same time, greater fidelity was made possible by spacing stations further apart. Instead of 10 kHz apart, as on the AM band in the US, FM channels are 200 kHz (0.2 MHz) apart. In other countries greater spacing is sometimes mandatory, such as in New Zealand, which uses 700 kHz spacing (previously 800 kHz). The improved fidelity made available was far in advance of the audio equipment of the 1940s, but wide interchannel spacing was chosen to take advantage of the noise-suppressing feature of wideband FM.
Bandwidth of 200 kHz is not needed to accommodate an audio signal — 20 kHz to 30 kHz is all that is necessary for a narrowband FM signal. The 200 kHz bandwidth allowed room for ±75 kHz signal deviation from the assigned frequency, plus guard bands to reduce or eliminate adjacent channel interference. The larger bandwidth allows for broadcasting a 15 kHz bandwidth audio signal plus a 38 kHz stereo "subcarrier"—a piggyback signal that rides on the main signal. Additional unused capacity is used by some broadcasters to transmit utility functions such as background music for public areas, GPS auxiliary signals, or financial market data.
The AM radio problem of interference at night was addressed in a different way. At the time FM was set up, the available frequencies were far higher in the spectrum than those used for AM radio - by a factor of approximately 100. Using these frequencies meant that even at far higher power, the range of a given FM signal was much shorter; thus its market was more local than for AM radio. The reception range at night is the same as in the daytime.
The original FM radio service in the U.S. was the Yankee Network, located in New England.[6][7][8] Regular FM broadcasting began in 1939, but did not pose a significant threat to the AM broadcasting industry. It required purchase of a special receiver. The frequencies used, 42 to 50 MHz, were not those used today. The change to the current frequencies, 88 to 108 MHz, began after the end of World War II, and was to some extent imposed by AM broadcasters as an attempt to cripple what was by now realized to be a potentially serious threat.
FM radio on the new band had to begin from the ground floor. As a commercial venture it remained a little-used audio enthusiasts' medium until the 1960s. The more prosperous AM stations, or their owners, acquired FM licenses and often broadcast the same programming on the FM station as on the AM station ("simulcasting"). The FCC limited this practice in the 1970s. By the 1980s, since almost all new radios included both AM and FM tuners, FM became the dominant medium, especially in cities. Because of its greater range, AM remained more common in rural environments.
[edit]Pirate radio
Main article: Pirate radio
Pirate radio is radio broadcasting not sanctioned by the regulations of the originating country. Pirate radio may be a commercial enterprise supported by advertising targeted to listeners in the reception area, or may be privately run for entertainment, or political reasons, sometimes on a very small scale covering only a few city blocks.
[edit]Terrestrial digital radio
Digital radio broadcasting has emerged, first in Europe (the UK in 1995 and Germany in 1999), and later in the United States, France, the Netherlands, South Africa and many other countries worldwide. The most simple system is named DAB Digital Radio, for Digital Audio Broadcasting, and uses the public domain EUREKA 147 (Band III) system. DAB is used mainly in the UK and South Africa. Germany and Holland use the DAB and DAB+ systems, and France use the L-Band system of DAB Digital Radio.
In the United States digital radio isn't used in the same way as Europe and South Africa. Instead, the IBOC system is named HD Radio and owned by a consortium of private companies that is called iBiquity. An international non-profit consortium Digital Radio Mondiale (DRM), has introduced the public domain DRM system.
[edit]Satellite
This section requires expansion.
Satellite radio broadcasters are slowly emerging, but the enormous entry costs of space-based satellite transmitters, and restrictions on available radio spectrum licenses has restricted growth of this market. In the USA and Canada, just two services, XM Satellite Radio and Sirius Satellite Radio exist. Both XM and Sirius are owned by Sirius XM Radio, which was formed by the merger of XM and Sirius on July 29, 2008, whereas in Canada, XM Radio Canada and Sirius Canada remain separate companies.
[edit]Program formats

Main article: Radio format
Radio program formats differ by country, regulation and markets. For instance, the U.S. Federal Communications Commission designates the 88–92 megahertz band in the U.S. for non-profit or educational programming, with advertising prohibited.
In addition, formats change in popularity as time passes and technology improves. Early radio equipment only allowed program material to be broadcast in real time, known as live broadcasting. As technology for sound recording improved, an increasing proportion of broadcast programming used pre-recorded material. A current trend is the automation of radio stations. Some stations now operate without direct human intervention by using entirely pre-recorded material sequenced by computer control

Thursday, January 20, 2011

operating system

operating system
प्रचालन तंत्र (अंग्रेज़ी:ऑपरेटिंग सिस्टम) साफ्टवेयर का समूह है जो कि आंकड़ों एवं निर्देश के संचरण को नियंत्रित करता है। यह हार्डवेयर एवं साफ्टवेयर के बीच सेतु का कार्य करता है और कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर घटक होता है। इसी की सहायता से ही कंप्यूटर में स्थापित प्रोग्राम चलते हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम कंप्यूटर का मेरुदंड होता है, जो इसके सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर को नियंत्रण में रखता है। यह अनाधिकृत व्यक्ति को कंप्यूटर के गलत प्रयोग करने से रोकता है।[१] वह इसमें भी विभेद कर सकता हैं कि कौन सा निवेदन पूरा करना है और कौन सा नहीं, इसके साथ ही इनकी वरीयता भी ध्यान रखी जाती है। इसकी मदद से एक से ज्यादा सीपीयू में भी प्रोगाम चलाए जा सकते हैं। इसके अलावा संगणक संचिका को पुनः नाम देना, डायरेक्टरी की विषय सूची बदलना, डायरेक्टरी बदलना आदि कार्य भी प्रचालन तंत्र के द्वारा किए जाते है।[२] डॉस (DOS), यूनिक्स, विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम (३.१, ९५, ९८, २०००, एक्स पी, विस्ता, विंडोज ७) और लिनक्स आदि कुछ प्रमुख प्रचालन तंत्र हैं।[२]
विभिन्न प्रचालन तंत्रों में से कुछ हैं:लिनक्स, मैक ओएस एक्स, डॉस, आईबीएम ओएस/2 (IBM OS/2), यूनिक्स, विन्डोज सीई, विन्डोज 3.x, विन्डोज ९५, विन्डोज ९८, विन्डोज मिलेनियम, विन्डोज़ एनटी, विन्डोज २०००, विन्डोज़ एक्स पी, विन्डोज़ विस्टा, विन्डोज़ 7

प्रचालन तंत्र कंप्यूटर से जुड़े कई मौलिक कार्यों को संभालता है, जैसे की-बोर्ड से इनपुट लेना, डिस्प्ले स्क्रीन को आउटपुट भेजना, डाइरेक्टरी और संगणक संचिका को डिस्क में ट्रेक करना, इत्यादि। बड़े कंप्यूटरों में इसका काम और अधिक होता है।[१] वह इनमें लगातार यह जांच करता है कि एक ही समय पर कंप्यूटर में चलने वाले प्रोगामों, फाइलों और एक ही समय पर खुलने वाली साइटों में दोहराव न हो। आरंभिक दौर में यह मेनफ्रेम कंप्यूटरों पर बड़े कामों के लिए ही हुआ करता था। बाद में धीरे-धीरे माइक्रोकम्प्यूटर्स में भी मिलने लगा, लेकिन उस समय इसमें एक समय पर केवल एक ही प्रोगाम रन करा सकते थे। मेनफ्रेम कंप्यूटर में १९६० में पहली बार बहुकार्यिक (मल्टीटास्किंग) सिस्टम आया था। इससे एक समय में एक से ज्यादा उपयोक्ता काम कर सकते थे। १९७० लिनक्स ने पहली बार पीडीपी-७ में प्रचालन तंत्र निकाला, जो मुख्यतया मल्टीटास्किंग, स्मृति प्रबंधन (मेमोरी मैनेजमेंट), स्मृति संरक्षण (मेमोरी प्रोटेक्शन) जैसे कार्य करता था।





ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है


ऑपरेटिंग सिस्टम एक सिस्टम सॉफ्टवेयर है, जो कम्प्यूटर सिस्टम के हार्डवेयर रिसोर्सेस, जैसे-मैमोरी, प्रोसेसर तथा इनपुट-आउटपुट डिवाइसेस को व्यवस्थित करता है । ऑपरेटिंग सिस्टम व्यवस्थित रूप से जमे हुए साफ्टवेयर का समूह है जो कि आंकडो एवं निर्देश के संचरण को नियंत्रित करता है । ऑपरेटिंग सिस्टम, कम्प्यूटर सिस्टम के प्रत्येक रिसोर्स की स्थिति का लेखा - जोखा रखता है तथा यह निर्णय भी लेता है कि किसका कब और कितनी देर के लिए कम्प्यूटर रिसोर्स पर नियंत्रण होगा । एक कम्प्यूटर सिस्टम के मुख्य रूप से चार घटक हैं -
* हार्डवेयर
* ऑपरेटिंग सिस्टम
* एप्लीकेशन प्रोग्राम
* यूजर्स

आपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता
आपरेटिंग सिस्टम हार्डवेयर एवंसाफ्टवेयर के बिच सेतु का कार्य करता है कम्पयुटर का अपने आप मे कोई अस्तित्व नही है । यङ केवल हार्डवेयर जैसे की-बोर्ड, मानिटर , सी.पी.यू इत्यादि का समूह है आपरेटिंग सिस्टम समस्त हार्डवेयर के बिच सम्बंध स्थापित करता है आपरेटिंग सिस्टम के कारण ही प्रयोगकर्ता को कम्युटर के विभिन्न भागो की जानकारी रखने की जरूरत नही पडती है साथ ही प्रयोगकर्ता अपने सभी कार्य तनाव रहित होकर कर सकता है यह सिस्टम के साधनो को बाॅटता एवं व्यवस्थित करता है

आपरेटिंग सिस्टम के कई अन्य उपयोगी विभाग होते है जिनके सुपुर्द कई काम केन्द्रिय प्रोसेसर द्वारा किए जाते है । उदाहरण के लिए प्रिटिंग का कोई किया जाता है तो केन्द्रिय प्रोसेसर आवश्यक आदेश देकर वह कार्य आपरेटिंग सिस्टम पर छोड देता है । और वह स्वयं अगला कार्य करने लगता है । इसके अतिरिक्त फाइल को पुनः नाम देना , डायरेक्टरी की विषय सूचि बदलना , डायरेक्टरी बदलना आदि कार्य आपरेटिंग सिस्टम के द्वारा किए जाते है ।
इसके अन्तर्गत निम्न कार्य आते है -

1) फाइल पद्धति
फाइल बनाना, मिटाना एवं फाइल एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाना । फाइल निर्देशिका को व्यवस्थित करना ।

2) प्रक्रिया
प्रोग्राम एवं आंकडो को मेमोरी मे बाटना । एवं प्रोसेस का प्रारंभ एवं समानयन करना । प्रयोगकर्ता मध्यस्थ फाइल की प्रतिलिपी ,निर्देशिका , इत्यादि के लिए निर्देश , रेखाचित्रिय डिस्क टाप आदि

3) इनपुट/आउटपुट
माॅनिटर प्रिंटर डिस्क आदि के लिए मध्यस्थ

Saturday, January 15, 2011

अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र
यह पृष्ठ अर्थशास्त्र विषय से संबन्धित है। कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र ग्रन्थ के लिये यहां देखें।
अर्थशास्त्र (Economics) सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ( धन ) और शास्त्र की सन्धि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है धन का अध्ययन।
लियोनेल रोबिंसन के अनुसार आधुनिक अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार है,"वह विज्ञान जो मानव स्वभाव का वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों और उनके प्रयोग के मध्य अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है।" दुर्लभता का अर्थ है कि उपलब्ध संसाधन सभी मांगों और जरुरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं। दुर्लभता और संसाधनों के वैकल्पिक उपयोगों के कारण ही अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता है। अतएव यह विषय प्रेरकों और संसाधनों के प्रभाव में विकल्प का अध्ययन करता है।
अनुक्रम [छुपाएँ]
१ वर्गीकरण
२ इतिहास
३ विषयवस्तु
४ मूल अवधारणायें
४.१ मूल्य
४.२ माँग और आपूर्ति
४.३ मूल्य
५ इन्हें भी देखें
६ संदर्भ
७ बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]वर्गीकरण

व्यष्टि अर्थशास्त्र एवं समष्टि अर्थशास्त्र (Microeconomics and Macroeconomics)
सकारात्मक अर्थशास्त्र (जो हो रहा है) एवं मानक अर्थशास्त्र (जो होना चाहिए )
मुख्यधारा अर्थशास्त्र एवं अपारम्परिक अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र का प्रयोग यह समझने के लिये भी किया जाता है कि अर्थव्यवस्था किस तरह से कार्य करती है और समाज में विभिन्न वर्गों का आर्थिक सम्बन्ध कैसा है । अर्थशास्त्रीय विवेचना का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:- अपराध, शिक्षा, परिवार, स्वास्थ्य , कानून, राजनीति, धर्म, सामाजिक संस्थान और युद्ध इत्यदि।[१]
[संपादित करें]इतिहास

अर्थशास्त्र पर लिखी गयी प्रथम पुस्तक कौटिल्य रचित अर्थशास्त्र है। यद्यपि उत्पादन और वितरण के बारे में परिचर्चा का एक लम्बा इतिहास है, किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्र का जन्म एडम स्मिथ की किताब द वेल्थ आफ़ नेशन्स के 1776 में प्रकाशन के समय से माना जाता है।
[संपादित करें]विषयवस्तु

अर्थशास्त्र को कई प्रकारों से विभाजित किया जा सकता है, किन्तु किसी अर्थव्यवस्था का निम्नलिखित दो तरीकों से विश्लेषण किया जाता है।
व्यष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत व्यक्तिगत इकाइयों (जिनमें व्यापार एवं परिवार शामिल हैं ) और सीमित बाजार में उनके अन्तःसम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
समष्टि अर्थशास्त्र अन्तर्गत समूचे देश की अर्थव्यवस्था का अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत सकल घरेलू उत्पाद, रोजगार, मुद्रास्फीति, उपभोग,निवेश जैसी राशियों का अध्ययन किया जाता है।

[संपादित करें]मूल अवधारणायें

[संपादित करें]मूल्य
मूल्य की अवधारणा अर्थशास्त्र में केन्द्रीय है। इसको मापने का एक तरीका वस्तु का बाजार भाव है। एडम स्मिथ ने श्रम को मूल्य के मुख्य श्रोत के रुप में परिभाषित किया। "मूल्य के श्रम सिद्धान्त" को कार्ल मार्क्स सहित कई अर्थशास्त्रियों ने प्रतिपादित किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी सेवा या वस्तु का मूल्य उसके उत्पादन में प्रयुक्त श्रम के बराबर होत है। अधिकांश लोगों का मानना है कि इसका मूल्य वस्तु के दाम निर्धारित करता है। दाम का यह श्रम सिद्धान्त "मूल्य के उत्पादन लागत सिद्धान्त" से निकटता से जुड़ा हुआ है।
[संपादित करें]माँग और आपूर्ति
प्रारुप बताता है कि किस तरह आपूर्ति और मॉग के सन्तुलन से कीमत में परिवर्तन होता है।
में माँग और आपूर्ति की सहायता से पूर्णतः प्रतिस्पर्धी बाजार में बेचे गये वस्तुओं कीमत और मात्रा की विवेचना , व्याख्या और पुर्वानुमान लगाया जाता है। यह अर्थशास्त्र के सबसे मुलभूत प्रारुपों में से एक है। क्रमश: बड़े सिद्धान्तों और प्रारूपों के विकास के लिए इसका विशद रुप से प्रयोग होता है।
माँग किसी नियत समयकाल में किसी उत्पाद की वह मात्रा है, जिसे नियत दाम पर उपभोक्ता खरीदना चाहता है और खरीदने में सक्षम है।माँग को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रुप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और इच्छित मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है।
आपूर्ति वस्तु की वह मात्रा है जिसे नियत समय में दिये गये दाम पर उत्पादक या विक्रेता बाजार में बेचने के लिए तैयार है। आपूर्ति को सामान्यतः एक तालिका या ग्राफ़ के रुप में प्रदर्शित करते हैं जिसमें कीमत और आपूर्ति की मात्रा का संबन्ध दिखाया जाता है।
[संपादित करें]मूल्य
किसी वस्तु की कीमत किसी बाजार में ग्राहक और विक्रेता के बीच उसकी विनिमय की दर है।
[संपादित करें]

पटकथा-लेखन

सारांश:


पटकथा-लेखन एक हुनर है। अंग्रेजी में पटकथा-लेखन के बारे में पचासों किताबें उपलब्ध हैं और विदेशों के खासकर अमेरिका के, कई विश्वविद्यालयों में पटकथा-लेखन के बाक़ायदा पाठ्यक्रम चलते हैं। लेकिन भारत में इस दिशा में अभी तक कोई पहल नहीं हुई। हिन्दी में तो पटकथा-लेखन और सिनेमा से जुड़ी अन्य विद्याओं के बारे में कोई अच्छी किताब छपी ही नहीं है। इसकी एक वजह यह भी है कि हिन्दी में सामान्यतः यह माना जाता रहा है कि लिखना चाहे किसी भी तरह का हो, उसे सिखाया नहीं जा सकता। कई बार तो लगता है कि शायद हम मानते हैं कि लिखना सीखना भी नहीं चाहिए। यह मान्यता भ्रामक है और इसी का नतीजा है कि हिन्दी वाले गीत-लेखन, रेडियो, रंगमंच, सिनेमा, टी.वी. और विज्ञापनों आदि में ज़्यादा नहीं चल पाए।
लेकिन इधर फिल्म और टी.वी के प्रसार और पटकथा-लेखन में रोजगार की बढ़ती सम्भावनाओं को देखते हुए अनेक लोग पटकथा-लेखन में रुचि लेने लगे हैं, और पटकथा के शिल्प की आधारभूत जानकारी चाहते हैं। अफसोस कि हिन्दी में ऐसी जानकारी देने वाली पुस्तक अब तक उपलब्ध ही नहीं थी।
‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ इसी दिशा में एक बड़ी शुरुआत है, न सिर्फ इसलिए कि इसके लेखक सिद्ध पटकथाकार मनोहर श्याम जोशी हैं, बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने इस पुस्तक की एक-एक पंक्ति लिखते हुए उस पाठक को ध्यान में रखा है जो फिल्म और टी.वी में होने वाले लेखन का क, ख ग, भी नहीं जानता। प्राथमिक स्तर की जानकारियों से शुरू करके यह पुस्तक हमें पटकथा लेखन और फिल्म व टी.वी की अनेक माध्यमगत विशेषताओं तक पहुँचाती हैं, और सो भी इतनी दिलचस्प और जीवन्त शैली में कि पुस्तक पढ़ने के बाद आप स्वतः ही पटकथा पर हाथ आजमाने की सोचने लगते हैं।


1
देखने-सुनने की चीज है सिनेमा



कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि जिसे लिखना आता है वह कुछ भी लिख सकता है। लेकिन यह सच नहीं है। हर विधा की, हर माध्यम की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं और उनके लिए लिख सकने के लिए अलग-अलग तरह की योग्यताएँ दरकार होती हैं। उदाहरण के लिए, पत्रकार से यह आशा की जाती है कि यथार्थ का कम-से-कम शब्दों में ज्यों-का-त्यों वर्णन करेगा और अपनी कल्पना से कोई काम नहीं लेगा। दूसरी ओर कहानीकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी कल्पना के सहारे यथार्थ को एक यादगार रंग देकर साहित्य के स्तर पर पहुंचा देगा।

साहित्य में यह सुविधा है कि शब्दों के सहारे किसी भी चीज का वर्णन किया जा सकता है और कैसी भी भावना उभारी जा सकती है। कोई पात्र क्या याद कर रहा है ? क्या सपने देख रहा है ? उसकी परिस्थिति क्या है ? मन:स्थिति क्या है ? अन्य पात्रों से उसके सम्बन्ध कैसे हैं ? उनके बारे में वह क्या सोचता है ? पात्रों की आपसी टकराहट से कब, कहाँ, क्या हो रहा है ? इस सबका शब्दों द्वारा वर्णन किया जा सकता है। लिखित साहित्य में एक अतिरिक्त सुविधा यह प्राप्त है कि अगर पाठक को कोई बात पहली बार पढकर समझ में न आए तो वह उसे फिर-फिर पढ़ सकता है।


वाचिक साहित्य, श्रव्य माध्यम


वाचिक (बोलकर सुनाए जानेवाले) साहित्य में श्रोता को यह सुविधा प्राप्त नहीं है। व्यास गद्दी पर विराजमान कथावाचक को श्रोता बार-बार नहीं टोक सकते कि हम समझ नहीं पाए, कृपया दुबारा कहें। इसलिए वाचिक साहित्य में बात को सरल शब्दों और वाक्यों में कहना होता है। यादगार और चुभती हुई बनाकर कहना होता है। मंच से गा-बोलकर सुनाए जाने वाले साहित्य में कलाकार कठिन प्रसंगों को दुहराने की या स्वयं ही ‘अर्थात्’ या ‘क्या कहा’ जैसे प्रश्न उठाकर खुलासा करने की युक्ति भी अपनाते हैं। लोक-नाटक ‘सांग’ में जब किसी हिंदी-उर्दू-गीत में कोई कठिन पंक्ति आती है तब संचालक सम्बद्ध पात्र से पूछता है कि उस पंक्ति का क्या मतलब है-यथा-‘‘अरी गुल बकावली, तू दो लम्बर पर के बोली ?’’ और फिर वह पात्र ठेठ हरियाणवी गद्य में पंक्ति विशेष का अर्थ बताता/बताती है।

वाचिक साहित्य के आधुनिक माध्यम रेडियो से नाटक प्रस्तुत करते हुए दोहराने-समझाने की ऐसी कोई गुंजाइश नहीं होती। यही नहीं, श्रोता बोलनेवाले को केवल सुनता है, देखता नहीं कि उसके चेहरे के भाव पढ़ सके। इस दृष्टि से रेडियो खालिस श्रव्य माध्यम है। इसके लिए ऐसा लेखक दरकार है जो सारा कथानक पात्रों की आपसी बातचीत और साउंड इफैक्ट यानी ध्वनि-प्रभाव के सहारे उजागर कर सके। फर्ज कीजिए कि दृश्य यह हो कि नायक-नायिका घोड़े पर सवार होकर अपना पीछा करते नायिका के घुड़सवार भाइयों से बचते हुए नाटक के गाँव की ओर बढ़ रहे हैं जो फिरोजा नदी के पार है, तो घोड़ों की टापों के ध्वनि-प्रभाव से और नायक-नायिका और भाइयों की आपसी बातचीत से पीछा किए जाने की स्थिति स्पष्ट करनी होगी और फिर नदी की कल-कल के ध्वनि-प्रभाव और नायक के संवाद से स्पष्ट करना होगा कि वह फिरोजा नदी आ गई है, जिसके पार उसका गाँव है।

साहित्य पढ़ने से ताल्लुक रखता है तो रेडियो सुनने से। उधर फिल्म और टी.वी. ऐसे माध्यम हैं जिनमें हम एक साथ देखते भी हैं, सुनते भी हैं, और पर्दे पर लिखा हुआ पढ़ भी सकते हैं। फिल्म और टी.वी. में हम घटनाओं को होता हुआ देखते हैं और पात्रों को बोलता हुआ सुनते हैं। इसीलिए इन्हें ऑडियो-विजुअल यानी दृश्य-श्रव्य माध्यम कहते हैं। यहाँ यह पूछा जा सकता है कि रंगमंच में भी तो हम घटनाओं को होता हुआ और पात्रों को बोलता हुआ सुनते हैं; तो फिर रंगमंच को ऑडियो-विजुअल क्यों नहीं कहते ? इसका जवाब यह है कि रंगमंच के लिए लिखा गया नाटक तो ‘साहित्य’ की श्रेणी में आता है क्योंकि उसमें सारी बात संवादों यानी शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत की जाती है। यह नाटक दर्शकों के सामने अभिनेताओं द्वारा खेला जाता है इसीलिए उसकी प्रस्तुति प्रदर्शन-कलाओं के अन्तर्गत आती है।


सिनेमा और नाटक


आप आपत्ति कर सकते हैं कि फिल्म और टी.वी. के लिए भी पटकथा लिखी जाती है और उसे डायरेक्टर यानी दिग्दर्शक के निर्देशन में ठीक उसी तरह खेला जाता है जैसे मंच पर। यह सवाल उठाना तीन बातों को भूल जाना है। पहली यह कि फिल्म और टी.वी. में रंगमंच की तरह नाटक दर्शकों के नहीं, एक कैमरे के सामने खेला जाता है। दूसरी यह कि जो एक बार खेल दिया जाता है वह हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि दर्शकों के प्रतिनिधि बने हुए कैमरों पर रंगमंच के दर्शक की तरह यह रोक नहीं होती कि वह अपनी ही सीट पर बैठकर तमाशा देखें, मंच पर न चढ़ आएँ। रंगशाला में आगे से आगे वाली सीट पर बैठे हुए दर्शकों और मंच पर खड़े पात्रों के बीच भी हमेशा एक दूरी बनी रहती है। सिनेमाघर में बैठे दर्शक के लिए कैमरा यह दूरी मिटा देता है। यही नहीं, कैमरा अपनी सीट पर ही बैठे दर्शक को पात्रों से चाहे जितनी दूरी पर भी, चाहे जितना ऊपर-नीचे ले जा सकता है।

कैमरा आगे-पीछे कहीं भी कितनी भी दूरी पर रखा जा सकता है। पास से दूर ले जाया जा सकता है और दूर से पास लाया जा सकता है। उसे ऊपर-नीचे ले जाया जा सकता है; अपनी धुरी पर घुमाया जा सकता है। पात्रों के सिर के ऊपर की ओर देखता हुआ रखा जा सकता है तो पात्रों के कदमों से भी नीचे से ऊपर की ओर देखता हुआ रखा जा सकता है। उसे समुद्र की गहराई में ले जाया जा सकता है और पर्वत की ऊंचाई पर भी। गोया कैमरा आजाद और बेढब करतब करके सब कुछ देख लेने को तैयार दर्शक बन जाता है। कैमरा दर्शक का नुमाइंदा बनकर किसी भी पात्र या वस्तु के नजदीक जा सकता है। वह किसी पात्र के चेहरे की छोटी-से-छोटी भाव-भंगिमा, उसके बदन का कोई छोटे-से-छोटे हिस्सा, कोई छोटी-से-छोटी वस्तु या उसका हिस्सा और किसी स्थल का छोटे-से-छोटा ब्यौरा दिखा सकता है। साथ ही वह चीजों को इतना बड़ा करके दिखा सकता है जितना कि पास आकर भी आँख से नहीं देखा जा सकता।

रंगमंच में यह सीमा भी होती है कि उसमें बहुत बड़ी-बड़ी चीजें नहीं दिखाई जा सकतीं। भव्य-से-भव्य मंच पर पानीपत की लड़ाई या एवरेस्ट विजय या सागर में टाइटैनिक जहाज का डूबना जैसे दृश्य नहीं दिखाए जा सकते। उधर कैमरा जैसे छोटी-से-छोटी चीज को दिखा सकता है, वैसे ही बड़ी-से-बड़ी चीज को भी। रंगमंच में सीमित ही सैट लग सकते हैं इसलिए सीमित ही घटना-स्थल रखे जा सकते हैं। उतना ही दिखाया जा सकता है जितना उन सैटों में हो सकता है। फिल्म और टी.वी. में ऐसी कोई सीमा नहीं है। आप चाहे जितने सैट बना सकते हैं और चाहे जितने बाहरी लोकेशनों पर जा सकते हैं। पात्रों को ले जाइए, कैमरा ले जाइए और लोकेशन पर शूट कर लाइए और फिर सबको जोड़कर दिखा दीजिए। एक तरफ से दर्शक के लिए फिल्म की खासियत ही यह बन जाती है कि उसमें घटना-स्थल बड़ी तेजी से बदलता रहता है।


बिम्ब बोलेंगे, हम नहीं


जहाँ रंगमंच के मुकाबले फिल्म में ये तमाम सुविधाएँ थीं, वहीं शुरू में उतनी ही बड़ी एक असुविधा भी थी कि चित्र के साथ ध्वनि अंकित नहीं की जा सकती थी। गोया सिनेमा गूँगा था। इस असुविधा ने एक नई भाषा को जन्म दिया जिसमें तस्वीरें ही खुद बोलती थीं। चित्रों के सहारे कहानी कह देने की यह कला कैमरे के पास-दूर, इधर-उधर जा सकने से मिलनेवाले तरह-तरह के चित्रों और इस तरह खींचे हुए चित्रों को उनमें सम्बन्ध पैदा करनेवाले क्रम से जोड़ने की युक्ति से विकसित हुई। मूकपट के दौर में दिग्दर्शकों ने इस कला में इतनी महारत हासिल कर ली कि बगैर संवाद सुने भी ज्यादातर कहानी दर्शकों की समझ में आने लगी। जहां बहुत ही जरूरी हुआ केवल वहीं संवाद को कार्ड में लिखकर फिल्मा लिया गया और पात्र के ओंठ खुलने के बाद दिखा दिया गया। बोलते बिम्बों का कमाल कुछ वर्षों पहले कमल हसन की मूक फिल्म ‘पुष्पक’ में देखा गया। उसमें तो कहीं कोई संवाद का कार्ड तक न था।

जब चित्र के साथ-साथ ध्वनि भी अंकित की जाने लगी तब मूकपट ने बोलचाल का रूप ले लिया। इससे संवादों का महत्त्व बढ़ा लेकिन इतना भी नहीं कि रंगमंच की तरह सारी बात संवादों के माध्यम से कही जाने लगे। कोई नाटक खेला और कैमरा दर्शक की तरह रखकर उसे दर्शा दिया ! मूकपट दर्शकों को बिम्बों की सशक्त भाषा का इतना आदी कर चुका था कि इस तरह से फिल्माया गया नाटक उन्हें बिलकुल बेजान लगता। इसीलिए बिम्बों का महत्त्व बना रहा और संवाद फिल्मों पर पूरी तरह हावी न हो सके। हां, नाटकों से इन नए माध्यमों ने ‘नाटकीयता की पकड़’ और ‘तीन अंकों वाला ढाँचा’ जरूर ज्यों-का-त्यों उधार ले लिया।

फिल्म और टेलीविजन में बिम्बों की भाषा और पात्रों के संवाद, दोनों का कहानी कहने में बड़ा महत्त्व है। लेकिन फिल्म और टेलीविजन में एक बड़ा अंतर यह है कि टेली-नायक में संवादों का महत्त्व लगभग उतना ही हो जाता है जितना नाटक में। इसकी वजह यह है कि टेलीविजन का पर्दा सिनेमा के पर्दे के मुकाबले में बहुत छोटा होता है उसमें कैमरा को बहुत दूर ले जाने से खास कुछ दिखता नहीं। इललिए ज्यादातर पात्रों के बोलते हुए चेहरे ही फिल्माए जाते हैं। गोया बिम्बों में ज्यादा विविधता नहीं रह पाती। दूसरी वजह यह है कि इस छोटे से पर्दे पर आते बिम्बों को दर्शक किसी बंद अँधेरे हॉल में नहीं, अपने घर के किसी रौशन कमरे में बैठे हुए देखते हैं। इसलिए उनकी आँखें पर्दे पर एकटक नहीं जमी रह पातीं। अगर पात्र चुप हो जाएँ तो ध्यान पर्दे से हट जाता है। फिर टेली-नाटकों के सीमित बजट में लोकेशनों पर जाना या बहुत ज्यादा सैट बनवाना सम्भव नहीं होता। रंगमंच की तरह उनमें भी कुछ ही सैटों में काम चलाना पड़ता है। इसलिए संवादों का महत्त्व बढ़ जाता है।


ऑडियो-विजुअल इमेजिनेशन


सिनेमा और टेलीविजन की विभिन्नता की बात बाद में विस्तार से की जा सकती है। अभी तो उनकी समानता की ओर ध्यान दिलाना है कि दोनों ही दृश्य-श्रव्ये माध्यम है। इनमें घटनाओं को होता हुआ दिखाया जाता है और पात्रों को बोलता हुआ। तो इस माध्यम के लिए लिखनेवाला व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जो दृश्य-श्रव्य कल्पना का धनी हो। दृश्य-श्रव्य कल्पना उर्फ ‘ऑडियो-विजुअल इमेजिनेशन’ का अर्थ है अपने मानस-पटल पर घटनाओं को घटता हुआ देख सकना और पात्रों को आपस में संवाद करते हुए सुन सकना। ऐसा तभी हो सकता है जब आपका दिमाग भी फिल्म कैमरे की तरह काम करता हो और घटना और संवादों का ब्यौरा दर्ज करता रहता हो। यानी आप दृश्य-श्रव्य स्मृति के धनी हों।

यह मेरा सौभाग्य था कि मेरे साहित्यिक गुरु अमृतलालजी नागर यानी आप दृश्य-श्रव्य के धनी हो, की दृश्य-श्रव्य कल्पना अद्भुत थी। जब मैं लखनऊ में उनका चेला बना तब नागरजी सिनेमा जगत से साहित्य में लौटे थे। नागरजी को पहला ड्राफ्ट बोलकर शिष्यों से लिखवाने की आदत थी। यद्यपि वह सिनेमाघर से विरक्त होकर आए थे और हम शिष्यों को पटकथा लेखन सिखाने से साफ इनकार करते थे तथापि पटकथा लेखन की शैली का उन पर इतना गहरा असर था कि उनके बोले हुए ‘बूँद और समुद्र’ को कागज पर उतारना गोया पटकथा लेखन के बुनियादी तत्वों से परिचित होना था। पात्रों, परिस्थितियों और घटनाओं का सजीव वर्णन, पात्रों की पृष्ठभूमि और मन:स्थिति के अनुसार संवाद घटनाओं के माध्यम से चरित्र निरूपण और चरित्रों के घात-प्रतिघात से पैदा हुई घटनाएँ-पटकथा के ये तमाम नुस्खे मुझे नागरजी की वृत्तांत शैली में मिले। भगवतीचरण वर्मा के उपन्यासों में भी आप पटकथा का प्रभाव देख सकते हैं। वह भी बॉलीवुड में रह चुके थे।

द्रष्टव्य है कि नागरजी और भगवती बाबू दोनों ही बेहतरीन किस्सागो थे। घटनाओं का रस लेते हुए और रस देते हुए सजीव वर्णन करनेवाली किस्सागोई दृश्य-श्रव्य कल्पना की उपज होती है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग न सिर्फ ब्यौरेवार यह बता पाते हैं कि क्या हुआ, बल्कि यह भी सुनाते जाते हैं कि किसने कब क्या कहा ? कौन कैसा था ? क्या पहने हुए था ? आदि-आदि। ऐसे लोग दृश्य-श्रव्य स्मृति के धनी होते हैं। मेरी बहन इंटर की प्राइवेट परीक्षा देने के लिए मुरादनगर में एक हफ्ता बिताकर जब लौटी तब उसने महीनों तक वहाँ के किस्से सुना-सुनाकर हमारा मनोरंजन किया। ठीक तीस साल बाद जब उसकी छोटी बेटी दो साल अमेरिका में रहकर लौटी तब उसके अमेरिका प्रवास की सारी कहानी 20-25 मिनट में खत्म हो गई। मेरी भांजी मास कॉम की छात्रा होने के नाते पटकथा लेखन की जानकारी रखती है पर उसमें दृश्य-श्रव्य स्मृति का अभाव है। उधर मेरी बहन भरपूर दृश्य-श्रव्य-स्मृति और कल्पना की धनी है।


किस्सागो, बनिए


अफसोस, पेशेवर किस्सागो अब नहीं रहे ! वरना मैं आपसे कहता कि दृश्य-श्रव्य कल्पना का कमाल देखना हो तो उनकी किस्सागोई का आनंद लेने जाए। वे न सिर्फ यह बताते थे कि किस क्रम से क्या-क्या कहा। बल्किन नकलें उतार-उतार कर यह भी थे किसने किस अंदाज में क्या-क्या कहा। बल्कि वह पात्रों की मन:स्थिति और प्रतिक्रियाओं का भी आभास देते जाते थे-कुछ अपने शब्दों से और कुछ अपने अभिनय से। इस तरह से सारी घटना को उसकी पूरी नाटकीयता के साथ श्रोता के लिए उजागर कर देते। अगर कहीं कोई पेशेवर किस्सागो अब भी हो तो उसे जरूर सुनें। नहीं तो मेरी बहन सरीखे जो गैर-पेशेवर किस्सागो आपकी जानकारी में हों उनकी बातों का रस लें। लोकमंच की कुछ विधाओं में और धार्मिक प्रवचनों में आज भी जबरदस्त किस्सागोई की बानगी आपको मिल सकती है।

हाल में मैंने व्यास गद्दी पर बैठे एक कथावाचक को महाभारत का एक प्रसंग इस तरह प्रस्तुत करते हुए सुना-‘‘वहां पहुंचकर अर्जुन क्या देखता है कि भगवान श्रीकृष्ण शयन कर रहे हैं और दुर्योधन सिरहाने खड़ा है। दुर्योधन को वहां देखकर अर्जुन झटका खा जाता है कि अरे, ये तो मुझसे भी पहले पहुँच गए। खैर वह जाकर श्रीकृष्ण भगवान के पैताने बैठकर प्रभु के श्रीचरण दबाने लगता है। थोड़ी देर में प्रभु की आँख खुलती हैं। उन्हें पैताने बैठा अर्जुन पहले नजर आता है। प्रभु पूछते हैं बताओं, किस कारण आए ? अर्जुन हाथ जोड़कर निवेदन करता है कि मैं युद्ध में आपकी सहायता लेने आया हूँ। तब दुर्योधन बात को बीच में काटकर कहता है कि सहायता के लिए इससे पहले मैं आया हूँ, पहले मेरी बात सुनी जाए। प्रभु उठ बैठते है और मुसकराकर कहते हैं कि आए तुम जरूर पहले होगे मगर पैताने बैठा अर्जुन मुझे पहले नजर आया। दुर्योधन आपत्ति करता है कि यह अन्याय वाली बात होगी। प्रभु फिर मुसकराते हैं और कहते हैं कि देखो, मैं पूरा न्याय करूँगा-दोनों को सहायता देकर। तुममे से एक व्यक्ति मेरी सारी सेनाएँ ले लो और दूसरा सिर्फ मुझे। श्रीकृष्ण भगवान पहले अर्जुन को पूछतें हैं, तुम्हें क्या चाहिए ? दुर्योधन का चेहरा चिंता से खिंच जाता है कि अब यह सारी सेना माँग लेगा। लेकिन श्रीकृष्ण भक्त अर्जुन कहता है मुझे आप चाहिएं प्रभु, आपकी सेनाएँ नहीं। और मूर्ख दुर्योधन इसे अर्जुन की मूर्खता समझकर खुश होता है।’’
अगले परिच्छेद में आप देखेंगे कि कथावाचक की यह शैली ही पटकथा लेखन की शैली है।


2
पटकथा क्या बला है ?



तो मैं कह रहा था कि कथावाचक और किस्सागो अक्सर पटकथा की शैली अपनाते हैं। यह पटकथा की शैली क्या है और कहानी कहने के आम ढंग से वह किस तरह अलग हैं, यह जानने के लिए कोई पटकथा पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। फिल्म देखकर आए हुए किसी भी व्यक्ति से फिल्म की कहानी सुन लीजिए, बात साफ हो जाएगी।

एक बार मैने ‘दिल वाले दुल्हनियाँ ले जाएँगे’ देखकर आई अपनी भतीजी से उस फिल्म की कहानी पूछी तो उसने कुछ इस तरह कहा-काजोल लंदन में दुकान खोले हुए कठोर अमरीशपुरी और सदय फरीदा जलाल की बेटी होती है। हालाँकि काजोल लंदन में पली-बढ़ी होती है। अमरीशपुरी उस पर अपने भारतीय गाँव से मिले हुए संस्कार थोपता रहता है। काजोल बेचारी उससे बहुत डरती है। अमरीशपुरी उसका ब्याह बचपन में ही भारत में अपने दोस्त के बेटे से तय कर चुका होता है। काजोल को यह बात बेतुकी लगती है, पर वह बाप से कुछ नहीं कह पाती। शाहरूख खान मस्तमौला विधुर अनुपम खेर का बेटा होता है। बाप-बेटा दोनों दोस्त-जैसे होते हैं। एक रात शाहरूख खान जरूरी दवा खरीदने के बहाने अमरीशपुरी की बंद दुकान खुलवा देता है और बीयर ले जाता है। इससे अमरीशपुरी को शाहरूख खान बहुत घटिया लड़का लगता है। उधर फरीदा जलाल अपने पति से चिरौरी करके बेटी को भारत लौटने से पहले सहेलियों के साथ यूरोप यात्रा पर जाने की इजाजत देती है। वहीं उसकी मुलाकात शाहरूख खान से होती है। तकरार के बाद दोनों में प्यार हो जाता है। लंदन लौटने पर अमरीशपुरी को इस बात का पता चलता है और वह काजोल को लेकर पंजाब चल देता है, सादी करवाने।’’

आप गौर करेगे कि यह काहनी कहने का सामान्य ढंग नहीं है। आमतौर से तो कहानियाँ ‘एक था राजा’ वाली शैली में लिखी जाती हैं। उसे कहने या लिखनेवाला एक ऐसी घटना बयान कर रहा होता जो अतीत में घट चुकी है। इसलिए वह भूतकालीन क्रियापदों का उपयोग करता है-‘‘एक राजा था जो अपनी रानी से बहुत प्यार करता था। लेकिन उसे इस बात का बहुत दुख था कि रानी को कोई संतान न थी।’’

इस हिसाब से तो मेरी भतीजी को कहानी कुछ इस तरह सुनानी चाहिए थी-‘लंदन नगर का भारतीय दुकानदार अमरीशपुरी रूढ़िवादी विचारो का था इसलिए अपनी बेटी काजोल पर कड़ा अंकुश रखता था। काजोल जितना ही उससे डरती थी उतना ही अपनी दयालु माँ फरीदा जलाल से प्यार करती थी। अमरीश चाहता था कि उसकी बेटी भारत में उसके दोस्त के बेटे से शादी करे। मगर काजोल उस शाहरूख खान को दिल दे बैठी थी जिसने उसके पिता को एक दिन नाराज कर दिया था।’’ मगर मेरी भतीजी ने कहानी इस तरह नहीं सुनाई। और वह कोई अपवाद नहीं है। आप किसी से भी किसी फिल्म की कहानी, सुनें, वह मेरी भतीजी वाली शैली में सुनाएगा। कोई यह नहीं कहेगा कि ‘हीरो को गुस्सा आ गया’ या ‘हीरोइन ने जहर पी लिया’ आपको उससे यही सुनने को मिलेगा कि ‘हीरो गुस्सा हो जाता है’, ‘हीरोइन जहर पी लेती है।’ ऐसा इसलिए होता है कि दर्शक फिल्म में घटनाओं को होता हुआ और पात्रों को बोलता हुआ सुनता है। फिल्म में अतीत सतत नहीं, वर्तमान दर्शाया जाता है। इसलिए फिल्म की कहानी सुनाते हुए हम अनिश्चित वर्तमान काल के क्रियापदों का प्रयोग करने लगते हैं। एक राजा था की जगह हम कहते हैं, ‘एक राजा होता है।’

role of indian press

प्रेस आज जितना स्वतंत्र और मुखर दिखता है, आजादी की जंग में यह उतनी ही बंदिशों और पाबंदियों से बँधा हुआ था। न तो उसमें मनोरंजन का पुट था और न ही ये किसी की कमाई का जरिया ही। ये अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ आजादी के जाँबाजों का एक हथियार और माध्यम थे, जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखता था। आजादी की लड़ाई का कोई भी ऐसा योद्धा नहीं था, जिसने अखबारों के जरिए अपनी बात कहने का प्रयास न किया हो। गाँधीजी ने भी ‘हरिजन’, ‘यंग-इंडिया’ के नाम से अखबारों का प्रकाशन किया था तो मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 'अल-हिलाल' पत्र का प्रकाशन। ऐसे और कितने ही उदाहरण हैं, जो यह साबित करते हैं कि पत्र-पत्रिकाओं की आजादी की लड़ाई में महती भूमिका थी।

यह वह दौर था, जब लोगों के पास संवाद का कोई साधन नहीं था। उस पर भी अँग्रेजों के अत्याचारों के शिकार असहाय लोग चुपचाप सारे अत्याचर सहते थे। न तो कोई उनकी सुनने वाला था और न उनके दु:खों को हरने वाला। वो कहते भी तो किससे और कैसे? हर कोई तो उसी प्रताड़ना को झेल रहे थे। ऐसे में पत्र-पत्रिकाओं की शुरुआत ने लोगों को हिम्मत दी, उन्हें ढाँढस बँधाया। यही कारण था कि क्रांतिकारियों के एक-एक लेख जनता में नई स्फूर्ति और देशभक्ति का संचार करते थे। भारतेंदु का नाटक ‘भारत-दुर्दशा’ जब प्रकाशित हुआ था तो लोगों को यह अनुभव हुआ था कि भारत के लोग कैसे दौर से गुजर रहे हैं और अँग्रेजों की मंशा क्या है।


अखबार का इतिहास और योगदान: यूँ तो ब्रिटिश शासन के एक पूर्व अधिकारी के द्वारा अखबारों की शुरुआत मानी जाती है, लेकिन उसका स्वरूप अखबारों की तरह नहीं था। वह केवल एक पन्ने का सूचनात्मक पर्चा था। पूर्णरूपेण अखबार बंगाल से 'बंगाल-गजट' के नाम से वायसराय हिक्की द्वारा निकाला गया था। आरंभ में अँग्रेजों ने अपने फायदे के लिए अखबारों का इस्तेमाल किया, चूँकि सारे अखबार अँग्रेजी में ही निकल रहे थे, इसलिए बहुसंख्यक लोगों तक खबरें और सूचनाएँ पहुँच नहीं पाती थीं। जो खबरें बाहर निकलकर आती थीं। उन्हें काफी तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता था, ताकि अँग्रेजी सरकार के अत्याचारों की खबरें दबी रह जाएँ। अँग्रेज सिपाही किसी भी क्षेत्र में घुसकर मनमाना व्यवहार करते थे। लूट, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएँ आम होती थीं। वो जिस भी क्षेत्र से गुजरते, वहाँ अपना आतंक फैलाते रहते थे। उनके खिलाफ न तो मुकदमे होते और न ही उन्हें कोई दंड ही दिया जाता था। इन नारकीय परिस्थितियों को झेलते हुए भी लोग खामोश थे। इस दौरान भारत में ‘द हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘नेशनल हेराल्ड', 'पायनियर', 'मुंबई-मिरर' जैसे अखबार अँग्रेजी में निकलते थे, जिसमें उन अत्याचारों का दूर-दूर तक उल्लेख नहीं रहता था। इन अँग्रेजी पत्रों के अतिरिक्त बंगला, उर्दू आदि में पत्रों का प्रकाशन तो होता रहा, लेकिन उसका दायरा सीमित था। उसे कोई बंगाली पढ़ने वाला या उर्दू जानने वाला ही समझ सकता था। ऐसे में पहली बार 30 मई, 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ।

यह पत्र साप्ताहिक था। ‘उदंत-मार्तंड' की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग को भी एक नई दिशा मिली। अब लोगों तक देश के कोने-कोन में घट रही घटनाओं की जानकारी पहुँचने लगी। लेकिन कुछ ही समय बाद इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसंबर, 1827 को पत्र बंद करना पड़ा। 10 मई, 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार 'बंगदूत' का प्रकाशन हुआ। यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम। इसके बाद जुलाई, 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन किया। उस दौरान जिन भी अखबारों ने अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई भी खबर या आलेख छपा, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अखबारों को प्रतिबंधित कर दिया जाता था। उसकी प्रतियाँ जलवाई जाती थीं, उसके प्रकाशकों, संपादकों, लेखकों को दंड दिया जाता था। उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता था, ताकि वो दुबारा फिर उठने की हिम्मत न जुटा पाएँ।


आजादी की लहर जिस तरह पूरे देश में फैल रही थी, अखबार भी अत्याचारों को सहकर और मुखर हो रहे थे। यही वजह थी कि बंगाल विभाजन के उपरांत हिन्दी पत्रों की आवाज और बुलंद हो गई। लोकमान्य तिलक ने 'केसरी' का संपादन किया और लाला लाजपत राय ने पंजाब से 'वंदे मातरम' पत्र निकाला। इन पत्रों ने युवाओं को आजादी की लड़ाई में अधिक-से-अधिक सहयोग देने का आह्वान किया। इन पत्रों ने आजादी पाने का एक जज्बा पैदा कर दिया। ‘केसरी’ को नागपुर से माधवराव सप्रे ने निकाला, लेकिन तिलक के उत्तेजक लेखों के कारण इस पत्र पर पाबंदी लगा दी गई।

उत्तर भारत में आजादी की जंग में जान फूँकने के लिए गणेश शंकर विद्यार्थी ने 1913 में कानपुर से साप्ताहिक पत्र 'प्रताप' का प्रकाशन आरंभ किया। इसमें देश के हर हिस्से में हो रहे अत्याचारों के बारे में जानकारियाँ प्रकाशित होती थीं। इससे लोगों में आक्रोश भड़कने लगा था और वे ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए और भी उत्साहित हो उठे थे। इसकी आक्रामकता को देखते हुए अँग्रेज प्रशासन ने इसके लेखकों, संपादकों को तरह-तरह की प्रताड़नाएँ दीं, लेकिन यह पत्र अपने लक्ष्य पर डटा रहा।

इसी प्रकार बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र के क्षेत्रों से पत्रों का प्रकाशन होता रहा। उन पत्रों ने लोगों में स्वतंत्रता को पाने की ललक और जागरूकता फैलाने का प्रयास किया। अगर यह कहा जाए कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ये अखबार किसी हथियार से कमतर नहीं थे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

pti 3

pti
प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (P T I)-डॉ. दादा भाई नौरोजी रोड बम्बई |यह भारत का सबसे बड़ा अभिकरण है |सन १९४९ में भारत के प्रमुख समाचार पत्रों ने मिलकर असोसिएशन प्रेस ऑफ़ इंडिया को खरीद लिया था ,क्योकि विदेशी शासन काल से कम कर रही ए. पी. आई न्यूज़ एजेंसी ब्रिटिश समाचार अभिकरण रयूटर (reuter ) की भारतीय शाखा मात्र थी|यह स्थिति स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो समाप्त हो ही जानी थी और भारतीय समाचार पत्र भी भी इसे विदेशी पत्र के अभाव से मुक्त करना चाहते थे|यह समाचार एजेंसी एशिया महाद्वीप के समाचार अभिकरणों में पहला स्थान रखती है|देश भर में इसके १२० कार्यालय कम कर रहे है |रायटर युनाईटेड प्रेस इंटरनेशनल (UPI)और आजांस फ़्रांस प्रेस (AFP) के साथ भी पीटीआई की खबरों का लेन देन का समबन्ध है| पी टी आई की हिंदी समाचार सेवा भी चलती है जिसे "भाषा" कहते है|यह समाचार अभिकरण की फीचर सर्विस भी बड़ी लोकप्रिय है|टेली प्रिन्टर सर्विस के अलावा यह अजेंसी कम्प्यूटर संगणक की सहायता से भी समाचार देती है|

uni 2

UNITED NEWS OF INDIA (UNI) was launched in March, 1961, and has grown into one of the largest news agencies in Asia. During these years, we have acquired an enviable reputation for fast and accurate coverage of all major news events in India and abroad in all areas -- politics, economics, business, sports, entertainment, stock markets and so on. Our service also provides subscribers with a rich choice in features, interviews and human interest stories.
Today, we serve more than 1000 subscribers in more than 100 locations in India and abroad. They include newspapers, radio and television networks, web sites , government offices and private and public sector corporations.
Our communication network stretches over 90,000 Km in India and the Gulf states.
We have bureax in all the major cities and towns of India, including all the state capitals. We have more than 325 staff journalists around the country and more than 250 stringers, covering news events from remote corners.
We also have Correspondents in major world cities such as Washington, London, Dubai, Colombo, Kathmandu, Islamabad, Dhaka, Singapore, Sydney and Vancouver, bringing to our subscribers stories of interest to Indian readers..
UNI has collaboration agreements with several foreign news agencies, including Reuters and DPA , whose stories we distribute to media organisations in India. We also have news exchange agreements with Xinhua of China, UNB of Bangladesh, Gulf News Agency of Bahrain, WAM of the United Arab Emirates, KUNA of Kuwait News Agency, ONA of Oman and QNA of Qatar.
UNI is currently a major modernisation programme as part of which most of our major bureax are already linked through a computerised network. We are continuously expanding and extending this network. We are also in the process of implementing a project to deliver news, pictures and graphics to our subscribers through the Internet, using NewsML, the international standard for news transmission.
UNI's wire service is available in three languages -- English, Hindi and Urdu. We launched UNIVARTA in Hindi in 1982 and pioneered a wire service in Urdu in 1992. In 1981, we became the first Indian news agency to serve subscribers abroad and earn foreign exchange for the country by selling its wire service directly to newspapers in the gulf States and in Singapore through satellite channels.
UNI has always adopted an innovative approach. We were the first news agency in the country to launch a Financial Service, a Stock Exchange service and a National Photoservice.We also have other services like UNIDARSHAN (Television News Clips and Features), UNISCAN (News Display on Television sets for Hotels, top Government officials and corporate clients), UNIDirect (for top executives in the government, corporate and other sectors) and UNI GRAPHICS (Computer-designed Graphics in ready-to-use form).

taas 2

In existence since 1904, the ITAR-TASS News Agency is one of the world's largest international information agencies. The successor to the Soviet TASS news agency, it was re-named in 1992, when Russia proclaimed its sovereignty following the collapse of the USSR. It has retained its status of being the state central information agency.

Previously available to only a select few, the agency's resources are now available to anyone who is interested, both within and outside Russia; the mass media, academic institutions, organizations and private individuals.

To better serve a rapidly growing number of subscribers, the agency has developed a new set priorities designed to streamline and improve key aspects of its operation: how topics are selected, expansion of news coverage, and timely delivery of news on the wire. As the very nature of news production continues to evolve, the agency will continually make use of the very latest available technologies in order to make real-time news distribution faster and more efficient.

ITAR-TASS relies on a widespread net of correspondents. Currently, It has more than 130 bureaus and offices in Russia and abroad. ITAR-TASS also cooperates with more than 80 foreign news agencies. ITAR-TASS' editorial and other desks process information from correspondents, check and analyze facts, and translate into five foreign languages.

ITAR-TASS has accumulated a rich body of experience throughout the course of its 100-year history. The agency's widespread network of correspondents, its modern means of distributing and storing information, and a well-oiled mechanism of cooperation between its editorial, reference and reporter departments, all enable ITAR-TASS to provide quick and full coverage of all kinds of events shaping Russia and the world.

ITAR-TASS offers today 45 round-the-clock news cycles in six languages and more than 40 information bulletins.

The agency also operates a photo service, the largest of its kind in Russia. This unique service offers pictures of the latest breaking developments, available for prompt transmission in digital form. Clients also have access to an extremely rich photo archive dating back to the beginning of the 20th century.

Also available is the INFO-TASS electronic data bank, which contains all agency materials produced since 1987, multimedia products, and unique reference books on Russia and other CIS member states, which are regularly updated. On a daily basis, ITAR-TASS produces and transmits to its subscribers around the world materials that can cover 300 newspaper pages.

uni

यूएनआई) (अमरीका समाचार भारत was launched in March, 1961, and has grown into one of the largest news agencies in Asia. 1961, में शुरू, मार्च और एशिया में बड़े एजेंसियों में सबसे बड़ी खबर की. During these years, we have acquired an enviable reputation for fast and accurate coverage of all major news events in India and abroad in all areas -- politics, economics, business, sports, entertainment, stock markets and so on. समाचार सभी प्रमुख घटनाओं में इतने पर शेयर बाजार और,, व्यापार, खेल अर्थशास्त्र क्षेत्रों - राजनीति, सभी में, मनोरंजन विदेश में भारत और के दौरान इन वर्षों में, हम अधिग्रहण के लिए एक गहरी प्रतिष्ठा तेज और सटीक कवरेज. Our service also provides subscribers with a rich choice in features, interviews and human interest stories. हमारी सेवा भी कहानियों ब्याज मानव, साक्षात्कार और सुविधाएँ प्रदान करता है ग्राहकों के साथ एक अमीर पसंद में.
Today, we serve more than 1000 subscribers in more than 100 locations in India and abroad. आज, हम विदेशों में भारत का स्थान और 100 में और अधिक ग्राहकों की सेवा से कम 1000 से अधिक. They include newspapers, radio and television networks, web sites , government offices and private and public sector corporations. वे निगमों में शामिल समाचार पत्रों, रेडियो और टेलीविजन नेटवर्क, वेब साइटों, सरकारी कार्यालयों और निजी और सार्वजनिक क्षेत्र.
Our communication network stretches over 90,000 Km in India and the Gulf states. हमारे संचार नेटवर्क राज्यों खाड़ी 90000 किलोमीटर पर फैला में भारत और.
We have bureax in all the major cities and towns of India, including all the state capitals. हम राज्य की राजधानियों bureax है में सभी प्रमुख शहरों और कस्बों के सभी सहित भारत,. We have more than 325 staff journalists around the country and more than 250 stringers, covering news events from remote corners. हम कोनों से अधिक है चारों ओर पत्रकारों 325 कर्मचारियों को देश से अधिक और 250 दूरदराज से समाचार घटनाओं को कवर stringers,.
We also have Correspondents in major world cities such as Washington, London, Dubai, Colombo, Kathmandu, Islamabad, Dhaka, Singapore, Sydney and Vancouver, bringing to our subscribers stories of interest to Indian readers.. हम भी वैंकूवर और सिडनी, सिंगापुर, ढाका, है संवाददाताओं में प्रमुख शहरों जैसे दुनिया वाशिंगटन, लंदन, दुबई, कोलंबो, काठमांडू, इस्लामाबाद, पाठकों के ग्राहकों को लाने की कहानियाँ हमारे लिए भारतीय हित के लिए ..
UNI has collaboration agreements with several foreign news agencies, including Reuters and DPA , whose stories we distribute to media organisations in India. विश्वविद्यालय भारत में मीडिया संगठनों है कथाएँ हम वितरित करने के लिए, जिनके सहयोग समझौते के साथ कई विदेशी समाचार डीपीए और सहित रायटर, एजेंसियों. We also have news exchange agreements with Xinhua of China, UNB of Bangladesh, Gulf News Agency of Bahrain, WAM of the United Arab Emirates, KUNA of Kuwait News Agency, ONA of Oman and QNA of Qatar. हम भी कतर और ओमान QNA की मुद्रा खबर है समझौतों के ona साथ सिन्हुआ समाचार एजेंसी, कुवैत की चीन की खाड़ी, UNB की बांग्लादेश समाचार एजेंसी कुना से बहरीन,, अमीरात WAM के संयुक्त अरब.
UNI is currently a major modernisation programme as part of which most of our major bureax are already linked through a computerised network. विश्वविद्यालय नेटवर्क है प्रमुख आधुनिकीकरण कार्यक्रम के रूप में एक वर्तमान का हिस्सा है जो सबसे ज्यादा हमारे प्रमुख के कम्प्यूटरीकृत bureax एक के माध्यम से पहले से ही जुड़ा हुआ है. We are continuously expanding and extending this network. हम कर रहे हैं और लगातार विस्तार नेटवर्क का विस्तार इस. We are also in the process of implementing a project to deliver news, pictures and graphics to our subscribers through the Internet, using NewsML, the international standard for news transmission. हम प्रसारण खबर के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक के ग्राफिक्स रहे हैं और भी तस्वीरें परियोजना देने के लिए खबर है, एक के कार्यान्वयन की प्रक्रिया में करने के लिए, हमारे ग्राहकों, का उपयोग NewsML इंटरनेट के माध्यम से.
UNI's wire service is available in three languages -- English, Hindi and Urdu. तीन भाषाओं - उर्दू और हिन्दी, अंग्रेजी उपलब्ध यूएनआई तार है सेवा है. We launched UNIVARTA in Hindi in 1982 and pioneered a wire service in Urdu in 1992. हम शुरू UNIVARTA 1982 में हिन्दी में और एक तार सेवा का बीड़ा उठाया उर्दू 1992 में. In 1981, we became the first Indian news agency to serve subscribers abroad and earn foreign exchange for the country by selling its wire service directly to newspapers in the gulf States and in Singapore through satellite channels. 1981 में, हम एजेंसी बन गया पहला भारतीय समाचार करने के लिए विदेश में सेवा करते हैं ग्राहकों और चैनलों के माध्यम से उपग्रह सिंगापुर और अमेरिका में विदेशी मुद्रा कमाने के लिए तार इसकी अखबारों सेवा सीधे खाई में बेचने के देश से.
UNI has always adopted an innovative approach. यूएनआई दृष्टिकोण है अभिनव हमेशा अपनाया एक. We were the first news agency in the country to launch a Financial Service , a Stock Exchange service and a National Photo service.We also have other services like UNIDARSHAN (Television News Clips and Features), UNISCAN (News Display on Television sets for Hotels, top Government officials and corporate clients), UNI Direct हम देश समाचार एजेंसी में पहले किए गए के लिए एक लांच वित्तीय सेवा , एक स्टॉक एक्सचेंज सेवा और एक राष्ट्रीय फोटो service.We भी UNIDARSHAN सेवाओं जैसे अन्य है (टेलीविजन समाचार क्लिप्स और सुविधाएँ) पर सेट टेलीविजन के लिए होटलों के प्रदर्शन (समाचार UNISCAN, शीर्ष सरकारी अधिकारियों और कॉर्पोरेट ग्राहकों), विश्वविद्यालय प्रत्यक्ष (for top executives in the government, corporate and other sectors) and UNI GRAPHICS (Computer-designed Graphics in ready-to-use form). (सेक्टर और अन्य कंपनियों के लिए आला अधिकारियों में सरकार) और यूएनआई ग्राफिक्स (कंप्यूटर फार्म का उपयोग करें डिजाइन ग्राफिक्स में तैयार करने के लिए).

pti 2

Press Trust of India (PTI) is India’s premier news agency, having a reach as vast as the Indian Railways. It employs more than 400 journalists and 500 stringers to cover almost every district and small town in India. Collectively, they put out more than 2,000 stories and 200 photographs a day to feed the expansive appetite of the diverse subscribers, who include the mainstream media, the specialised presses, research groups, companies, and government and non-governmental organisations.

PTI correspondents are also based in leading capitals and important business and administrative centres around the world. It also has exchange arrangements with several foreign news agencies to magnify its global news footprint.

Currently, PTI commands 90 per cent of new agency market share in India.

PTI was registered in 1947 and started functioning in 1949. Today, after 60 years of its service, PTI can well and truly take pride in the legacy of its work, and in its contribution towards the building of a free and fair Press in India. On its golden jubilee in 1999, President K R Narayanan said: “We got independence in August 1947. But independence in news and information we got only with the establishment of PTI in 1949. That is the significance of PTI…”

Administrative & Managerial Composition
PTI is run by a Board of Directors with the Chairmanship going by rotation at the Annual General Meeting. The day-to-day administration and management of PTI is headed by the Chief Executive Officer (who is also the Editor-in-Chief).

pti

प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (भाषा) भारत की प्रमुख समाचार एजेंसी है, भारतीय रेलवे के रूप में विशाल के रूप में एक पहुंच रही है. It employs more than 400 journalists and 500 stringers to cover almost every district and small town in India. यह 400 से अधिक पत्रकारों और 500 stringers को रोजगार के लिए भारत में लगभग हर जिले और छोटे शहर को कवर किया. Collectively, they put out more than 2,000 stories and 200 photographs a day to feed the expansive appetite of the diverse subscribers, who include the mainstream media, the specialised presses, research groups, companies, and government and non-governmental organisations. सामूहिक, वे 2,000 कहानियों और 200 एक दिन तस्वीरों से ज्यादा बाहर डाल करने के लिए विविध सदस्य, जो मुख्यधारा के मीडिया, विशेष प्रेस, अनुसंधान समूहों, कंपनियों और सरकारी और गैर सरकारी संगठनों में शामिल प्रशस्त भूख फ़ीड.

PTI correspondents are also based in leading capitals and important business and administrative centres around the world. पीटीआई संवाददाताओं भी प्रमुख राजधानियों और महत्वपूर्ण व्यापार और दुनिया भर के प्रशासनिक केंद्र में आधारित हैं. It also has exchange arrangements with several foreign news agencies to magnify its global news footprint. यह भी कई विदेशी समाचार एजेंसियों के साथ विनिमय की व्यवस्था है अपने वैश्विक पदचिह्न खबर बढ़ाना.

Currently, PTI commands 90 per cent of new agency market share in India. वर्तमान में, पीटीआई नई एजेंसी शेयर बाजार के भारत में 90 प्रतिशत हासिल है.

PTI was registered in 1947 and started functioning in 1949. पीटीआई 1947 में पंजीकृत किया गया और 1949 में कार्य शुरू कर दिया. Today, after 60 years of its service, PTI can well and truly take pride in the legacy of its work, and in its contribution towards the building of a free and fair Press in India. आज, अपने सेवा के 60 वर्षों के बाद, पीटीआई अच्छी तरह से और सही मायने में अपने काम की विरासत पर गर्व कर सकते हैं, और भारत में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस के निर्माण के प्रति अपने योगदान में. On its golden jubilee in 1999, President KR Narayanan said: “We got independence in August 1947. इसके 1999 में स्वर्ण जयंती को राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने कहा: "हम अगस्त 1947 में आजादी मिली. But independence in news and information we got only with the establishment of PTI in 1949. लेकिन खबर में स्वतंत्रता और सूचना के हम 1949 में भाषा की स्थापना के साथ ही मिला है. That is the significance of PTI…” कि पीटीआई का महत्व है ... "

Administrative & Managerial Composition प्रशासनिक और प्रबंधकीय संरचना
PTI is run by a Board of Directors with the Chairmanship going by rotation at the Annual General Meeting. पीटीआई अध्यक्षता वार्षिक जनरल में रोटेशन से जा रही बैठक से निदेशकों की एक बोर्ड द्वारा संचालित है. The day-to-day administration and management of PTI is headed by the Chief Executive Officer (who is also the Editor-in-Chief). दिन को दिन और पीटीआई के प्रशासन के प्रबंधन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के नेतृत्व में है (जो भी है संपादक इन चीफ में)

taas

प्रधान-TASS के बारे में
PRIME-TASS is Russia's leading business news agency. प्रधान-TASS रूस के प्रमुख बिजनेस समाचार एजेंसी है. Privately owned, the agency has no political affiliations, and is known for its objective coverage worldwide. निजी स्वामित्व, एजेंसी नहीं राजनीतिक जुड़ाव है, और अपने उद्देश्य दुनिया भर में कवरेज के लिए जाना जाता है. With about 250 permanent staff and scores of stringers across Russia, the Commonwealth of Independent States and the world, we provide quality live coverage of major economic and political news in Russia and the 14 former Soviet states. के बारे में 250 स्थायी कर्मचारियों और रूस भर stringers के स्कोर के साथ, स्वतंत्र राज्यों और दुनिया के राष्ट्रमंडल, हम रूस में प्रमुख आर्थिक और राजनीतिक समाचार और 14 पूर्व सोवियत राज्यों की गुणवत्ता रहते कवरेज प्रदान करते हैं. We are particularly strong in commodity, energy and financial markets coverage. हम विशेष रूप से वस्तु, ऊर्जा और वित्तीय बाजारों कवरेज में मजबूत हैं. We also offer excellent coverage of Russian and CIS banking and corporate news. हम भी रूसी और सीआईएस बैंकिंग और कॉर्पोरेट समाचार के उत्कृष्ट कवरेज प्रदान करते हैं. The Russian- language service puts out over 400 news and analysis pieces daily. रूसी भाषा सेवा 400 समाचार और विश्लेषण दैनिक टुकड़े पर बाहर डालता है.

PRIME-TASS was created in 1996 with Russia's state news agency Itar-Tass taking a 35% stake. प्रधान-TASS 1996 में रूस की राज्य समाचार एजेंसी ITAR-Tass एक 35% हिस्सेदारी लेने के साथ बनाया गया था. While the agency distributes exclusive information from the Russian government, the Central Bank and the parliament, our editorial policy is completely independent. जबकि एजेंसी रूसी सरकार की ओर से विशेष जानकारी वितरित करता है, सेंट्रल बैंक और संसद, हमारी संपादकीय नीति पूरी तरह से स्वतंत्र है. Our opinion pieces and analyses are based on attributed comments by leading analysts. हमारी राय टुकड़े और विश्लेषण प्रमुख विश्लेषकों ने जिम्मेदार ठहराया टिप्पणियों पर आधारित हैं. While we do cover major political news, economic and market news is our priority. जब तक हम प्रमुख राजनीतिक समाचार, कवर करते हैं आर्थिक और बाजार खबर हमारी प्राथमिकता है. Among our subscribers are foreign embassies and trade missions, major domestic and foreign investment banks, commodity traders and thousands of Russian and foreign companies. हमारे ग्राहकों में विदेशी दूतावासों और व्यापार मिशन, प्रमुख घरेलू और विदेशी निवेश बैंकों, जिंस व्यापारियों और रूसी और विदेशी कंपनियों के हजारों रहे हैं. We are one of the most frequently quoted Russian business newswires worldwide. हम एक सबसे अक्सर उद्धृत रूसी व्यापार दुनिया भर में newswires से एक हैं. All major international news agencies and business publications are among our subscribers. सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों और व्यवसाय प्रकाशनों हमारे ग्राहकों में से हैं. In June 2003 PRIME-TASS announced a content exchange and sales partnership with Dow Jones Newswires, the world's leading provider of real-time business and financial news. जून 2003 में प्रधानमंत्री-TASS एक सामग्री और डो जोंस Newswires, दुनिया का वास्तविक समय व्यापार और वित्तीय समाचार के अग्रणी प्रदाता के साथ बिक्री भागीदारी विनिमय की घोषणा की. Under the terms of the agreement, the partners distribute, market and sell the other's products in their respective markets. समझौते की शर्तों के तहत, भागीदारों वितरित, बाजार और उनके संबंधित बाजार में दूसरे के उत्पाद बेचते हैं. In February 2004 PRIME-TASS together with Dow Jones Newswires launched DJ Forex, the first Russian-language news service to focus on the foreign exchange markets. फरवरी 2004 में प्रधान, डो जोंस Newswires के साथ मिलकर TASS डीजे विदेशी मुद्रा, पहले रूसी भाषा के समाचार को विदेशी मुद्रा बाजारों पर ध्यान केंद्रित सेवा का शुभारंभ किया. The service is targeted at Russians actively trading in currencies, including foreign exchange traders, customers of bank foreign exchange trading portals and corporate treasury departments. सेवा रूसियों को सक्रिय रूप से व्यापार में मुद्राओं में लक्षित है विदेशी मुद्रा व्यापारियों, बैंक विदेशी मुद्रा व्यापार और कॉर्पोरेट पोर्टल्स राजकोष विभाग के ग्राहकों को भी शामिल है.

PRIME-TASS' English language service publishes over 100 news and analysis pieces daily. प्रधान 'TASS अंग्रेजी भाषा सेवा के 100 समाचार और विश्लेषण के टुकड़े दैनिक पर प्रकाशित करता है. News is produced by Western-educated Russian translators, reporters and editors with years of experience in Western news organizations. समाचार पश्चिमी शिक्षित रूसी अनुवादक पत्रकारों और संपादकों ने पश्चिमी समाचार संगठनों में अनुभव के वर्षों के साथ उत्पादन किया है. Native speakers professionally edit the stories. देशी वक्ताओं पेशेवर कहानियों को संपादित करें. The PRIME-TASS English-language service does not translate but rewrites and adapts Russian stories for our clients and produces dozens of original stories and analytical pieces daily. प्रधान-TASS अंग्रेजी भाषा अनुवाद सेवा नहीं बल्कि पुनर्लेखनों और हमारे ग्राहकों के लिए रूसी कहानियों adapts और मूल कहानियों और विश्लेषणात्मक टुकड़े के दर्जनों दैनिक उत्पादन करता है. The Russian-language and English-language wires are synchronized so that major news in Russian and English appear at almost the same time. रूसी भाषा और अंग्रेजी भाषा के तार तो सिंक्रनाइज़ कर रहे हैं कि रूसी और अंग्रेजी में प्रमुख समाचार लगभग एक ही समय में दिखाई देते हैं. Many English-language stories and features never appear on the Russian wire. कई अंग्रेजी भाषा की कहानियाँ और सुविधाओं कभी नहीं रूसी तार पर दिखाई देते हैं. Besides the newswire the English-language service also publishes the PRIME-TASS News Daily compiled from the reports of 100 PRIME-TASS journalists based in Russia and the CIS and the Russian Connection weekly bulletin covering Russia's telecom sector. newswire के अलावा अंग्रेजी भाषा सेवा भी प्रधान-TASS समाचार 100 PRIME-TASS पत्रकारों की रिपोर्ट रूस और सीआईएस और रूसी कनेक्शन साप्ताहिक रूस की दूरसंचार क्षेत्र को कवर बुलेटिन में आधारित से संकलित दैनिक प्रकाशित करता है.

indian press

Media of India consist of several different types of communications media: television, radio, cinema, newspapers, magazines, and Internet-basedWeb sites. The Indian media was initiated since the late 18th century with print media started in 1780, radio broadcasting initiated in 1927, and the screening of Auguste and Louis Lumière moving pictures in Bombay initiated during the July of 1895 —is among the oldest and largest media of the world.[1] Indian media—private media in particular—has been free and independent throughout most of its history.[2] The period of emergency(1975–1977), declared by Prime Minister Indira Gandhi, was the brief period when India's media was faced with potential government retribution.[2][3]
The country consumed 99 million newspaper copies as of 2007—making it the second largest market in the world for newspapers.[4] By 2009, India had a total of 81,000,000 Internet users—comprising 7.0% of the country's population,[5] and 7,570,000 people in India also had access tobroadband Internet as of 2010— making it the 11th largest country in the world in terms of broadband Internet users.[6] As of 2009, India is among the 4th largest television broadcast stations in the world with nearly 1,400 stations.[7]
The organization Reporters Without Borders compiles and publishes an annual ranking of countries based upon the organization's assessment of their press freedom records. In 2010 India was ranked 122nd of 178th countries, which was a setback from the preceding year

Main articles: Print media in India, List of newspapers in India, and List of newspapers in India by circulation
Further information: Press Trust of India, United News of India, and Category:Indian magazines
The first major newspaper in India—The Bengal Gazette—was started in 1780 under the British Raj.[2]Other newspapers such as The India Gazette, The Calcutta Gazette, The Madras Courier (1785), The Bombay Herald (1789) etc. soon followed.[2] These newspapers carried news of the areas under the British rule.[2] The Times of India was founded in 1838 as The Bombay Times and Journal of Commerce by Bennett, Coleman and Company, a colonial enterprise now owned by an Indian conglomerate.[9] The Times Group publishes The Economic Times (launched in 1961), Navbharat Times (Hindi language), and theMaharashtra Times (Marathi language).[9]
During the 1950s 214 daily newspapers were published in the country.[2] Out of these, 44 were English language dailies while the rest were published in various regional languages.[2] This number rose to 2,856 dailies in 1990 with 209 English dailies.[2] The total number of newspapers published in the country reached 35,595 newspapers by 1993 (3,805 dailies).[2]
The main regional newspapers of India include the Malayalam language Malayala Manorama (published from: Kerala, daily circulation: 673,000), the Hindi-language Dainik Jagran(published from: Uttar Pradesh, daily circulation in 2006: 580,000), and the Anandabazar Patrika (published from: Kolkata, daily circulation in 2006: 435,000).[10] The Times of India Group, the Indian Express Group, the Hindustan Times Group, and the Anandabazar Patrika Group are the main print media houses of the country.[10]
Newspaper sale in the country increased by 11.22% in 2007.[4] By 2007, 62 of the world's best selling newspaper dailies were published in China, Japan, and India.[4] India consumed 99 million newspaper copies as of 2007—making it the second largest market in the world for newspapers.[4]


Main articles: Amateur radio in India, Television in India, and :Category:Amateur radio in India
Further information: List of Indian television stations and List of FM radio stations in India
Radio broadcasting was initiated in 1927 but became state responsibility only in 1930.[11] In 1937 it was given the name All India Radio and since 1957 it has been called Akashvani.[11] Limited duration of television programming began in 1959, and complete broadcasting followed in 1965.[11]The Ministry of Information and Broadcasting owned and maintained the audio-visual apparatus—including the television channel Doordarshan—in the country prior to the economic reforms of 1991.[10] The Government of India played a significant role in using the audio-visual media for increasing mass education in India's rural swathes.[2] Projected television screens provided engaging education in India's villages by the 1990s.[2]
Following the economic reforms satellite television channels from around the world—including BBC, CNN, CNBC, PTV, and other foreign television channels gained a foothold in the country.[12] 47 million household with television sets emerged in 1993, which was also the year when Rupert Murdoch entered the Indian market.[13] Satellite and cable television soon gained a foothold.[13] Doordarshan, in turn, initiated reforms and modernization.[13] With 1,400 television stations as of 2009, the country ranks 4th in the list of countries by number of television broadcast stations.[7]
On November 16, 2006, the Government of India released the community radio policy which allowed agricultural centers, educational institutions and civil society organizations to apply for community based FM broadcasting license. Community Radio is allowed 100 Watt Effective Radiated Power (ERP) with a maximum tower height of 30 meters. The license is valid for five years and one organization can only get one license, which is non-transferable and to be used for community development purposes. The Universities of the country has initiated Courses on Journalism. In West Bengal Calcutta University, Vidyasagar University etc. are running such courses. The students of Vidyasagar University are running a lab journal : Samokaal .
[edit]Communications

Main articles: Information technology in India and Communications in India
Further information: List of mobile network operators of India
The Indian Government acquired the EVS EM computers from the Soviet Union, which were used in large companies and research laboratories.[14] Tata Consultancy Services — established in 1968 by the Tata Group — were the country's largest software producers during the 1960s.[14] The 'microchip revolution' of the 1980s had convinced both Indira Gandhi and her successor Rajiv Gandhi that electronics and telecommunications were vital to India's growth and development.[15] MTNL underwent technological improvements.[15] Between 1986-1987, the Indian government embarked upon the creation of three wide-area computer networking schemes: INDONET (intended to serve the IBM mainframes in India), NICNET (network for the National Informatics Centre), and the academic research oriented Education and Research Network (ERNET).[16]
The Indian economy underwent economic reforms in 1991, leading to a new era of globalization and international economic integration.[17] Economic growth of over 6% annually was seen between 1993-2002.[17] The economic reforms were driven in part by significant the internet usage in India.[18] The new administration under Atal Bihari Vajpayee—which placed the development of Information Technology among its top five priorities— formed the Indian National Task Force on Information Technology and Software Development.[19] Internet gained a foothold in India by 1996.[14] India had a total of 81,000,000 Internet users—comprising 7.0% of the country's population—by 2009.[5] By 2009, 7,570,000 million people in India also had access to broadband Internet— making it the 12th largest country in the world in terms of broadband Internet users.[6]
India had a total of 37,160,000 telephone lines in use by 2009.[20] In the fixed line arena, BSNL and MTNL are the incumbents in their respective areas of operation and continue to enjoy the dominant service provider status in the domain of fixed line services.[21] BSNL controls 79% of fixed line share in the country.[21]
In the mobile telephony sector, Bharti Airtel controls 24.3% subscriber base followed by Reliance Communications with 18.9%, Vodafone with 18.8%, BSNL with 12.7% subscriber base as of June-2009.[21] India had a total of 525,657,000 mobile phone connections by 2009.[22] Total fixed-line and wireless subscribers reached 688 million as of August 2010.[23]
[edit]Cinema

Main article: Cinema of India
The history of film in India begins with the screening of Auguste and Louis Lumière moving pictures in Bombay during the July of 1895.[24] Raja Harishchandra—a full length feature film—was initiated in 1912 and completed later.[24] Alam Ara (released 14 March 1931) —directed by Ardeshir Irani—was the first Indian movie with dialogs.[25]
Indian films were soon being followed throughout Southeast Asia and the Middle East—where modest dressing and subdued sexuality of these films was found to be acceptable to the sensibilities of the audience belonging to the various Islamic countries of the region.[26] As cinema as a medium gained popularity in the country as many as 1, 000 films in variouslanguages of India were produced annually.[26] Hollywood also gained a foothold in India with special effects films such as Jurassic Park (1993) and Speed (1994) being specially appreciated by the local audiences.[26] Expatriates throughout the United Kingdom and in the United States continued to give rise to an international audiences to Indian movies, which—according to The Encyclopædia Britannica (2008) entry on Bollywood—'continued to be formulaic story lines, expertly choreographed fight scenes, spectacular song-and-dance routines, emotion-charged melodrama, and larger-than-life heroes.'[27]

role of press

Editors and journalists in India do not generally write their memoirs as they do in other countries, more particularly in the West. Despite several handicaps in the profession, India has witnessed a remarkable growth in journalism. She has produced editors of ability and distinction like Surendra Nath Banerji, Motilal Ghosh, G. Subrahmania Iyer, Kasthuri Ranga Iyengar, K.C. Roy, A. Rangaswami Iyengar, Kali Nath Ray. C.Y. Chintamani and S.A. Brelvi. Unfortunately, none of them has left behind an authentic account of their experiences in journalistic life or other recollections and reminiscences. The memoirs of B.G. Horniman entitled fifty years of Journalism were not even

half way through when his own end came. C.Y. Chintamani wrote on Indian politics but nothing on journalism. Even books on Indian journalism are few and far between. It may be said of Indian editors that as a rule they work themselves to death in the profession, caring all the time for the life and well-being of the people but paying little or no attention to the intellectual needs of those who are engaged in the profession or are desirous of entering it.

"The public in India know very little of the journalists, while even politicians have only an imperfect appreciation of their difficulties. The setting up of the All-India Newspaper Editors’ Conference and the publication of its periodical proceedings have made the politicians as well as the public realize in a general way that pressmen have their own problems concerning the people and the Government. The Nehru-Liaqat Agreement of April 1950 has been followed by a joint session of the Standing Committees of the All-India Newspaper Editors’ Conference and of the Pakistan Newpeper Editors’ Conference held in New Delhi, at which a complete understanding was reached as to the measures necessary to implement the Agreement so far as the pressmen of both the countries are concerned. This itself is the most significant development for which 1950 will be memorable in the annals of journalism as in the field of politics or statesmanship, bringing into bolder relief the close relationship between the Government and the Press in the interests of democracy and people’s welfare.

"It falls to but a few even among journalists to witness and record all the various political and other developments in the concentrated atmosphere at India’s Capital and also at the annual or special sessions of the Indian National Congress, the Muslim League and other political organizations. What I have attempted in this volume is a narration of the more important of my journalistic reminiscences spread over the past 35 years, i.e. from 1915 to 1950—a period of fast-changing scenes under the Gandhian leadership during which it was my privilege to serve as Editor of Reuters and the Associated Press (now known as the Press Trust) of India, and till very recently as the Principal Information Officer of the Government of India. On the canvas of these memoirs may be seen many newsreels and snapshots of incidents and personalities caught amid colourful scenes which may be of interest to students of Indian history or politics, besides the journalists. But objectivity has been the guiding principle throughout my narrative of anecdotes or impressions.

"I must express my greatful thanks to the Director General, All-India Radio, for permission to use some of my broadcasts, and to the editor, Roy’s Weekly, New Delhi, for the liberty to quote from some of my contributions as a political commentator published in the journal during and after the Cripps Mission of 1942, as the latter provide a fitting background to the many scenes that India witnessed four years later with the arrival of the British Cabinet Mission, resulting eventually in the withdrawal of British rule from the land of the Mahatma in August 1947 and the establishment of India as a Sovereign Democratic Republic under the Constitution of 1950". (jacket

Common Spelling Errors

Common Spelling Errors

The World Wide Web is crammed with useful information, but marred by occasional spelling errors.

absense:absence
acceptible:acceptable
accessable:accessible
accidently:accidentally
accomadate:accommodate
accompanyed:accompanied
accross:across
acheivement:achievement
achievment:achievement
acomplish:accomplish
acquiantence:acquaintance
acquited:acquitted
actualy:actually
acuracy:accuracy
addmission:admission
adolecent:adolescent
adress:address
adviced:advised
agian:again
agina:again
agravate:aggravate
agressive:aggressive
ahev:have
ahppen:happen
ahve:have
alomst:almost
almsot:almost
alotted:allotted
alreayd:already
alusion:allusion
alwasy:always
alwyas:always
amature:amateur
amke:make
amking:making
anbd:and
anual:annual
anytying:anything
aquiantance:acquaintance
aquire:acquire
aquitted:acquitted
arangement:arrangement
arguement:argument
athat:that
audeince:audience
aveh:have
avhe:have
awya:away
bakc:back
baout:about
barin:brain
bcak:back
becasue:because
becuase:because
befoer:before
begining:beginning
beleive:believe
bera:bear
boaut:about
busness:business
casion:casino
ceratin:certain
chari:chair
chasr:characters
claer:clear
claerer:clearer
claerly:clearly
clera:clear
comittee:committee
comming:coming
commitee:committee
constatn:constant
coudl:could
coudln:couldn
cpoy:copy
cxan:can
dael:deal
definit:definite
deram:dream
deside:decide
devide:divide
diea:idea
doens:doesn
doign:doing
donig:doing
dreasm:dreams
drnik:drink
dyas:days
efel:feel
eles:else
embarass:embarrass
embarassing:embarrassing
embarras:embarrass
embarrasing:embarrassing
ened:need
enxt:next
erally:really
esle:else
ethose:ethos
eveyr:every
exagerate:exaggerate
exagerated:exaggerated
exagerating:exaggerating
existance:existence
eyar:year
eyars:years
eyasr:years
fianlly:finally
fidn:find
fiel:file
fiels:files
financialy:financially
firends:friends
firts:first
fomr:from
forfiet:forfeit
forhead:forehead
foriegn:foreign
foudn:found
fourty:forty
freind:friend
frist:first
fulfilment:fulfillment
garanteed:guaranteed
gaurd:guard
generaly:generally
gerat:great
godo:good
gogin:going
gonig:going
goign:going
goverment:government
governer:governor
grammaticaly:grammatically
grammer:grammar
greif:grief
grwo:grow
graet:great
grat:great
greta:great
guage:gauge
guidence:guidance
hace:have
haev:have
hapened:happened
harras:harass
herad:heard
hera:hear
herat:heart
heroe:hero
heros:heroes
hieght:height
hismelf:himself
horus:hours
housr:hours
hten:then
htere:there
htey:they
hting:thing
htikn:think
htink:think
htis:this
humer:humor
hvae:have
hvea:have
hvaing:having
hwihc:which
hwile:while
hwole:whole
hypocracy:hypocrisy
hypocrasy:hypocrisy
hypocrit:hypocrite
idae:idea
idaes:ideas
idesa:ideas
ilogical:illogical
imagenary:imaginary
imagin:imagine
imediately:immediately
imense:immense
immitate:imitate
incidently:incidentally
incredable:incredible
independant:independent
indispensible:indispensable
inevatible:inevitable
inevitible:inevitable
infinit:infinite
inocence:innocence
intelectual:intellectual
inteligence:intelligence
inteligent:intelligent
interpet:interpret
interupt:interrupt
intrest:interest
irelevent:irrelevant
iresistable:irresistible
iresistible:irresistible
iritable:irritable
iritated:irritated
irresistable:irresistible
inot:into
iwll:will
iwth:with
jeapardy:jeopardy
jstu:just
jsut:just
knowlege:knowledge
konw:know
konws:knows
knwo:know
knwos:knows
kwno:know
labatory:laboratory
labratory:laboratory
leanr:learn
legitamate:legitimate
leran:learn
lerans:learns
levle:level
liason:liaison
libary:library
lible:liable
lief:life
lieing:lying
liek:like
liekd:liked
liesure:leisure
lightening:lightning
litature:literature
literture:literature
littel:little
liuke:like
liev:live
livley:lively
loev:love
lonelyness:loneliness
lonley:lonely
lonly:lonely
lsat:last
lveo:love
lvoe:love
maintainance:maintenance
maintainence:maintenance
maintenence:maintenance
makse:makes
manuever:maneuver
mariage:marriage
marrage:marriage
mathamatics:mathematics
mear:mere
medacine:medicine
mena:mean
menas:means
messanger:messenger
minature:miniature
mischeivous:mischievous
misile:missile
mkae:make
mkaes:makes
mkaing:making
mkea:make
moent:moment
moeny:money
moer:more
morgage:mortgage
movei:movie
mroe:more
muscels:muscles
mysefl:myself
mysterous:mysterious
naturaly:naturally
naturely:naturally
neccessary:necessary
necesary:necessary
neice:niece
nickle:nickel
nineth:ninth
ninty:ninety
nkow:know
nkwo:know
noticable:noticeable
noticeing:noticing
nuculear:nuclear
nuisanse:nuisance
nusance:nuisance
oaky:okay
obstacal:obstacle
ocasionally:occasionally
occassionally:occasionally
occurance:occurrence
occured:occurred
occurence:occurrence
occurr:occur
occurrance:occurrence
ocurr:occur
ocurrance:occurrence
ocurred:occurred
ocurrence:occurrence
oging:going
omision:omission
omited:omitted
omre:more
onot:onto
onyl:only
oponent:opponent
oportunity:opportunity
oposite:opposite
oppinion:opinion
optomism:optimism
orgin:origin
orginal:original
orginize:organize
otehr:other
owrk:work
owudl:would
paide:paid
palce:place
pamplet:pamphlet
paralel:parallel (500)
parrallel:parallel (700)
pasttime:pastime
payed:paid
peculure:peculiar
peice:piece
peom:poem
peoms:poems
peopel:people
peotry:poetry
performence:performance
perhpas:perhaps
perhasp:perhaps
permanent:permanent
permissable:permissible
perphas:perhaps
personel:personal
planed:planned
plesant:pleasant
poisin:poison
posess:possess
posession:possession
possable:possible
possably:possibly
possesion:possession
practicaly:practically
practicly:practically
prairy:prairie
preceed:precede
prefered:preferred
prepair:prepare
prepartion:preparation
presense:presence
prevelant:prevalent
priviledge:privilege
probablly:probably
probelm:problem
proceed:proceed
proceedure:procedure
profesion:profession
profesor:professor
proffesion:profession
proffesor:professor
prominant:prominent
prophacy:prophecy
propoganda:propaganda
psycology:psychology
publically:publicly
pumkin:pumpkin
pwoer:power
qtuie:quite
quantaty:quantity
quizes:quizzes
qutie:quite
raelly:really
reacll:recall
realy:really
realyl:really
reciept:receipt
recieve:receive
recieving:receiving
recomend:recommend
recrod:record
rediculous:ridiculous
refered:referred
refering:referring
referrence:reference
regluar:regular
rela:real
relaly:really
releive:relieve
rememberance:remembrance
repatition:repetition
representive:representative
restraunt:restaurant
rewriet:rewrite
roomate:roommate
russina:russian
rwite:write
rythm:rhythm
rythem:rhythm
sacrafice:sacrifice
saftey:safety
salery:salary
sargant:sergeant
sasy:says
schedual:schedule
scirpt:script
scripot:script
secretery:secretary
seperate:separate
severley:severely
sherif:sheriff
shineing:shining
shoudl:should
shoudln:shouldn
sieze:seize
simpley:simply
sincerley:sincerely
sinse:since
smae:same
smoe:some
snese:sense
soem:some
sohw:show
sophmore:sophomore
soudn:sound
soudns:sounds
sotry:story
sotyr:story
sould:soul
soulds:souls
speach:speech
sponser:sponsor
stroy:story
stoyr:story
stopry:story
storeis:stories
storise:stories
stnad:stand
stpo:stop
strat:start
stubborness:stubbornness
successfull:successful
suceed:succeed
suer:sure
sumary:summary
supercede:supersede
superintendant:superintendent
supose:suppose
supress:suppress
surley:surely
suround:surround
suseptible:susceptible
swiming:swimming
syas:says
taeks:takes
tahn:than
taht:that
tath:that
talek:talk
talekd:talked
tehy:they
temperment:temperament
temperture:temperature
tendancy:tendency
thgat:that
tghe:the
ther:there
theri:their
thge:the
thier:their
thign:thing
thigns:things
thigsn:things
thikn:think
thikns:thinks
thikning:thinking
thiunk:think
thna:than
thne:then
thnig:thing
thnigs:things
thsi:this
thsoe:those
thta:that
tiem:time
tih:with
tihkn:think
tihs:this
timne:time
tiome:time
tje:the
tjhe:the
tkae:take
tkaes:takes
tkaing:taking
tlaking:talking
tobbaco:tobacco
todya:today
tommorrow:tomorrow
tongiht:tonight
towrad:toward
trafficed:trafficked
trafic:traffic
transfered:transferred
truely:truly
turnk:trunk
twon:town
tyhat:that
tyhe:the
tyrany:tyranny
unconcious:unconscious
unecessary:unnecessary
unmistakeably:unmistakably
untill:until
useage:usage
usefull:useful
useing:using
usualy:usually
vaccum:vacuum
valuble:valuable
vegtable:vegetable
venemous:venomous
vengance:vengeance
veyr:very
vigilence:vigilance
villin:villain
visable:visible
vrey:very
vyer:very
vyre:very
waht:what
warrent:warrant
watn:want
wehn:when
weild:wield
wendsay:Wednesday
wensday:Wednesday
whcih:which
whereever:wherever
whic:which
whihc:which
wholy:wholly
whta:what
wief:wife
wierd:weird
wiht:with
wintery:wintry
wirting:writing
withdrawl:withdrawal
wiull:will
wnat:want
wnats:wants
wnated:wanted
wohle:whole
wokr:work
worshipped:worshiped
woudl:would
wriet:write
wrok:work
wroking:working
wroet:wrote
wtih:with
yeild:yield
ytou:you
yera:year
yeras:years
yersa:years
yeasr:years