बोलने की इच्छा तो ये हुई – “साला सांड, बीचों बीच रस्ते में खड़ा है, आने जाने के लिए जगह पर टाँग फैलाकर खड़ा है, परे हट!” मगर प्रकटत: बहुत ही नम्र स्वर में बोला – एक्सक्यूज़ मी, थोड़ा सा जाने देंगे...
जाहिर है, सामने वाले को मेरे मन में उसके प्रति उठे विचारों का कोई भान नहीं था, अतएव मेरे नम्र निवेदन को उसने उतनी ही विनम्रता से स्वीकारा और जाने के लिए उसने जगह दे दी. यदि वो मेरे मन में उठे भावों को जान लेता तो यकीनन, नूरा कुश्ती वहीं शुरू हो जाती.
तो, आपने देखा कि किस तरह से, एक्सक्यूज़ मी का फंडा कितना कारगर होता है. सामने वाले को आप हजार लानत मलामत मन में भेजते रहें, मगर प्रकटत: उससे एक्सक्यूज़ मी, एक्सक्यूज़ मी कहते रहेंगे.
ठीक इसी तरह का एक शब्द है सॉरी - माफ कीजिएगा. सॉरी शब्द ने दुनिया में जाने कितनी लड़ाईयाँ रोकी होंगी. कितनों के आँसुओं को टपकने से रोका होगा. कितने कत्ल और मर्डर रोके होंगे. आपका मन तो सामने वाले के पेट में छुरा भोंकने का हो रहा होता है, मगर आप प्रेम से कहते हैं – सॉरी! भले ही सामने वाले के मन में आपके ऊपर बम फेंकने का हो रहा हो, वो आपसे कहेगा कोई बात नहीं. कभी कभी मामला बनता न देख आप दो चार बार और कह देते हैं, इस बार वज़न देकर - वेरी सॉरी. फिर, मामला कितना भी भयानक, भयंकर, माफ़ी लेने देने लायक न हो, रफा दफा हो जाता है.
और, अब तो बात बे बात सॉरी कहने के एक और सॉलिड कारण आपके सामने है.
एक्सक्यूज़ मी, क्या कहा? आप इतने से ही बोर हो गए? सॉरी! कोई बात नहीं, लीजिए पढ़िए व्यंज़ल-
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चुनावों और जंग में सब जायज है, माफ कीजिएगा
तेरी संसद मेरे किसी काम की नहीं माफ कीजिएगा
चेहरे पे कई रंग के चेहरे चढ़ा लिए हैं बहुतेरे मगर
गुनाहों को किस तरह से छुपाएंगे माफ कीजिएगा
वैसे तो जलसे में सभी ने दिए थे बढ़ चढ़ के बयान
क्यों साथ मेरे कोई चलता नहीं है माफ कीजिएगा
हर तरफ आरती गुरबानी और अजान के शोर हैं
आदमीयत की किलकारी कहाँ गई माफ कीजिएगा
इस बेदर्द जमाने ने हमें भी बना दिया जहीन रवि
बात बे बात हम भी कहते हैं सॉरी माफ कीजिएगा
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