Sunday, May 2, 2010

रजा राम मोहन राय

राजा राममोहन राय (बांग्ला: রাজা রামমোহন রায়) (२२ मई १७७२ - २७ सितंबर १८३३) को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है। भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारत में स्वतंत्रता आंदोलन और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उनके आन्दोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया।

राजा राममोहन राय की दूर‍दर्शिता और वैचारिकता के सैकड़ों उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। हिन्दी के प्रति उनका अगाध स्नेह था। वे रू‍ढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र गौरव उनके दिल के करीब थे। वे स्वतंत्रता चाहते थे लेकिन चाहते थे कि इस देश के नागरिक उसकी कीमत पहचानें।

== जीवनी == राममोहन राय का जन्म बंगाल में 1772 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । इनके पिता एक वैष्णव थे जबकि माता शाक्त । १५ वर्ष की आयु तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी का ज्ञान हो गया था । किशोरावस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया । उन्होने 1803-1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए भी काम किया । उन्होने ब्रह्म समाज की स्थापना की तथा विदेश (इंग्लैण्ड तथा फ़्रांस) भ्रमण भी किया ।

अनुक्रम [छुपाएँ]
१ कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष
२ पत्रकारिता
३ इन्हें भी देखें
४ बाहरी कड़ियाँ


[संपादित करें] कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष
राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर अपने आपको राष्ट्र सेवा में झोंक दिया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के अलावा वे दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे। दूसरी लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी। जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे। राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया। बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया।

[संपादित करें] पत्रकारिता
राजा राममोहन राय ने 'ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन' , 'संवाद कौमुदी' , मिरात-उल-अखबार, बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। उनके जुझारू और सशक्त व्यक्तित्व का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अँग्रेज जज द्वारा एक भारतीय प्रतापनारायण दास को कोड़े लगाने की सजा दी गई। फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। इस बर्बरता के खिलाफ राय ने एक लेख लिखा।

[संपादित करें] इन्हें भी देखें
केशवचन्द्र सेन
[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ
राजा राममोहन राय के संस्मरण

"http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%BE_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%A8_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF" से लिया गया
श्रेणी: समाज सुधारक

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