लालूप्रसाद यादव भारत के बिहार प्रांत के राजनीतिज्ञ है। वे भारत के वर्तमान मंत्रिमण्डल मे केन्द्रीय रेल मंत्री रहे हैं। वे बिहार के मुख्यमंत्री थे।
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१ जीवन और राजनीति सफर
२ लालू जी का इतिहास
३ शौक
४ लालू का अन्दाज
५ साक्षात्कार
[संपादित करें] जीवन और राजनीति सफर
बिहार के गोपालगंज मे आजादी के एक साल बाद 1948 मे एक गरीब परिवार मे जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूवात जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे। उन्होने वकालत भी की हुई है। 1977 मे इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव मे लालू जीते और पहली बार लोकसभा पहुँचे, तब उनकी उम्र 29 साल थी। 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे। 1990 मे वे बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1995 मे भी वे भारी बहुमत से विजयी रहे। 1997 मे जब सीबीआई ने उनके खिलाफ चारा घोटाला मे आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हे मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा| अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे, और अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी उनके हाथ ही रही| चारा मामले मे लालू को जेल भी जाना पड़ा, और उनको कई महीने तक जेल मे भी रहना पड़ा| 2004 लोकसभा चुनाव मे एनडीए की करारी हार के बाद लालू रेलमन्त्री बने|
रेल मंत्रालय संभालने के बाद तो लालू ने जैसे इस पर जादू की छड़ी घुमा दी। दशकों से घाटे में चला आ रहा रेल मंत्रालय अचानक अरबों रुपए के मुनाफे में आ गया। लालू यादव के इस कुशल प्रबंधन की चर्चा भारत ही नहीं पूरे विश्व में होती है। भारत के सभी प्रमुख प्रबंधन संस्थानों के साथ-साथ दुनिया भर के बिजनेस स्कूलों में लालू यादव के कुशल प्रबंधन से हुआ भारतीय रेलवे का कायाकल्प एक शोध का विषय बन गया है। हालांकि खुद लालू यादव के पास भी इस सवाल का जवाब नहीं है कि वह अपने इस हुनर का इस्तेमाल अपने गृह राज्य बिहार पर अपने लंबे शासनकाल के दौरान क्यों नहीं कर पाए?
[संपादित करें] लालू जी का इतिहास
बिहार के गोपालगंज में आजादी के एक साल बाद 1948 में एक निहायत ही गरीब परिवार में जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूवात जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे, और बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि लालू ने वकालत भी की हुई है। 1977 में आपातकाल(इमरजेंसी) के बाद हुए लोकसभा चुनाव में लालू जीते और पहली बार लोकसभा पहुँचे, तब उनकी उम्र मात्र 29 साल थी। 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे। लेकिन सबसे सही समय उनके जीवन मे आया 1990 में जब वह बाकी धुरंधर और घाघ नेताओं को छकाते और ठेंगा दिखाते हुए बिहार के मुख्यमंत्री बने। यह अत्यन्त अप्रत्याशित था तो असंतोष स्वाभाविक ही था, अनेक आंतरिक विरोधों के बावजूद वे अगले चुनाव यानि कि 1995 मे भी भारी बहुमत से विजयी रहे और अपने आपको सही साबित किया। लालू यादव के विरोधी किसी मोके का सिर्फ इंतजार ही कर सकते थे। लालू जी के जनाधार मे MY यानि मुस्लिम और यादवो के फैक्टर का बङा योगदान है, लालू जी ने इससे कभी इन्कार भी नहीं किया, और लगातार अपने जनाधार को बढाते रहे।
लेकिन जैसा कि हर राजनेता के जीवन मे कुछ कठिन पल आते है, सो 1997 में जब सीबीआई ने उनके खिलाफ चारा घोटाले में आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हे मुख्यमंत्री पद से हटना पङा, लेकिन अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे, जिससे अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी उनके हाथ ही रही। लेकिन रबरी देवी ने भी लोक सभा में बहुमत साबित किया और बिहार की मुख्या मंत्री रही। चारा मामले मे लालू जी को जेल भी जाना पङा,लेकिन लालू यादव के पास साशन की आची क्षमता रखने वाले हैं। फिर पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए की करारी हार के बाद के बाद लालू प्रसाद ने दिल्ली की सत्ता की तरफ रुख किये,वे तो गृह मन्त्री बनना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस सरकार में रेलमन्त्री बनने को राजी हो गये। श्री यादव के समय रेल की सेवा अच्छी रही और घाटे में चल रही रेल सेवा फिर से फायदे में आई। कई नए रेल सुरु हुए जिससे यात्री संतुस्ट रहे।
[संपादित करें] शौक
लालू प्रसाद ने काफी लेख भी लिखे है मुख्यतः राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर , उनका शौंक है बड़े बड़े आन्दोलनकारियों की जीवनिया पढना और राजनीतिक चर्चा करना…. संगीत के नाम पर लोकगीत इन्हे बहुत पसन्द है, और खेलो मे क्रिकेट मे दिलचस्पी है, वे बिहार क्रिकेट एसोसियेशन के अध्यक्ष भी है. और उनका सपुत्र एक अच्छा क्रिकेटर भी है.लालू ने एक फिल्म मे भी काम किया जिसका नाम उनके नाम पर ही है, यह बात दीगर है कि इस फिल्म का उनसे कुछ भी लेना देना नही है. रेलवे मन्त्री रहते हुए भी लालू प्रसाद विवादास्पद रहे…..रेलवे मे कुल्हड़ चलाने का मामला हो या विलेज ओन व्हील गाड़िया, लालू का इन सबके पीछे अपना तर्क है, सिवाय सोनिया गांधी के वे यूपीए मे किसी भी नेता को घास नही डालते, हमेशा अपनी मनमर्जी करते है.लालू प्रसाद के रिश्तेदार भी इनके राजनीतिक सफर मे काफी रूकावटे खड़ी करते है, साले साहब साधू यादव,सुभाष यादव भी हमेशा किसी ना किसी तरह लालू के लिये आफते लाते रहे है.वैसे भी लालू हमेशा नये नये विवादो मे घेरने के लिए विरोधी प्रबल रहे हैं अभी पिछले दिनो वे बिहार मे गरीबो मे पैसे बाँटते हुए देखे गये थे..जो चुनाव आचार संहिता का सीधा सीधा उल्लंघन है….. जिसका विरोधियो ने पुरजोर विरोध किया था,
[संपादित करें] लालू का अन्दाज
अपनी बात कहने का लालू का खास अन्दाज है, यही अन्दाज लालू को बाकी राजनेताओ से अलग करता है, लालू का अन्दाज ही कुछ निराला है.पत्रकार तो इनके आगे पीछे मन्डराते रहते है, और बस इन्तजार करते है कि कब लालू कुछ बोलें और ये लोग छापे…..सीधा साधा मामला है, लोग लालू के बारे मे पढना पसन्द करते है. बिहार की सड़को को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे मे कुल्हड़ की शुरुवात, लालू हमेशा से ही सुर्खियों मे रहे.इन्टरनेट मे आप लालू के लतीफों का अलग ही सेक्शन पायेंगे…. लालू के आलोचक चाहे कुछ भी कहें मेरी नजर मे लालू एक आक्रामक और हाजिरजवाब राजनेता है,जिनका एक अच्छा खासा जनाधार है.
लालू का एक ही सपना है, भारत का प्रधानमन्त्री बनना, अब देंखे इनका यह सपना कब पूरा होता है.
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